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(GMT+08:00) 2007-04-02 16:32:36    
सुश्री ईन-यान और उन की यो-ची योग केंद्र

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काम से इस्तीफा देने के बाद ईन-यान अपना सामान बांधकर भारत गईं। ऐसा इसलिए क्योंकि दसेक साल पहले उन्हों ने एक फिल्म देखी थी,जिस में "भारत आप को अंतरात्मा से मिला सकता है " इस वाक्य ने उन के मनमानस पर अमिट छाप छोड़ी है।भारत आकर वह दोस्तों की सिफारिश से सीधे श्रषिकेश पहुंचीं।उन्हों ने कहाः

"आखिरकार मुझे कुछ ऐसा समय मिला जब मैं किसी के भी हस्तक्षेप और नियंत्रण से मुक्त होकर विवेकपूर्वक कुछ सवालों पर विचार कर सकी,जिन पर मुझे पहले ही सोच-विचार करना चाहिए था।मैं जानना चाहती थी कि मैं कौन हूं और मैं कैसे खुशी प्राप्त कर सकती हूं।भारतीय सभ्यता में एक प्रकार की एक ऐसी अलौकिक शक्ति है,जिसे साफ़-साफ़ नहीं समझाया जा सकता।मैं समझती हूं कि यह सभ्यता अत्यंत विचारपूर्ण और दूरगामी है।इस के समक्ष हर एक को कुछ न कुछ बोध मिल सकता है।"

अंतरात्मा ढूंढ लेने की तीव्र इच्छा से ईन-यान ने योगाभ्यास शुरू किया।पहले वह समझती थी कि योग मात्र शरीर के अंगों को यातना देने वाला एक व्यायाम है, जिस का अभ्यास करने वाले इस यातना के जरिए मानसिक पीड़ा भूल जाते हैं।लेकिन गुरू मोहन के नम्र निर्देशन में उन्हें धीरे-धीरे अपूर्व शांति मिलनी शुरु हुई।एक दिन उन्हों ने अचानक महसूस किया कि उन का भारी मन हल्का हो गया है और जीवन से प्रेम करने व उस का आनन्द उठाने वाली अंतरात्मा फिर लौट आई है।

योगाभ्यास करने के साथ-साथ उन्हों ने भारत के अनेक क्षेत्रों का दौरा किया और इस दौरान भारतीय सभ्यता से प्रेरित होकर वह नयी दृष्टि व मनोभाव से इस संसार को देखने और महसूस करने लगीं।उन का कहना हैः

"जीवन के प्रति मेरे रवैए में सुधार का श्रेय भारतीय सभ्यता को जाना चाहिए।भारतीय सभ्यता

की मदद से मुझे मालूम हुआ कि ज़िंदगी का मूल्य क्या है और जिदगी में सब से मूल्यवान चीज़ क्या है । जिदगी का नियम एक प्रकार का वास्तविक नियम है,जिस के उल्लंघन से काम नहीं चलेगा।यह सब समझने के बाद मुझे हर बंधन से पूरी तरह स्वतंत्र होने का एहसास हुआ और मैं आखिरकार फिर से स्वंय में वापिस लौट सकी। "

पेइचिंग लौटने के बाद ईन-यान ने योगाभ्यास जारी रखा और आसपास के दोस्तों तक भी योग का लाभ पहुंचाने के लिए गुरू मोहन को पेइचिंग आने का आमंत्रण दिया।गुरू मोहन के आने के बाद उन्हों ने योगी योग केंद्र की स्थापना की।तब से यह केंद्र अधिकाधिक लोगों के लिए मन में शांति लाने की जगह बन गई है।

ईन-यान ने भारत के दौरे पर एक यात्रा-विवरण भी लिखा,जिस का नाम है पीपल पेड के नीचे मन की यात्रा।इस पुस्तक में उन्हों ने भारतीय सभ्यता के जरिए खोई हुई अंतरात्मा ढूंढकर वापस लाने की अपनी कहानी सुनाई है।उन्हों ने कहाः

"मुझे बड़ी खुशी हुई है कि इस पुस्तक ने मेरी कहानी,जिंदगी के प्रति मेरे दृष्टिकोण खासकर योग की आध्यात्मिक भावना का प्रचार-प्रसार किया।गुरू मोहन ने चीनियों को योग की सुव्यवस्थित शिक्षा देकर उन के जीवन और कार्य में अत्यंत मूल्यवान खुशी लाने का काम किया है।यह खुशी समाज के हित में है,क्योंकि इस से समाज को और ज्यादा सामंजस्य मिल सकता है।मुझे आशा है कि और अधिक लोग योग के संसार में आएंगे और इस में पाने वाली खुशी को अपने आसपास के लोगों के साथ बांटेंगे।ऐसा करना अपने आप में सामाजिक स्थिरता के लिए एक योगदान है। "

ईन-यान के अनुसार पहले की तुलना में इस समय वह अधिक व्यस्त हैं और काम का दबाव भी कम नहीं है,लेकिन उन के मन में शांति बनी रहती है और वह हर समय जीवन की सुन्दरता महसूस कर सकती हैं।उन की दो बेटियां हैं।उन की चर्चा करते हुए उन के चेहरे पर हमेशा प्यार भरी मुस्कान उभरती दिखाई देती है।उन्हों ने कहा कि चाहे काम कितना भी व्यस्त क्यों न हो,वह बेटियों की देखभाल में ज़रा भी ढील नहीं आने देती हैं,क्योंकि यह जिंदगी का नियम है।ईन-यान40 साल की उम्र को पारकर गई है,पर कॉलेज-छात्राओं जैसी जवान और सुन्दर दीखती हैं।इस का रहस्य क्या है?

उन्हों ने जवाब दिया कि जिंदगी का मूल महत्व समझकर शांतिपूर्ण मनोभाव कायम करने से ही लोग अन्दर और बाहर की सुन्दरता से सराबोर हो जाते हैं।

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