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(GMT+08:00) 2007-03-30 16:05:31    
तिब्बती किसान का नया जीवन

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इधर के वर्षों में चीन के तिब्बत के सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक आदि क्षेत्र में बड़ा विकास हुआ है। इस लेख का सवाल है:तिब्बत के इतिहास में प्रथम राज महल का नाम क्या है ?

इधर के वर्षों में चीनी केंद्रीय सरकार के समर्थन व देश के भीतरी इलाके के विभिन्न प्रांतों की सहायता से तिब्बत का तेज़ी के साथ विकास हो रहा है । तिब्बती किसान व चरवाहे व्यवसायों में हुए विकास से गरीबी से विदा ले रहे हैं और अपने जीवन की गुणवत्ता को उन्नत कर रहे हैं ।

तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के लोका प्रिफैक्चर को तिब्बती संस्कृति का उद्गम स्थल माना जाता है । यहां तिब्बत के इतिहास में प्रथम राज महल—योंबू लाखांग स्थित है । लोका प्रिफैक्चर में यालोंग नदी बहती है और नदी के घाटी क्षेत्र में तिब्बती जाति का प्रथम कृषि खेत और प्रथम गांव विकसित हुआ था । लम्बे अरसे से तिब्बत के लोका प्रिफैक्चर का कृषि उत्पादन आम तौर पर जौ आदि परम्परागत फसलों पर आधारित रहा है । यहां के किसान कड़ा परिश्रम करने के बावजूद बहुत कम पैसे कमा पाते थे । किसानों की आमदनी व जीवन स्तर को उन्नत करने के लिए लोका प्रिफैक्चर की सरकार ने इधर के वर्षों में परम्परागत कृषि के विकास को महत्व देने के साथ नकदी फसलों का विकास करने का प्रयास भी किया । वहां उच्च गुणवत्ता वाले लहसुन का आयात कर क्षेत्र में विशेष कृषि उत्पादन के विकास की खोज की गई है।

लोका प्रिफैक्चर की सरकार की कमिश्नर सुश्री दची ने कहा कि लोका प्रिफैक्चर में लहसुन आर्डर के अनुसार उत्पादित किए जाते हैं, सरकार किसानों से लहसुन खरीदने का काम संभालती है । किसानों को लहसुन बेचने के सवाल पर कोई चिंता करने की ज़रूरत नहीं है, इस तरह उन में लहसुन उगाने की बड़ी होड़ है । सुश्री दची ने कहा:

"तिब्बती चिकित्सा में लहसुन का औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है, इस लिए हमारे यहां का सभी लहसुन तीन य्वान में आधा किलो के हिसाब से तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के तिब्बती चिकित्सा कॉलेज को बेचा जाता है।"

सुश्री दची ने जानकारी देते हुए कहा कि लोका प्रिफैक्चर में लहसुन की एक फसल होती है और उस के पौधे की दो फसलें हो सकती हैं, इस तरह एक हैक्टर में लहसुन की पैदावार से कुल 58 हज़ार य्वान से ज्यादा आमदनी प्राप्त होती है, जो हर हैक्टर में पैदा जौ की पैदावार की तुलना में आठ गुना अधिक है ।

लोका प्रिफैक्चर के खसोंग गांव वासी त्सीरन त्वोची ने कहा कि पहले हर वर्ष जौ की फसल के बाद उस के पास कोई काम नहीं रहता था और कुछ साल पहले उस ने एक ट्रैक्टर खरीद कर खेती से अवकाश के समय में परिवहन का काम शुरू किया, जोकि बहुत थकान देने वाला काम था और कमाई भी कम होती थी । स्थानीय सरकार के समर्थन व प्रोत्साहन से त्सीरन त्वोची ने लहसुन उगाना शुरू किया । नतीजा यह निकला कि सिर्फ लहसुन के संबंधित उत्पादों की पैदावार से प्राप्त कमाई जौ की कमाई को पार कर गयी । तिब्बती किसान त्सीरन त्वोची ने कहा:

"इस वर्ष लहसुन के उत्पादन से मेरी कमाई खासी अच्छी हुई , मैं ने दस हज़ार य्वान कमाया । अब मुझे बाहर जाकर काम करने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि पहले की तुलना में लहसुन उगाने से मुझे छ सात हज़ार य्वान की ज्यादा आमदनी होती है ।"

तिब्बत के पूर्वी भाग के लिन्ची प्रिफैक्चटर की गुंगबो ग्यामडा काउंटी में एक बहुत ही सुन्दर पठारीय झील है, नाम है छोको झील। इस झील का पानी बहुत स्वच्छ है और इसके दोनों किनारों पर खड़े हरे चीड़ के पेड़ों के झुरमुट व आसपास के पहाड़ों की श्वेत बर्फ की जगमगाती रोशनी यहां एक अद्भुत प्राकृतिक दृश्य बनाती है। इस दृश्य में इतना सौन्दर्य है कि लोग इस जगह को तिब्बत के स्विटजरलैंड के नाम से पुकारते हैं। इधर के दो सालों में गुंगबो ग्यामडा काउंटी में बने एक से एक सुन्दर मकानों ने यहां की खूबसूरती में चार चांद लगा दिए हैं।

छोको झील की ओर जाने का रास्ता ही तिब्बत को स छ्आन से जोड़ने वाली सड़क है । एक तरफ न्युंगछू नदी की कल-कल करती धारा और दूसरी तरफ ऊंचे पहाड़ों पर खड़े हरे-भरे पेड़ लोगों का मन मोह लेते हैं । झील के नजदीक पहुंचते-पहुंचते कतारों में खड़ी तिब्बती शैली की छोटी पर नयी व खूबसूरत इमारतें दिखाई देती हैं । नीले आसमान व इन मकानों की लाल छतों पर चमकती रोशनी ने यहां के वातावरण को कहीं ज्यादा आकर्षक व सुन्दर बना दिया है ।

गाला गांव इस रास्ते पर स्थित है । गांव के मुखिया तोबग्ये ने बताया कि गांव के मकान पहले न्यांगछु नदी के किनारे स्थित थे। तब गांव में सड़क नहीं थी और बरसात के मौसम में सारे गांव में कीचड़ भर जाता था। बारिश के मौसम में गांववासियों के दिल में यह डर भी लगा रहता था कि नदीं में पानी बढ़ने से बाढ़ न आ जाए और कहीं उनके घर न डूब जाएं। 2003 में गुंगबो ग्यामडा काउंटी ने किसानों व चरवाहों के रिहायशी मकानों में सुधार का काम शुरू किया। सरकार की मदद से गांव के सभी लोगों को अब एक ऊंचे स्थान पर बसाया गया है। श्री तोबग्ये ने कहा:

"पहले हमारे गांव में जीवन स्थिति बड़ी बुरी थी। लोग व पशु एक ही घर में रहते थे। इससे घर बड़े गन्दे रहते थे। लेकिन नए मकानों में पीछे के आंगन में पशुशाला बनायी गयी है। इस तरह घर की सफाई पहले से कहीं अच्छी हो गई है ।"

वर्ष 2003 में गाला गांव वासी उर्गयेन सोमो ने गुंगबो ग्यामडा काउंटी के किसान-चरवाहा मकान सुधार परियोजना में भाग लिया और सरकार व भीतरी इलाकों के विभागों से मिली पूंजी की सहायता से तथा बैंक व रिश्तेदारों से उधार लिए पैसों के सहारे 12 कमरों वाला दुमंजिला मकान बनाया । उर्गयेन सोमो ने बताया कि जब से उनका परिवार इस नए मकान में आया है, उसने यातायात की सुविधा का फायदा उठाकर बाहर से नया ज्ञान भी हासिल किया है। उस ने कहा, अब हमारे दिमाग में लचीलापन आने लगा है। लोगों में पैसा कमाने की तमन्ना बढ़ने लगी है। मेरे तीन बच्चे वर्तमान में ल्हासा में नौकरी कर रहे हैं। पति जड़ी- बूटी बेचने के अलावा अक्सर माल ट्रक चलाकर भी अतिरिक्त पैसा कमा लेते हैं। पूरे परिवार की वार्षिक आमदनी 20 से 30 हजार य्वान के बीच है। तिब्बती किसान उर्गयेन सोमो ने कहा:

"जब से हमने यहां घर बसाया है, हम बहुत खुश हैं। पहले वाले पुराने मकान में बड़ी गन्दगी रहती थी। अब हमारा घर बहुत साफ-सुथरा है। कमरे में शौचालय भी है। भविष्य में हम और पैसा कमाएंगे और अपने जीवन को और बेहतर बनाने की कोशिश जारी रखेंगे ।"

गुंगबो ग्यामडा काउंटी के जोंगशा गांव तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा से 270 किलीमीटर दूर स्थित है । तिब्बती किसान छीतांगयांगचिन इसी गांव में रहती है । वर्ष 2002 में स्थानीय सरकार का प्रोत्साहन व मदद पा कर सुश्री छी तांगचयांगचिन ने मुर्गी पालना शुरू किया । उन्होंने गांव की सरकार से प्राप्त 500 य्वान से दस मुर्गियां खरीदीं, खुद अपने हाथों से उनके लिए बाड़ा तैयार किया और बड़े धीरज से उन्हें पालने में जुट गईं । धीरे-धीरे नन्ही-नन्ही मुर्गियां उसके धीरज व सावधानी भरी देखरेख में बड़ी होने लगीं और देखते ही देखते उनके अंडों की संख्या भी बढ़ने लगी । हर वर्ष वे केवल मुर्गियों व उनके अंडों से 5000 य्वान कमा लेती है ।

छीतांगचयांगचिन का परिवार अब एक दुमंजिले मकान में रहता है। अतिथि-कक्ष में दो मीटर ऊंचा एक फ्रिज और 25 इन्च का एक रंगीन टीवी रखा हुआ है और उसके बगल में है एक वी सी डी मशीन और एक टेलीफोन। छीतांगचयांगचिन इस टेलीफोन से दूसरे शहर में पढ़ने वाले अपने बेटे के संपर्क में रहती हैं । दो सौ तिब्बती मुर्गियों को पालने के बारे में छीतांगयांगचिन ने कहा:

"मुर्गी-पालन से हमारा जीवन स्तर सचमुच ऊंचा हुआ है । मुर्गियां व अंडे बेच कर हम काफी पैसा कमा लेते हैं, सो हमारा जीवन दिनों-दिन बेहतर होता जा रहा है ।"

कुंगपूच्यांगता में मुर्गी-पालन तिब्बत के समुद्र की सतह से 3000 मीटर ऊंचे पठारी क्षेत्र के खुले माहौल में होता है। हालांकि इन मुर्गियों का कद छोटा है पर मांस बहुत ही स्वादिष्ट होता है। यहां की मुर्गियों के मांस ने पूरे तिब्बत में नाम कमाया है और अब जापान तक उन का निर्यात किया जाने लगा है। एक मुर्गी का दाम 40 से 50 य्वान के बीच होता है, जबकि मुर्गी का एक अंडा एक य्वान में बिकता है। तिब्बती मुर्गी-पालन का भविष्य यहां बहुत ही उज्ज्वल है।

जोंगशा गांव के प्रभारी काओ को छुअन ने बताया कि छीतांगयांगचिन अब इस गांव में धनी होने के रास्ते पर चलने वालों के लिए एक मिसाल बन चुकी हैं। गांव की सरकार अनेक किसानों के पशु-पालन से धनी बनने के रास्ते पर चल निकलने को समर्थन दे रही है। वह उन्हें केवल भत्ते के रूप में ही नहीं तकनीकी समर्थन भी देती है। उन्होंने कहा:

"हमारी काउंटी के पशु पालन विभाग ने किसानों को प्रत्यक्ष तकनीकी समर्थन दिया है। जब भी मुर्गी पालन में लगे किसानों को मुर्गियों के किसी तरह के संक्रामक रोग से जूझना पड़ा है, वे सीधे गांव की सरकार को इसकी सूचना दे देते हैं। हम काउंटी के विज्ञान व तकनीक विभाग को इन रोगों के इलाज में मदद देने के लिए भेजते हैं।"

छीतांगयांगचिन ने बताया कि भविष्य में वे एक मुर्गी-पालन फार्म का निर्माण करेंगी और पशु-पालन के दायरे को अधिक विस्तृत करेंगी। इसके आगे उनकी एक मुर्गी प्रोसेसिंग कारखाने की स्थापना करने की भी योजना है, ताकि तिब्बती मुर्गी तिब्बत से बाहर निकल कर दुनिया के बाजार में प्रवेश कर सके।