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(GMT+08:00) 2007-03-26 17:11:32    
यो-ची योग केंद्र की संस्थापक सुश्री ईन-यान

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तीन साल पहले चीन की राजधानी पेइचिंग में यो-ची नामक योग-केंद्र की स्थापना हुई,जिस की संस्थापक सुश्री ईन-यान है।इस केंद्र ने दिन-भर दौड़ धूप करने और कार्य के भारी दबाव से जूझ रहे कामकाजी लोगों के जीवन में स्वच्छ हवा सी ताज़गी लाई है।इस समय योग चीन में फैशनेबल लोगों के स्वस्थ जीवन का पीछा करने वाला एक पर्याय बन गया है और योग के जरिए सुश्री ईन-यान की आत्मा ढूंढने की कहानी योगाभ्यास में लगे व्यापक लोगों में प्रचलित है।

वास्तव में इधर के कुछ वर्षो में योग का चीन के अनेक बड़े शहरों में काफी प्रचार-प्रसार हुआ है और केवल पेइचिंग में ही उस के केंद्रों की संख्या 10 से अधिक हो गई है।उन में से यो-ची योग केंद्र सब से मशहूर है।तीन साल पहले सुश्री ईन-यान ने पेइचिंग के एक प्राचीन भवन में उस की स्थापना की। अब तक उस की देश के विभिन्न क्षेत्रों में दसियों शाखाएं कायम हो चुकी हैं औऱ इन में कार्यरत योग शिक्षकों की संख्या 500 से अधिक है।कुछ समय पहले यो-ची योग केंद्र का मुख्यालय पूर्वी पेइचिंग के सुरम्य दृश्यों वाले छाओ-यांग पार्क में विस्थापित हुआ जहां सुश्री ईन-यान ने हमारे संवाददाता को इंटरव्यू दिया।

इस समय लोगों में योग की बड़ी लोकप्रियता है,ऐसा क्यों ? इस का जवाब देते हुए उन्हों ने कहाः

"अब अधिकाधिक लोगों ने यह अवधारणा स्वीकार की है कि कार्य में सफलता पाना जीवन का एकमात्र लक्ष्य नही है, स्वास्थ्य और आनन्द पाना भी जीवन में महत्वपूर्ण है।मैं समझती हूं कि समाज ऐसे दौर में प्रविष्ट हो गया है, जिस में यह अवधारणा लोगों के दिमाग पर हावी हो रही है।मैं कैसे खुशी हासिल करूं ? और कैसे ज्यादा स्वस्थ बनूं ? ये ख्याल लोगों में बढते जा रहे हैं।मेरे विचार में योग ही लोगों को आनन्द दिलाने का एक साधन है।क्योंकि वह न केवल लोगों को शारीरिक स्वास्थ्य पहुंचा सकता है,बल्कि मानसिक शांति और तृप्ति का एहसास भी करा सकता है। वैश्वीकरण के दौर में सब कुछ तेज रफ्तार से हो रहा है। ऐसे में बहुत से लोग अर्द्धस्वास्थ्य की अवस्था में पाए गए हैं।उन्हें इस अवस्था से बाहर लाकर स्वस्थ करने में चिकित्सा की भूमिका उतनी प्रभावी नहीं, जितनी योग की भूमिका प्रभावकारी साबित हुई है।"

सुश्री ईन-यान का जन्म पिछली शताब्दी के 7वें दशक में हुआ था।बड़ी होने के बाद वे चीन के सुप्रसिद्ध पेइचिंग विश्वविद्यालय के फ्रांसीसी भाषा व साहित्य कोर्स और पेइचिंग फिल्म प्रतिष्ठान के फिल्म--निर्माण कोर्स को पूरा कर आगे अध्ययन के लिए पेरिस गईं।वहां रहने के दौरान उन्होंने पहले फिल्म-निर्माण की डॉक्टरेट डिग्री फिर एमबीए डिग्री प्राप्त की।इस के बाद वह प्रसिद्ध फैशन पत्रिका《ELLE》 की प्रधान संपादक और प्रधान डिजाइनर बनीं।वह अक्ल में ही नहीं शक्ल में भी लाजवाब हैं।फैशन-जगत में वह जल्द ही नामी हो गईं।और फिर धन,ख्याति व प्रतिष्ठा के थकाऊ जाल में फंस गई।न चाहने पर भी उन्हें एक के बाद एक सामाजिक आयोजनों में हिस्सा लेना पड़ा।धीरे-धीरे उन्हें महसूस हुआ कि वह आत्मा खो कर एक सामाजिक जानवर बन गईं हैं।धन,ख्याति और प्रतिष्ठा का भारी बोझ उन्हें परेशान करने लगा और उन्हें इन से नफरत होने लगी।उन्हों ने बताया कि उन की कथित सफलता ने उन से दूसरों की तरह सामान्य जीवन जीने का हक छीन लिया,जो उन से सहन नहीं हो पाया।उन की कोई भी निजता नहीं रह गई और सब कुछ लोगों के सामने प्रदर्शन की वस्तु बन गया ।यह उन के लिए एक बड़ा दुख का कारण बन गया।इसलिए 39 साल की उम्र में उन्हों ने अपने कमाऊ काम को अलविदा कहा।उन का कहना हैः

"मैं अपने स्वभाव से काम करने वाली हूं।मैं कार्य और सामाजिक भूमिका को महत्व देती हूं तथा सफलता भी चाहती हूं,लेकिन मैं जो काम करती हूं,,वह स्वभाव विरोधी कतई नहीं होना चाहिए।फैशन-जगत में ऊपरी तौर पर मैं ने सब भौतिक वस्तुएं प्राप्त कीं,जो दूसरे लोग जीवन भर शायद ही प्राप्त कर सकते हों।लेकिन मैं खुशी नहीं पा सकी।खासकर काम के अंतिम साल में मुझे लगा कि मेरा सरासर सामाजीकरण हो गया है और मैं सिर्फ दूसरों के लिए जिंदगी जी रही हूं।अंतरात्मा खो बैठने के बाद मैं सामाजिक जानवर या कहें कि मशीन होने के अवाला कुछ भी नहीं रह गई।"