सुश्री चो-या अपने जीवन-काल के 5 वें दशक में दाखिल हो गयी हैं। रिटायर्ड होने के बाद वह चीनी राजकीय संग्रहालय,पेइचिंग प्राचीन राज्य प्रासाद संग्रहालय औऱ चीनी शताब्दी मंच प्रदर्शनी-केंद्र में स्वयंसेविका के रूप में व्याख्याकार का काम कर रही हैं। अपने श्रेष्ठ प्रदर्शन से वे चीनी राजकीय संग्रहालय की पहली मानत कार्यकर्त्ता बन गई हैं। व्याख्या करने का उन का तरीका बौद्धिक व कलात्मक है। बहुत से दर्शकों का कहना है कि उन से व्याख्या सुनना एक आनन्ददायक अनुभव है।
चो-या ज्ञान की भूखी हैं। उन के घर में लगभग सभी जगहों पर पुस्तकें और पत्रिकाएं देखने को मिलती हैं। खाने की मेज भी उन से अछूती नहीं बची है। गृहस्थी संभालने के समय भी वे टी.वी पर संबंधित जानकारियां लेने की कोशिश करती रहती हैं। ड्यूटी पर जाने के रास्ते में भी वे व्याख्या के काम आने वाले पाठ को कंठस्थ करना नहीं भूलतीं ।दिलचस्प बात है कि वे अक्सर अपनी नन्ही पोती के सामने व्याख्या करने का अभ्यास करती है। चो-या ने अपना मज़ाक उड़ाते हुए कहा कि अगर उन्हों ने युवावस्था में इतनी कड़ी मेहनत की होती, तो वह कब से ही डॉक्टर बन गयीं होतीं। बावजूद इस के वृद्धावस्था में सीखना भी उन के लिए एक प्रकार का सुख है।
कहा जाता है कि सच्चे मन से शुरू किया गए काम में अंतत: जरुर सफलता मिलती है। यही सुश्री चो-या के साथ हुआ। पिछले 4 सालों में उन्होंने चीनी राजकीय संग्रहालय में लगी सभी ब़ड़े पैमाने वाली प्रदर्शनियों के लिए व्याख्या का काम किया है। उन्हों ने व्याख्या को सिर्फ किसी एक कृति तक सीमित नहीं रखा,बल्कि इस से जुड़ी राजनीतिक,
सांस्कृतिक औऱ ऐतिहासिक पृष्ठभूमि भी व्याख्या में शामिल की। दर्शकों के प्रश्नोत्तर में उन्हों ने विशेषज्ञों के उद्धृण देने के अलावा अपने विचार भी व्यक्त किये।《प्राचीन रोम की सभ्यता》विषयक एक प्रदर्शनी में व्याख्या करने के समय उन्हें सौ से अधिक दर्शकों ने घेर लिया। उन के इस तरह उन्हें घेरने से बाकी लोगों को चित्र देखने में असुविधा न हो इसलिए दर्शकों को कुर्सियों पर बिठा कर वह खुद घुटनों के बल बैठीं और व्याख्या जारी रखी।
जब हमारी संवाददाता सुश्री चो-यो से इंटरव्यू ले रही थीं,तो एक दर्शक ने सामने आकर बड़ी प्रसन्नता से कहा कि वे सुश्री चो-या की दीवानी हैं।उन्हों ने उन के बारे में बहुत सुना था,जब देखा तो और श्रेष्ठ पाया। उन्हों ने सुश्री चो-या से कहा:
"मुझे चीनी राजकीय संग्रहालय में आप से व्याख्या सुनने के कई मौके मिले हैं। मैं ने आप से अनेक विषयों पर समृद्ध ज्ञान प्राप्त किया है। आप मास्टर स्तर की अध्यापिका हैं।"
सुश्री चो-या ने संवाददाता से कहा कि बहुत से दर्शकों ने उन्हें अध्यापिका कहकर पुकारा है,पर वह हमेशा अपने को एक छात्रा समझती रही हैं। उन के विचार में वह इसलिए लोकप्रिय हैं,क्योंकि वह बुजुर्ग हैं और उन्हों ने जीवन व काम में बहुत से अनुभव अर्जित किए हैं या कहें कि वह कई मामलों में अनुभवी हैं। और तो और वह पेशावर व्याख्याकार नहीं है। प्रदर्शित कृतियों के प्रति आम दर्शकों की ही तरह उन में भी बड़ी जिज्ञासा है। उन्हों ने कहा:
"मैं दर्शकों से आयी हूं। सिर्फ एक स्वयंसेविका के रूप में दर्शकों के साथ विचारों का आदान-प्रदान करती हूं, न कि किसी विशेष कार्यकर्त्ता या विशेषज्ञ की तरह ज्ञान सिखाती हूं। विशेष ज्ञान सिखाना मेरा काम नहीं है और न ही मेरे बस का है। मैं प्रदर्शित कलात्मक कृतियों के प्रति अपने विचारों या अनुभवों को दर्शकों के साथ बांटना चाहती हूं।"
सुश्री चो-या के अनुसार स्वयंसेविका के रूप में चीनी राजकीय संग्रहालय,पेइचिंग प्राचीन राज्य प्रासाद संग्रहालय और चीनी शताब्दी मंच प्रदर्शनी-केंद्र की एक अवकाशकालीन व्याख्याकार बनने के बाद वह अपने को परिपूर्ण महसूस करती हैं,क्योंकि वह अपने को समाज के लिए उपयोगी समझती हैं। व्याख्या का काम बहुत तो है, पर वह घर का कामकाज करने में जरा भी ढ़ील नहीं लाती हैं। उन का कहना है :
"मेरी निगाह में एक महिला के लिए परिवार बहुत महत्वपूर्ण है। जब मैं व्याख्या का काम नहीं करती हूं, तो मैं अन्य गृहणियों की तरह सब्जियां खरीदती हूं,चौका-बर्तन करती हूं,सफाई करती हूं और कभी-कभार सिलाई भी करती हूं। ऐसा करने से मुझे आनन्द मिलता है। मैं अपनी वर्तमान स्थिति से बहुत संतुष्ट हूं।"
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