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(GMT+08:00) 2007-03-19 09:09:44    
माओ त्से-तुंग, चीन का सब से बड़ा पठार

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आज के इस कार्यक्रम में रामपुराभुल पंजाब प्रदेश के बलबीर सिंह और रोहतास बिहार के मनोज कुमार गुप्ता के पत्र शामिल हैं।

रामपुराभुल पंजाब प्रदेश के बलबीर सिंह चीन लोक गणराज्य के संस्थापक माओ त्से-तुंग के बारे में जानना चाहते हैं

माओ त्से-तुंग का जन्म सन् 1893 में दक्षिणी चीन के हूनान प्रांत के एक किसान परिवार में हुआ था। उन्हों ने प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव में तथा मीडिल स्कूल की शिक्षा हूनान प्रांत की राजधानी छांगशा में पाई। युवावस्था में उन्हों ने पेइचिंग विश्वविद्यालय में पढने की कोशिश की। पेइचिंग में रहने के दौरान उन का मार्क्सवाद पर विश्वास जगा। सन्, 1921 में वे और अन्य 11 कम्युनिस्टों ने पूर्वी चीन के शांघाई शहर में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की प्रथम राष्ट्रीय कांग्रेस में भाग लिया।

चीनी क्रांति के लिए माओ त्जे-तुंग ने मार्क्सवाद और रूसी समाजवादी क्रांति के अनुभवों से सीखते हुए सृजनात्मक तौर पर देहातों से शहरों को घेरने तथा सशस्त्र बल से सत्ता हथियाने के क्रांतिकारी सिद्धांत का प्रर्वतन किया।20वीं शताब्दी के दूसरे दशक के अंतिम दौर में उन के नेतृत्व में किसानों के कई सशस्त्र विद्रोह छिड़े और देहाती क्षेत्रों में व्यापक क्रांतिकारी केन्द्र कायम किए गए,जहां जमींदारों की भूमि का किसानों में बंटवारा किया गया। तीसरे दशक में जापानी सैन्यवादियों ने पूर्वोत्तर चीन पर कब्जा कर लिया। इस का मुकाबला करने के लिए माओ त्जे-तुंग की रहनुमाई वाली चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की लाल-सेना ने विश्वविख्यात 12 हजार किलोमीटर का लम्बा अभियान चलाया,जिसे समूची जनता का समर्थन मिला। सन् 1937 में जापान ने चीन पर पूरी तरह आक्रमण कर दिया। चीनी राष्ट्र के भारी संकट की इस नाजुक घड़ी में माओ त्जे-तुंग के नेतृत्व में लाल-सेना ने जापानी आक्रमणकारियों को चीन से खदेड़ने में सफलता हासिल की। लेकिन इस के बाद चीन की कोमिनतांग सरकार ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ मिली-जुली सरकार के गठन से साफ इन्कार कर दिया और अपनी ताकतवर सैनिक शक्ति तथा अमरीका के समर्थन के बलबूते देश को गृहयुद्ध में धकेल दिया। पर माओ त्जे-तुंग की अगुवाई में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और चीनी जन मुक्ति सेना ने चीनी जनता के व्यापक समर्थन से 3 सालों के भीतर कोमिनतांग की शक्तिशाली सेना को परास्त कर दिया और थाईवान को छोड़ चीन के अन्य सभी भागों पर अधिकार कर लिया। सन् 1949 की पहली अक्तूबर को माओ त्जे तुंग ने चीन लोक गणराज्य की स्थापना की घोषणा की। कुछ दिन बाद वे चीन की केंद्रीय सरकार के अध्यक्ष चुने गए।

माओ त्से-तुंग एक महान विभूति थे। उन की चर्चा एक दिन में भी पूरी नहीं हो सकती। उन के जीवन पर अनेक किताबें उपलब्ध हैं।

रोहतास बिहार के मनोज कुमार गुप्ता का प्रश्न है कि चीन का सब से बड़ा पठार कौन सा है?

चीन का सब से बड़ा पठार छिंगहाई-तिब्बत पठार है,जो विश्व का सब से ऊंचा पठार भी है.इस के कारण वह दुनिया की छत के नाम से मशहूर है.समुद-सतह से कोई 3500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस पठार का क्षेत्रफल 24 लाख वर्गकिलोमीटर है.इस पठार के दायरे में पूरा तिब्बत स्वायत्त प्रदेश,छिंगहाई प्रांत,स्छ्वान प्रांत का पश्चिमी भाग,सिंगच्यांग वेवुर स्वायत्त प्रदेश का दक्षिणी भाग, कानसू और युन्नान प्रांतों के कुछ क्षेत्र समावेशित हैं.

पठार कीेचारों ओर ऊंचे-ऊंचे पहाड़ खड़े हैं.दक्षिण में हिमालय पर्वत,उत्तर में अरचिंग पर्वत,खुनलुन पर्वत और छिल्यान पर्वत,पश्चिम में खालाखुनलुन पर्वत और पूर्व में हंगत्वान पर्वत हैं.खुद पठार पर ही थांगकुला,कांगतिस और न्यानछिंगथांगकुला आदि पर्वत हैं.ये सभी पहाड़ सब के सब 5500 मीटर ऊंचे हैं,जिन में से हिमालय पर्वत की 16 चोटियों की ऊचाई 8000 मीटर से भी अधिक है.

छिंगहाई-तिब्बत पठार पर्वतमालाओं से अनेक बेसिनों और विशाल घाटियों में बंटा हुआ है,जहां नद-नदियों और झीलों की बहुतायत है.छिंगहाई झील और नामुछो झील चीन की प्रसिद्ध नमकीन पानी की झीलें हैं.

छिंगहाई-तिब्बत पठार चीन की यांगत्ज नदी, पीली नदी,लानछांग नदी,नूच्यांग नदी औऱ यालूज़ांगपू नदी तथा अन्य एशियाई देशों की प्रमुख नदियों का उद्गम स्थान भी है.समृद्ध जल संसाधन के चलते पठार पर बहुत से पन-बिजली घर कायम हैं.इन से फायदा उठाकर वहां कोयला,लोहा-इस्पात सामग्री,रासायनिक वस्तुएं,कागज और ऊनी कपड़े आदि के उत्पादन व निर्माण वाले उद्योगों का बड़ा विकास हुआ है।

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