थाङ सरकार ने सिंचाई-साधनों के निर्माण की ओर अत्यधिक ध्यान दिया, बांस अथवा लकड़ी के रहट तथा नीचे से ऊपर पानी पहुंचाने वाले रहट का आविष्कार भी इसी काल में हुआ।
सिंचाई सुविधाओं में वृद्धि होने से बंजर भूमि को खेतीयोग्य बनाने में मदद मिली और कृषि-पैदावार बढ़ी।
थाङ राजवंशकाल में चाय की खेती एक नकदी फसल के रूप में दक्षिण चीन के अनेक इलाकों में की जाने लगी और उसके बड़े-बड़े बगीचे जगह-जगह दिखाई देने लगे।
दस्तकारी उद्योग ने भी पर्याप्त प्रगति की। राजकीय कर्मशालाओं में श्रम का विभाजन बड़ी सूक्ष्मता से किया गया था तथा निजी मिलकियत की कर्मशालाओं की संख्या काफी बढ़ गई थी।
तिङचओ (वर्तमान हपेइ प्रान्त का चङतिङ) नामक स्थान के एक धनी व्यापारी हो मिङय्वान की कर्मशाला में 500 करघे थे। दस्तकारी की वस्तुएं बनाने के कौशल में सुधार हुआ।
रेशम कताई-बुनाई विधि को परिष्कृत किया गया। थाङ राजवंश के जमाने में तांबे, लोहे, चांदी और टिन का खनन करने व गलाने के 100 से ज्यादा कारोबार देशभर में फैले हुए थे।
चीनीमिट्टी के बरतन बनाने का काम इस काल में उत्कर्ष के एक नए स्तर पर पहुंच गया। शिङचओ (वर्तमान हपेइ प्रान्त का शिङथाए) और य्वेचओ (वर्तमान चच्याङ प्रान्त का शाओशिङ) के बरतन सबसे प्रसिद्ध व उत्तम माने जाते थे।
थाङ राजवंशकाल के भट्ठों में हरी चीनीमट्टी (सेलडान) के बरतन बहुत बड़ी मात्नी में बनाए जाते थे, जो अपनी उच्च क्वालिटी के लिए प्रसिद्ध थे।
सुप्रसिद्ध थाङकालीन तिरंगे मृद्भाण्ड सचमुच ही तीन रंग लिए होते थे-पीला , हरा और बेजनी(या नीला)। भांति-भांति की रचना व आकार वाले इन मृद्भाण्डों के तीनों रंगों की सुस्पष्टता, चटकपन और सजीवता भट्ठे में पकने के बाद पूरी तरह निखर आती थी।
ये मृद्भाण्ड अपनी मनोहारी सुन्दरता के लिए दुनियाभर में मशहूर थे।
पोतनिमार्ण और कागजनिमार्ण उद्योगों ने भी पर्याप्त प्रगति की। थाङ राजवंश अपने पनपते वाणिज्य के लिए भी प्रसिद्ध था। देशभर में अनेक नगर व कस्बे खड़े हो गए।
छाङआन, ल्वोयाङ, याङचओ, चिङचओ (वर्तमान हूपेइ प्रान्त का च्याङलिङ), मिङचओ (वर्तमान चच्याङ प्रान्त का निङपो), छङतू और प्येनचओ उस काल के प्रसिद्ध नगर थे।
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