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(GMT+08:00) 2007-03-23 10:46:25    
थाङ राजवंश में किसान-विद्रोह

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थाङ सम्राट श्वेनचुङ (शासन-काल 712-756) सछ्वान भाग गया। बाद में, क्वो चिई और ली क्वाङपी नामक दो थाङ सेनापतियों ने उइगुर जाति के एक सैन्य-दल की सहायता से छाङआन और ल्वोयाङ को पुनः अपने अधिकार में ले लिया। अन्ततः, विद्रोहियों को आठ साल के युद्ध के बाद हार का मुंह देखना पड़ा।

आन-शि विद्रोह अपने साथ दुख और तकलीफें लेकर आया। खेती वस्तुतः चौपट हो गई और किसानों को जीविका की तलाश में घरबार छोड़कर शरणार्थी बनना पड़ा।

केन्द्रीय सरकार बहुत कमजोर हो गई। देश के विभिन्न क्षेत्रों के गवर्नर-जनरलों ने इस परिस्थिति का लाभ उठाकर अपनी सेनाओं व इलाकों का विस्तार करना शुरु कर दिया।

केन्द्रीय सरकार का अपने गैरिजन कमाण्डरों पर नियंत्तण नहीं रह गया तथा देश सामन्ती सरदारों द्वारा अलग-अलग क्षेत्रों में विभाजित कर लिया गया। थाङ राजवंश शक्ति से दुर्बलता की ओर तथा समृद्धि से अवनति की ओर चल पड़ा।

थाङ राजवंश के अन्तिम काल में राजपरिवार के सदस्यों, कुलीनों, उच्चा अफसरों और जमींदारों में अधिक से अधिक जमीन हथियाने की जबरदस्त होड़ शुरु हो गई।

 ज्यादातर किसानों के हाथ से उनकी जमीन निकलती गई और वे शिकमी काश्तकार बन गए या फिर बेघर-बेसहारा होकर जीविका की तलाश में दर-दर भटकने लगे। लगान बढ़कर बहुत ज्यादा हो गया। फसल अभी पककर तैयार भी नहीं होती थी की सरकार किसानों से "हरे पौधों" के टैक्स की उगाही शुरु कर देती थी।

ऊपर से शानतुङ और हनान में बार-बार सूखा पड़ता रहा और असंख्य किसानों के सामने रोटी-रोजी की समस्या अत्यन्त भयानक रूप में आ खड़ी हुई। आखिरकार सब तरफ से निराश होकर उन्होंने विद्रोह का रास्ता अपनाया।

874 में वाङ श्येनचि के नेतृत्व में किसानों के एक दल ने छाङय्वान (वर्तमान हनान प्रान्त में स्थित ) में विद्रोह किया। अगले वर्ष, छाओचओ (वर्तमान शानतुङ प्रान्त के छाओश्येन के उत्तर में) के किसानों ने भी ह्वाङ छाओ के नेतृत्व में ऐसा ही किया। कुछ समय बाद ये दोनों दल मिलकर एक हो गए।

लड़ाई में वाङ श्येनचि की मृत्यु हो जाने के बाद उसके समर्थक ह्वाङ छाओ के अनुयायी बन गए। ह्वाङ छाओ ने, जो अपने को "स्वर्ग पर धावा बोलने वाला सेनाधिपति" कहता था, चलायमान युद्ध की रणनीति अपनाई।

उसकी युद्ध नीति थी अपने से कमजोर दुश्मन पर हमला करना और ताकतवर दुश्मन से न उलझना। उसने अपने एक लाख सैनिकों के साथ छाङच्याङ नदी को पार किया और आनह्वेइ, च्याङशी तथा फ़ूच्येन में दुश्मन से लोहा लिया। वह आगे बढ़ता हुआ क्वाङचओ तक पहुंच गया।

880 में उसने अपने छै लाख सैनिकों सहित छाङच्याङ नदी को दुबारा पार किया और उत्तर की ओर अभियान करते हुए पहले ल्वोयाङ, फिर थुङक्वान पर कब्जा कर लिया। थाङ सम्राट बिना किसी तैयारी के छाङआन से भागकर सछ्वान चला गया।