प्रोफेसर बेई खेई व्येन महान भारतीय कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कविताओं का चीनी में अनुवाद करने वाले सुप्रसिद्ध अनुवादक हैं।
प्रोफेसर बेई खेई व्येन ने वर्ष 1965 से 1969 तक ठाका के बंगला अकादमी में बंगाली पढ़ी। स्नातक होने के बाद, वह चाइना रेडियो इंटरनेशनल के बंगाली विभाग में अनुवादक के रुप में काम करने लगे। आजतक उन्हें चाइना रेडियो इंटरनेशनल में बंगाली प्रसारण की कार्य करते हुए 34 वर्ष हो चुके हैं। इसी दौरान, उन्होंने नाना प्रकार के समाचारों और आलेखों के कोई पश्चात लाख शब्दों का बंगाली में अनुवाद किया।
उन के द्वारा लिखे गये आलेख (जन कवि ) को वर्ष 1999 का चाइना रेडियो इंटरनेशनल का द्वितीय पुरस्कार प्राप्त हुआ। इस के अलावा, उन्होंने खासा बड़ी तादात में रवन्द्रनाथ ठाकुर की साहित्यक रचनाओं का चीनी में अनुवाद किया। हाल ही में मैंने प्रोफेसरबेई खेई व्येन से इंटरव्यू लिया। यह पूछे जाने पर कि आप ने कब बंगाली साहित्यिक रचनाओं का अनुवाद शुरु किया, तो वे कह रहे हैं, वर्ष 1976 के बाद चीन में विदेशी साहित्यिक रचनाओं का चीनी में अनुवाद करने की एक लहर सी उठ गई। इस से प्रेरित हो कर मैंने बंगाली साहित्यिक रचनाओं का चीनी अनुवाद करना शुरु किया। मेरी अनुदित प्रथम बंगाली साहित्यिक रचना, एक कहानी संग्रह थी, नाम है ---उपद्रवी जवानों की कहानी---मोहा बिद्रोहिर खाहिनी शुरु में साहित्यिक अनुवाद में मुझे बड़ी मुश्किल महसूस हुई। चुंकि चीन में अब तक कोई बंगाली चीनी शब्द कोश नहीं है, इसलिए, जब कोई कठिन शब्द मिला तो पहले बंगाली अंग्रेजी शब्द कोश का सहारा लेना, फिर अंग्रेजी चीनी शब्द कोश का सहारा लेना पड़ता था। जब एक बहु अर्थी शब्द मिला, तो लोहे का चना चबाना पड़ा। चुंकि हाई स्कूल पास होने के फौरन बाद मैं बंगाली सीखने बंगाल देश गया। इसलिए, मेरी साहित्यक रचनाओं की बुनियाद पुख्ता नहीं थी, सो अनुवाद करने के साथ साथ मुझे चीनी साहित्यिक रचनाओं का अध्ययन करना पड़ता था। ताकि जिन से पौष्टिकता ग्रहण किया जा सके। इसीबीच, मैंने ---बंगलादेश की कहानी संग्रेह---और उपन्यास ---लाल सालु-का चीनी में अनुवाद किया। किसी कारण से ये दोनों प्रकाशित नहीं हो पाया, पर ये मेरे लिए सीढियां जैसी थीं। जिन के सहार आखिर में मैं अनुवाद की चोटी पर चढ़ने में सफल हो सका। रवीन्द्रनाथ ठाकुर की प्रसिद्ध रचना ---नौका डूबी--- और बंगला देश के उपन्यास ----गोरमोन जानाला ----- का मैंने चीनी में अनुवाद किया औऱ प्रकाशित किये गये। मैंने सुना है कि आप रवीन्द्रनाथ ठाकुर की लगभग सभी कविताओं का चीनी में अनुवाद कर चुके हैं। कृपया आप हमारे श्रोताओं के साथ इस क्षेत्र के अपने अनुभव का चर्चा कीजिये।
रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कविताओं का चीनी में अनुवाद करना मेरे लिए एक बिलकुल आकस्मिक बात है। वर्ष 1989 में जब मैं पूर्वी चीन के शानतुंग प्रांत की राजधानी 济南में आयोजित भारतीय साहित्यक रचनाओं के बारे में एक संगोष्ठी में भाग ले रहा था, तो हांग चओ विश्विद्यालय के प्रोफेसर ने मुझ से कहा, अंग्रेजी से चीनी में अनुवादित रवीन्द्रनाथ ठाकुर की अधिक कविताएं गद्य-काव्य हैं। क्या, रवीन्द्रनाथ ठाकुर की मूल कविताएं गद्य काव्य हैं न। मैंने कहा नहीं। उन्होंने कहा, वर्तमान अनुवादित कविताओं के अनुसार, रवीन्द्रनाथ ठाकुर का जो मूल्यांकन किया गया है, वह सर्वोगीण नहीं है। क्या, आप रवीन्द्रनाथ ठाकुर की मूल कविताओं का चीनी में अनुवाद कर सकते हैं। मैंने कहा, मुझे कोशिश करने दीजिए। मुझे कोशिश करने दीजिए। इस वायदे ने मुझे टेढ़े मेढ़े खोजपूर्ण रास्ते पर घकेल दिया।
पेइचिंग लौटने के बाद मैंने किसी से रवीन्द्रनाथ ठाकुर बंगाली भाषा में कविता संग्रह लिया। पर केवल कुछ एक पृष्ठ पढ़े, तो मेरा सिर चकराने लगा। पता नहीं था कि कविताओं में उन्होंने क्या कहा है। आधी शताब्दी से पहले रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने जो कविताएं लिखीं, उन का व्याकरण, वर्तमान काल की अन्य रचनाओं से बिलकुल भिन्न था। मैंने बंगाली विशेषज्ञ, जो मेरे विभाग में काम करते थए, से सीखा, तब से मैं धीरे धीरे रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कविताएं समझ गया। रवीन्द्रनाथ ठाकुर अनेक शैलियों में कविता लिखते थे। उन की कविताओं का अनुवाद करने के साथ में प्राचीन चीन के कवियों और वर्तमान चीन के कवियों की कविताओं का अध्ययन भी करता था। चार वर्ष के बाद मैंने ---रवीन्दर्नाथ ठाकुर की तीन सौ कविताओं का चीनी में अनुवाद किया। इस कविता संग्रह का वर्ष 1987 में प्रकाशन किया गया। इस के बाद रवीन्द्रनाथ ठाकुर का चुंनिदा गीति काव्य संग्रह---ठाकुर का दार्शनिक कविता संग्रह---ठाकुर का प्रेम कविता संग्रह---ठाकुर का गद्य संग्रह ----ठाकुर का बाल कविता संग्रह ---आदि मेरे अनुवादित अनेक रचनाओं का प्रकाशन किया गया। इस के अलावा, मेरे अनुवादित भारतीय कवि बिषणु दे बुदोदेब बोसू , चिबोनानदो दास तथा बंगाल देश के नाजुल इस्लाम, जाशिम ऊदीन आदि कवियों संग्रह भी प्रकाशित किये गये। हाल ही में ---रवीन्द्रनाथ ठाकुर की ग्रंथावली---उत्तरी चीन के ह पेई प्राकश गृह ने प्रकाशित की। हम जानते हैं कि आप इस ग्रंथावली के संपादकों में से एक हैं। आप ने इस ग्रंथावली की लगभग सभी कविताओं का अनुवाद किया। क्या आप इस बारे में हमारे श्रोताओं को कुछ बता सकते हैं।
प्रोफेसर पाई ने कहा, जी हां। रवीन्द्रनाथ ठाकुर की ग्रंथावली की लगभग सभी कविताओं का मैंने अनुवाद किया है---रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने अपनी जिन्दगी भर में कुल 52 कविता संग्रह प्रकाशित करवाये। जिन की कुल 90 हजार पंक्रियां हैं। इस ग्रंथावली में ठाकुर के 37 कविता संग्रह और 93 गीतों का मैंने अनुवाद किया।जिन की कुल 70 हजार पंक्तियां हैं। इस का अर्थ है कि रवीन्द्रनाथ ठाकुर की तमान कविताओं और गीतों का चीनी में अनुवाद किया जा चुका है। कहा जा सकता है कि यह चीन के अनुवाद इतिहास में एक मील पत्थर की हैसियत रखता है।
इस ग्रंथावली की रचनाएं चीन के विश्विद्यालयों के विदेशी साहित्य संबंधी कोस में संदर्भ पाठ्य सामग्री के रुप में पढ़ायी जाती है। प्रिय, श्रोताओ, अभी आप भारतीय महा कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कविताओं का चीनी अनुवादक, प्रोफेसर पाई खेई य्वेन के साथ हुए साक्षात्कार सुन रहे थे।
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