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(GMT+08:00) 2007-03-09 15:12:08    
हितेषी दादी रेइहान .कासिम की कहानी

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aदोस्तो , हाल ही में चीन का दूसरा दस श्रेष्ठ मां पुरस्कार समारोह देश की राजधानी पेइचिंग में हुआ , सिन्चांग से आई वेवूर जाति की रिटायर असिस्टेंड प्रोफेसर रेइहान . कासिम को भी इस गौरवपूर्ण उपाधि से सम्मानित किया गया । पिछले दस से ज्यादा सालों में दादी रेइहान .कासिम से एक हजार से ज्यादा गरीब बच्चों को निस्वार्थ सहायता मिली थी , वे सभी रेइहान . कासिम को प्यारी दादी के नाम से संबोधित करते हैं ।

चीन की दस श्रेष्ठ मां का पुरस्कार मिलने पर रेइहान .कासिम के परिजनों , रिश्तेदारों व दोस्तों को असीम खुशी हुई । उन से मदद मिले बच्चों का मन और अधिक प्रफुल्लित हो उठा , उन्हों ने हितेषी दादी नामक वेवूर लोक गीत उपहार स्वरूप गायाः

गीत के बोल में कहा जाता है , मां जी ,मां जी , प्यारी मां जी , मैं कहना चाहता हूं कि आप हमारी हितेषी माता हैं , सर्वसम्मानीय दादी है और सर्वप्रिय मम्मी हैं ।

दादी रेइहान. कासिम रिटायर होने से पहले सिन्चांग तेल कालेज की एक असिस्टेंड प्रोफेसर थी , अपने तीस से ज्यादा शिक्षा जीवन में उन्हों ने बेशुमार छात्रों को प्रशिक्षित किया था । उन की अपनी चार संतानें भी उन्हीं की देखभाग से सुयोग्य लोग बनीं । रिटायर होने के बाद उन्हों ने आरामदेह जीवन त्याग कर गरीब बच्चों को मदद देने के बड़े परिश्रम का काम अख्तियार कर लिया । उन का यह निश्चय एक संयोग की घटना से प्रभावित हो कर किया गया था ।

वर्ष 1995 के एक दिन की बात थी , दादी रेइहान सब्जी मंडी गयी , वहां उन्हें किसी बच्चे के रोने की आवाज सुनाई पड़ी , वे आवाज की दिशा में गयी और देखा कि कुछ लोग दो बच्चों को गाली दे रहे है , पूछ कर पता चला कि बच्चों ने चोरी की है । दादी रेइहान ने लोगों को गाली देने से रोका और दोनों बच्चों को घर ले गयी ।

उन्हों ने बच्चों को नया नया वस्त्र पहनाया और गर्म गर्म खाना खिलाया । बच्चों के मुंह से उन्हें मालूम हुआ कि बच्चों का घर बहुत गरीब है , उन के स्कूल जाने का पैसा नहीं है , इसलिए जीविका के लिए वे चोरी करने लगे । बच्चों की बातों पर रेइहान को बहुत दुख हुई । इस घटने की चर्चा करते हुए उन्हों ने कहाः

उसी रात , मेरी नींद हराम हो गयी । मेरी अनुभूति बहुत जटिल थी । बच्चों की हालत पर सोचने से मन में बड़ा कलेश हो उठा । मैं सोचती हूं कि इन दो बच्चों को असहाय हालत में नहीं रहने दे दिया जाना चाहिए, उन्हें शिक्षा दिलायी जानी चाहिए , ताकि वे बुरे जीवन से बच जाएं । मैं ने सोचा कि अब समाज में ऐसे कुछ बच्चे भी हैं , जो गरीबी के कारण स्कूल नहीं जा सकते और सड़कों पर आवारा रहते हैं और कुछ तो चोरी के धंधे में फंस पड़े हैं । वे मातृ प्यार और स्नेह से वंचित हैं । मैं भी एक मां हूं , जिस तरह मैं अपने बच्चे को प्यार व स्नेह देती हूं , उन बच्चों को भी दूंगी ।

अंत में रेइहान, कासिम ने इन बच्चों को अपने घर में रखने और उन की देखभाल करने का फैसला लिया । वे खुद दोनों को पढ़ाती हैं । उन की इस कोशिश का जल्द ही अच्छा नदीजा निकला । दोनों बच्चे नए जीवन से बहुत खुश हैं और पढ़ने में बहुत जोश आया । बच्चों के घर वाले रेइहान की मदद से बहुत प्रभावित हुए और कुछ उपहार देने आए , लेकिन रेइहान ने उन के उपहार लेने से इंकार किया ।

यह कहानी शीघ्र ही चारों ओर फैली , आसपास के लोगों ने अन्य 47 अनाथ बच्चे रेइहान के पास पहुंचाये ,रेइहान दिन में तीन किस्तों में उन्हें पढ़ाती थी । उन की स्नेही शिक्षा से बच्चों ने पुरानी खराब आदत छोड़ दी और पढ़ाई में मन लगाया । बच्चों की प्रगति पर रेइहान को बहुत ही संतोष और राहत मिला । उन्हों ने कहाः

मैं इन बच्चों को प्यार करती हूं , क्योंकि मैं एक मां हूं । मैं उन्हें मातृ प्यार देना चाहती हूं । मैं एक शिक्षक भी हूं , शिक्षक का काम ज्ञान प्रदान करना है । मैं उन्हें हरसंभव प्रशिक्षण देने की इच्छुक हूं । बच्चों के अभिभावक मेरे पर विश्वास रखते हैं , इसलिए शिक्षक के रूप में मुझे अपना कर्तव्य अच्छी तरह निभाना चाहिए ।

रेइहान .कासिम की कल्याण कार्यवाही से आसपास के बहुत लोग भी प्रेरित हुए , वे उन की प्रशंसा करते हैं और कुछ लोग गरीब बच्चों को सहायता देने के लिए पैसा भी निकालने लगे । इसतरह हितेषी दादी जैसे लोगों की संख्या बढ़ती चली गयी । रेइहान की सहेली , रिटायर अध्यापिका जेतुनाम उन में से एक है , उन्हों ने कहाः

मेरे विचार में मुसिबतों से पीड़ित बच्चों के लिए कुछ हितकारी काम करने से कोई भी इंकार नहीं करता है । मैं एक साल दो सौ य्वान निकाल कर देती हूं , जो मेरे लिए कोई साख की चीज नहीं है । मैं रिटायर हूं और घर में आराम करती हूं , मैं अपनी वृद्धावस्था के वक्त को अनिर्थक गुजरने नहीं दूंगी । जब बच्चों को दादी , दादी पुकारते हुए सुना , तो मन पूरी सुख से भरा हुआ है । अब अधिक से अधिक लोग हमारे इस परोपकारी काम में शामिल हो गए , हमें अपनी कोशिश पर बड़ा गर्व महसूस हुआ है ।

मिडिल स्कूली छात्रा गुजालनूर का पिता कब से ही चल बसा , उस की मां का भी कोई जॉब नहीं है । घर की दशा काफी खराब है । खबर पाने के बाद रेइहान कासिम और अन्य हितेषी महिलाओं ने तुरंत उस के घर स्कूली फीस और रोजमर्रे की चीजें पहुंचायीं। उन दादियों के प्यार की याद करते ही गुजालनूर की आंखों में आंसू भर आयी । उन का कहना हैः

जब दादी को पता चला कि मेरे घर में कोई कठिनाई आयी , तो वे हमें स्कूली फीस के लिए पैसा देने आती हैं और त्यौहारों के अवसर पर कपड़े और चावल व तेल देती हैं । उन की मदद नहीं होती , तो न जाने मेरे परिवारे का दिन कैसे गुजरता ।

ह्ली जाति की छात्रा मा येन को भी इन परोपकार दादियों की मदद मिली है , उस की और उस की छोटी बहन की स्कूली फीस उन की सहायता से दी गयी । वे सर्दियों में उस के घर को गर्म वस्त्र देती हैं और त्यौहार के दिन उस के विकलांग बाप और मजदूरी करने वाले मां का हाल चाल पूछने आती हैं । मा येन ने कहाः

मैं इन तीस दादियों की बहुत बहुत आभारी हूं , उन की मदद से मैं स्कूल जा पाती हूं । वे बहुत स्नेही हैं और मेरी सगी मां की भांति हैं । मैं अवश्य मेहनत से पढ़ती हूं और बड़ी होने पर इन दादियों की तरह कल्याण का काम करुंगी ।

पढ़ाई से वंचित बच्चों के अलावा बहुत से रोग पीड़ित बच्चों को भी परोपकार दादियों से सहायता मिली है । अपूर्ण आंकड़ों के अनुसार रेइहान ने 18 गंभीर रोग से पीड़ित बच्चों के लिए चिकित्सा का खर्च जुटाया है । उन का परोपकारी काम भी चारों ओर फैल गया और पूरे समाज से ध्यान प्राप्त हुआ, वर्ष 2005 में सिन्चांग की परोपकारी सोसाइटी के समर्थन में प्यारी दादी कोष कायम हुआ और कोष को तीन लाख य्वान की राशि चंदास्वरूप हासिल हुई ।

रेइहान .कासिम ने कहा कि गरीब बच्चों को सहायता देने के काम से उन्हें जीवन का महत्व मालूम हुआ , हरेक गरीब बच्चे को अपने बच्चे की तरह मातृ प्यार मिलने देना उन के जीवन का लक्ष्य है । उन्हों ने कहाः मेरी उम्र 68 साल हुई, लेकिन मैं अपने हितेषी काम को जारी रखूंगी और अधिक से अधिक युवाओं को भी प्रेरित कर परोपकारी काम में लगा दूंगी , जब तक मैं जीवित रहूंगी , तब तक मैं ऐसा काम करती रहूंगी।