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(GMT+08:00) 2007-03-30 16:07:00    
भारतीय पत्रकार ने कहा कि तिब्बत का अब कायापलट हो गया

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इधर के वर्षों में चीन में सुधार व खुले द्वार की नीति लागू की जाने और सरकार के जबरदस्त समर्थन से तिब्बत स्वायत्त का बड़ा विकास हुआ । भारत से आए बुजुर्ग पत्रकार हरिश चंद्र चंदोला ने तिब्बत का निरीक्षण दौरा करने के बाद भावविभोर हो कर कहा कि अब तिब्बत में सचमुच भारी परिवर्तन हो रहा है । इस लेख का सवाल है:किसे तिब्बती जाति की रीति रिवाज़ व परम्परा का विश्व शब्दकोष माना जाता है ?

78 वर्षीय हरिश चंद्र चंदोला एक स्वतंत्र भारतीय पत्रकार हैं । गत वर्ष उन्होंने चीनी तिब्बती संस्कृति मंच के एक प्रतिनिधि के रूप में छिंगहाई-तिब्बत रेल मार्ग के जरिए तिब्बत का निरीक्षण दौरा किया । श्री चंदोला ने कहा कि उन्हों ने तिब्बत को अपनी आंखों से देखा और तिब्बत के प्रति चीन सरकार का समर्थन महसूस किया । विशेष कर चीन सरकार ने तिब्बत के आर्थिक विकास को मज़बूत करने के साथ-साथ तिब्बती परम्परागत संस्कृति के संरक्षण के लिए अथक कोशिश की और भारी उपलब्धियां भी हालिस की ।

श्री चंदोला पत्रकार ही नहीं, एक विद्वान और लेखक भी । उन्होंने कहा कि उन का जन्म उत्तरी भारत के पहाड़ी क्षेत्र में हुआ, जो तिब्बत के नज़दीक है । उन के पिता जी को चीनी तिब्बती लोगों के साथ घनिष्ठ संपर्क व गहरी मैत्री थी । पचपन में चंदोला अपने पिता जी के कारण तिब्बती लोगों के साथ संपर्क में आये और उन्हें तिब्बती जाति का सीधा-सादा व जोशीला स्वभाव महसूस हुआ । उन्होंने कहा कि गीत गाने में तिब्बती लोगों की आवाज़ अब तक उन के दिमाग में ताज़ा बनी रही है । पचास वर्ष पूर्व चंदोला ने प्रथम बार तिब्बत की यात्रा की थी और पुराने तिब्बत की यथार्थ स्थिति भी देखी । बाद में वे एक पत्रकार बने और विश्व के विभिन्न स्थानों का दौरा करने लगे । इसी दौरान चीन का तिब्बत हमेशा उन के ध्यान का केंद्र रहा ।

अपनी तीन तिब्बत यात्रा की चर्चा में श्री चंदोला ने कहा कि पचास साल पहले तिब्बत बहुत पिछड़ा था । यातायात दुर्गम थी । प्रथम बार तिब्बत जाने के लिए उन्हें पैदल से पड़ाहों को पार करना पड़ा था और वहां पहुंचने में तीन महीने का समय लगा था । युवावस्था में अपनी तिब्बत यात्रा की चर्चा में श्री चंदोला ने कहा कि पचास साल पूर्व मैं ने प्रथम बार तिब्बत की यात्रा की थी । पैदल से तीन महीनों का समय लगा । उसी समय तिब्बत में कोई ढंग का मार्ग नहीं था और स्थिति बहुत खराब थी ।

समय गुज़र गया । पचास सालों के बाद श्री चंदोला एक बार फिर तिब्बत आये । यहां की सुविधाजनक यातायात उन के लिए सब से गहरा अनुभव है । उन्हें लगा कि अपने जीवन काल में छिंगहाई-तिब्बत रेल गाड़ी से तिब्बत जाने का मौका मिलना एक बहुत सौभाग्य बात है ।

छिंगहाई-तिब्बत रेल मार्ग पर यातायात शुरू होने से न सिर्फ़ लोगों को यातायात की असाधारण सुविधा प्रदान की गयी है , बल्कि तिब्बती जनता और देश की अन्य जातियों की जनता के बीच दूरी को कम की गयी है । तिब्बत की यात्रा के दौरान वे मोटर सड़क से राजधानी ल्हासा से नामूत्सो झील गए । सड़क से थोड़ी दूरी पर छिंगहाई-तिब्बत रेल मार्ग ही समानांतर नजर आया । उन्होंने कहा कि छिंगहाई-तिब्बत रेल मार्ग के निर्माण में सब से आकर्षक बात यह है कि जंगली जानवरों के आवागमन के लिए एक-एक विशेष रास्ता बनाए गए है ।

सूत्रों के अनुसार छिंगहाई-तिब्बत रेल मार्ग पर जंगली जानवरों के आवाजाही के लिए कुल 33 बड़े सुगम रास्ते बनाए गए हैं । छिंगहाई-तिब्बत रेल मार्ग पर खड़े होकर श्री चंदोला ने भावावेश में आकर सोचा कि जंगली जानवरों के आने-जाने के वक्त यहां का दृश्य जरूर विशेष अनोखा होगा । उन्होंने कहा कि छिंगहाई-तिब्बत रेल मार्ग के निर्माण के वक्त उठाए गए इसी कदम से यह देखा जा सकता है कि चीन सरकार ने तिब्बत के दलदल भूमि, जल संसाधन, जंगली जानवर तथा छिंगहाई-तिब्बत रेल मार्ग के पर्यावरण संरक्षण आदि क्षेत्रों में बहुत से काम किए थे।

श्री चंदोला ने कहा कि पुराने तिब्बत का द्वार बंद हुआ था । बाह्य दुनिया के साथ तिब्बत का संपर्क बहुत कम था । तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति के बाद के चालीस से ज्यादा सालों के विकास में तिब्बत ने लोगों के लिए अपना द्वार खोल दिया । विश्व के विभिन्न स्थानों के लोग तिब्बत स्वायत्त प्रदेश आ कर यहां के भारी परिवर्तन को महसूस कर सकते हैं और विश्व की छत कहलाने वाले इस पठार के दिन गुनी रात चौगुनी विकास का अनुभव कर सकते हैं ।

तिब्बत का निरीक्षण दौरा करने के दौरान उन्हों ने तिब्बती सांस्कृतिक संरक्षण क्षेत्र में की गई अथक कोशिशों को भी महसूस किया । उन्होंने कहा कि उन की ताज़ा तिब्बत यात्रा में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की जन सरकार ने तिब्बती संस्कृति के संरक्षण के लिए जो भरसक कोशिश की है , वे उन्हें सउदाहरण महसूस हुआ है ।《राजा गैसर》एक ज्वलंत उदाहरण है ।

《राजा गैसर》तिब्बती जाति द्वारा रचा गया विश्व में सब से लम्बा वीर गाथा है , जिस में तिब्बती जाति के वीर राजा कैसर के जीवन भर के महान योगदान का वर्णन किया गया, इस महाकाव्य को विश्व के महाकाव्य के बादशाह के नाम से मशहूर है और वह सदियों से तिब्बती बहुल क्षेत्रों में प्रचलित रहा है । महाकाव्य राजा कैसर न केवल साहित्य व कला के क्षेत्रों में उच्च मूल्य रखता है, बल्कि इतिहास, भूगोल, रीति रिवाज़ तथा पुरातत्व आदि क्षेत्रों में भी बहुत से मूल्यवान विषय सुरक्षित करता है । इस लिए इसे तिब्बती जाति की रीति रिवाज़ व परम्परा का विश्व शब्दकोष माना जाता है । लेकिन सामाजिक विकास और जीवन के परिवर्तन के कारण इस महाकाव्य के नष्ट होने का खतरा बना है । इस महान तिब्बती साहित्य के संरक्षण के लिए तिब्बती सामाजिक विज्ञान अकादमी समेत अनेक चीनी सांस्कृतिक संस्थाओं ने इस सांस्कृतिक अवशेष को बचाने के लिए सक्रिय कोशिश की और उपलब्धियां भी हासिल कीं ।

श्री चंदोला ने कहा कि अपनी ताज़ा तिब्बत यात्रा के दौरान तिब्बत में शिक्षा व धार्मिक स्थिति ने उन पर अमिट छाप छोड़ी है । उन्होंने याद करते हुए कहा कि पचास से ज्यादा साल पूर्व अपनी प्रथम तिब्बत यात्रा के दौरान उन्होंने तिब्बत में बहुत से भूदासों को देखा था । उसी समय तिब्बत में सामंती भूदास व्यवस्था लागू की जाती थी । लेकिन आज तिब्बत में एक भी भूदास नजर नहीं आया । तिब्बती लोग अपने तरीके से जीवन बिताता है । तरह तरह के प्राइमरी स्कूल, मीडिल स्कूल और रोज़गारी प्रशिक्षण स्कूल तथा उच्च विद्यालय अब तिब्बत में बहुत साधारण बन गए हैं। पोताला महल, जोखाङ मठ और जाशलुम्बु मठ अच्छी तरह संरक्षित हैं, वहां रोज तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुयायियों की भीड़ लगती है । श्री चंदोला ने कहा कि पचास साल पूर्व तिब्बत में एक सच्चे माइने का आधुनिक स्कूल नहीं था । तिब्बती लोगों को मठों में जाकर शिक्षा पाना पड़ता था । लेकिन आज तिब्बती विद्यार्थी अच्छी अच्छी शिक्षा पा सकते हैं, वे स्कूलों में विभिन्न वैज्ञानिक व सांस्कृतिक ज्ञान सीख सकते हैं । इस के साथ ही तिब्बत में विभिन्न सामाजिक व्यवस्थाएं भी धीरे-धीरे संपूर्ण हो रही हैं । तिब्बती लोगों को स्वेच्छे से नौकरी चुनने का अधिकार है । वर्तमान में तिब्बती लोग खाने पहनने के लिए निश्चिंत हैं और बेहतरीन शिक्षा पाते हैं । वे स्वतंत्रता से अपना धार्मिस विश्वास रखते हैं । ऐसा कहा जा सकता है कि आज के तिब्बती लोग सुखमय जीवन बिता रहे हैं ।

भारतीय पत्रकार श्री चंदोला ने कहा कि तिब्बत की ताज़ा यात्रा समाप्त होने के बाद नए तिब्बत के हर दृष्य समय समय पर उन की आंखों के सामने मंडराते रहते हैं । पचास साल पूर्व अपनी प्रथम तिब्बत यात्रा की तुलना में अपनी ताज़ा तिब्बत यात्रा से यह तथ्य साबित हुआ है कि अब तिब्बत का एकदम काया पलट हो गया है , जिस से विश्व का कोई भी देश या क्षेत्र तूल्य नहीं हो सकता ।

श्री चंदोला ने कहा कि वे अगली तिब्बत यात्रा की प्रतीक्षा में हैं । वे तिब्बत में हो रहे परिवर्तन व होने वाले परिवर्तन को देखने के इच्छुक हैं।