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(GMT+08:00) 2007-03-20 15:03:57    
डाक्यूमेंट्री फिल्म《तिब्बत की पूरानी कहानी》

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चीनी केंद्रीय न्यूज डाक्यूमेंट्री स्टुडियो ने हाल में पेइचिंग में《तिब्बत की पूरानी कहानी》नामक डाक्यूमेंट्री फिल्म रिलीज की, जिस में संबद्ध लोगों , साक्षियों और विशेषज्ञों के साथ बातचीत के तरीके से वर्ष 1959 में हुए लोकतांत्रिक सुधार से पूर्व तिब्बत की असली राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्थिति पुनः अभिव्यक्त की गयी है । इस डाक्यूमेंट्री फिल्म पर तिब्बती बंधुओं में बड़ी प्रतिक्रियाएं हुईं ।

73 वर्षीय तिब्बती फोटोग्राफ़र श्री ताशी वांगडु ने कहा कि वे खुद तिब्बत में लोकतांत्रिक सुधार काल से गुज़रे थे । आज से पचास से ज्यादा साल पहले उन्होंने तिब्बत के प्रथम फोटोग्राफ़र के रूप में फाला जागीर को फिल्माया था । फाला जागीर तिब्बत में कुलीन वर्ग के सब से बड़े 12 जागीरों में से एक था । गत शताब्दी के पचास वाले दशक से पहले तिब्बत के कुलीन जागीरों के अंदर और बाहर की स्थिति की तूलना स्वर्ग व नरक से की जा सकती थी । श्री ताशी वांगडु ने डाक्यूमेंटी फिल्म《तिब्बत की पूरानी कहानी》में साक्षी के रूप में कहा कि तिब्बत के गरीब परिवार के व्यक्ति के रूप में उन्हों ने प्रथम बार जब फाला जागीर की भव्यता व सुन्दरता को देखी ,तो उन्हें बहुत आश्चर्य लगा । श्री ताशी वांगडु ने कहाः

"जब हम फाला जागीर आकर फिल्म की शूटिंग कर रहे थे, इस जागीर के मालिक दंपति भारत गए थे । जागीर के प्रबंधक ने अनेक चौबियां लाकर एक-एक द्वार खोल कर हमें दिखाया था । यह जागीर बहुत भव्य ही नहीं, अत्यन्त धनवान भी था । यहां सिर्फ़ शराब और खाद्या पदार्थ के भंडारण के लिए ही एक बड़े कमरे की आवश्यकता थी । शराब में विदेशी मदिरा ज्यादा थे , विदेशी मिठाइयां और केक इत्यादि कमरे भर में भंडारित थे ।"

गत वर्ष, डाक्यूमेंट्री फिल्म《तिब्बत की पूरानी कहानी》बनाने के वक्त श्री ताशिवांगडु शूटिंग टीम के साथ एक बार फिर फाला जागीर आये । उन्होंने कहा कि जागीरदारी के काल में फाला में बेशुमार मूल्यावान चमड़े, पश्चिम की भोग विलास की वस्तुएं और आरामदेश बंगले उपलब्ध थे । जागीर के मालिक अकसर विदेशों की यात्रा पर जाते थे , मालिकन के मेकअप के लिए सभी चीज़ें युरोप के मशहूर ब्रांड की थीं । लेकिन जागीर के बाहर रहने वाले तिब्बतियों की जनसंख्या में 95 प्रतिशत लोग भूदास का कठोर जीवन बिताते थे और उन के खाने पीने की चीज़ें बहुत कम थीं ।

वर्ष 1959 में लोकतांत्रिक सुधार के पूर्व तिब्बत में राजनीतिक व धार्मिक मिश्रित सामंती भूदास व्यवस्था लागू की जाती थी । सरकारी अधिकारी, भिक्षु और कुलीन वर्ग तिब्बत पर शासन करते थे । यह व्यवस्था मध्यकाल के यूरोप में लागू जागीर व्यवस्था की तरह थी । जागीर मालिकों के विशेषाधिकार होते थे, जबकि भूदासों को कोई अधिकार व व्यक्तिगत स्वतंत्रता नहीं थी और उन का जीवन बहुत गरीब था । चीनी तिब्बत शास्त्र अनुसंधान केंद्र के महानिदेशक श्री ल्हाग्पा प्हुनत्शोग्स ने कहा कि लोकतांत्रिक सुधार के पूर्व तिब्बत का कानून सामाजिक वर्गों के अनुसार बनाया जाता था, जो जागीर मालिकों की सेवा करता था । उन्होंने कहाः

"उसी समय, तिब्बती कानून के अनुसार तिब्बतियों को तीन वर्गों के तहत नौ श्रेणियों में विभाजित किया जाता था । तीन वर्गों में उच्च, मध्य व निचला बंटे थे, हर वर्ग के व्यक्तियों को फिर तीन श्रेणियों में विभाजित किया जाता था, इस तरह विभिन्न तिब्बतियों का प्राण मूल्य भी ऊंचा व नीचा बंटा जाता था । उच्च स्तरीय लोगों की जान सोने के बराबर थी, जबकि नीचे स्तरीय व्यक्तियों की जान घास फुस की रस्सी की जैसी थी ।"

श्री ल्हाग्पा प्हुनत्शोग्स ने कहा कि कानून के अनुसार भूदासों की खरीदफरोख्त की जा सकती थी और वे जागीर मालिकों द्वारा आपस में अदले बदले किये जा सकते थे । जब भूदासों की शादि हुई थी , तो उन्हें जागीर मालिक को एक निश्चित रकम की धनराशि देना पड़ता था, उन की संतानें भी जन्म से ही भूदास होती थी । यदि किसी भूदास ने मालिक के हितों को क्षति पहुंचायी, तो उसे मृत्यु व कैद की सज़ा दी जाती थी । उस समय एक ऐसा अंधेरा काल था, जिस में समानता, मानवाधिकार व लोकतंत्रता लेशमात्र भी नहीं थी ।

डाक्यूमेंट्री फिल्म《तिब्बत की पूरानी कहानी》में भूदासों और भिखारियों का वास्तविक जीवन दर्शकों के सामने दर्शाए गए है । वर्ष1959 में तिब्बत में लोकतांत्रिक सुधार के बाद उन के जीवन में भारी परिवर्तन आया । तिब्बत में भूदास व्यवस्था रद्द की गई और हर व्यक्ति समान रूप से लोकतांत्रिक अधिकारों का उपभोग करता है , इन में शिक्षा पाने का अधिकार भी शामिल है, यह अधिकार पुराने तिब्बत में अधिकांश जनता के लिए सरासर एक दिवास्वप्न था।