विश्व में प्रचलित पंचांग के अनुसार वर्ष 2007 की 10 फरवरी चीनी पंचांग के अनुसार वर्ष 2006 की 23 दिसम्बर पड़ती है। चीनी पंचांग के अनुसार हर साल की इस तारीख को चूल्हा-देवता-पूजन दिवस मनाए जाने की परंपरा रही है। इसी दिन से परंपरागत चीनी त्योहार—वसंतोत्सव का तैयारी कार्य औपचारिक रूप से शुरू होता है।
चीनी लोककथाओं में बहुत से देवताओं का वर्णन किया गया है। उन में से चूल्हा-देवता सब से बुजुर्ग और प्रतिष्ठित माना जाता है। 2000 वर्षों से भी अधिक समय पहले से चीनी लोगों ने चूल्हा-देवता की पूजा करनी शुरू कर दी थी।
यह लोककथा प्रचलित रही है कि चूल्हा-देवता ईश्वर द्वारा नियुक्त ऐसा एक देवता है,जो मुख्य रूप से लोगों के घरों में चूल्हा-चक्की के काम का बंदोबस्त करता है और इस काम के प्रति लोगों के रवैये और कार्यवाहियों की निगरानी करता है। उसे घर का रक्षक भी माना जाता है। पुराने जमाने में चीनियों के रसाई-घरों में चूल्हा-देवता की पूजा के लिए विशेष स्थान निर्धारित होता था और दीवारों पर उस का चित्र भी बनाया या चिपकाया जाता था,जिस पर घर का मालिक जैसे शब्द लिखे रहते थे। चित्र के दोनों ओर एक-एक काग़ज की पट्टी लगी रहती थी,जिस पर अलग-अलग तौर पर "भगवान को शुभ रिपोर्ट दो" और "मानव जाति की रक्षा करो" लिखा रहता था। यह माना जाता था कि साल पूरा होने के साथ ही चूल्हा-देवता ईश्वर के दरबार में स्वर्ग जाते हैं और उन्हें सभी लोगों के बीते एक साल के आचरण की खबर देते हैं और ईश्वर उन की रिपोर्ट के अनुसार आने वाले नए साल में इन लोगों को लाभ या नुकसान पहुंचाना तय करते हैं। चूल्हा-देवता जिस दिन स्वर्ग जाते थे वह चीनी पंचांग के अनुसार दिसम्बर की 23 तारीख पड़ती है। इसलिए चीनी लोगों द्वारा इसी दिन चूल्हा-देवता की पूजा करने का चलन था।
दिन ढले परिवार के सभी लोग रसोई-घर में इकट्ठे होकर चूल्हा-देवता के चित्र के सामने तरह-तरह की खाने की चीजें परोसते थे और धूप-बत्तियां जलाकर पूजन करते थे। खाने की चीजों में थांग-क्वा नामक एक मिठाई का होना अनिवार्य था। लोककथा के अनुसार चूल्हा-देवता को यह मिठाई बहुत पसंद थी।इसलिए यह मिठाई काफी चिपचिपी बनाई जाती थी,ताकि उसे खाते समय चूल्हा-देवता का मुंह चिपक जाए,और इस तरह वह ईश्वर के सामने परिवार के लोगों का बुरा-भला कहने में असक्षम हो जाएं । चूल्हा-देवता की पूजा करने के बाद उन के चित्र को दीवार से उतारकर चूल्हे में डाल दिया जाता था। नतीजतन चूल्हा-देवता चूल्हे की चिमनी के रास्ते स्वर्ग जाते थे। एक हफ्ते के उपरांत यानी कि नए साल की पूर्वसंध्या पर लोग चूल्हे-देवता की वापसी के स्वागत में रसोई-घरों की दीवारों पर फिर से उन के नए चित्र चिपकाते थे। इस तरह चूल्हा-देवता स्वर्ग से वापिस लौट कर फिर से लोगों की रक्षा और निगरानी का अपना कर्तव्य निभाना शुरू कर देते थे।
चीनी लोग चूल्हे-देवता की पूजा को एक छोटा पर्व मानते हैं। क्योंकि इसी दिन से चीन में सब से बड़े परंपरागत त्योहार—वसंतोत्सव की तैयारी का काम शुरू होता है। लोग घरों की सफाई करने और खाने की चीजें बनाने जैसे तैयारी के सभी कामों की शुरूआत करते हैं। यह रीति-रिवाज हालांकि पुराना पड़ चुका है और चीन में अधिकांश लोग इस रीति रिवाज का पालन नहीं करते,फिर भी इने-गिने गांवों में कुछ लोग अभी भी अपने घरों की रसोई में चूल्हा-देवता की पूजा करते हैं और उन के चित्र भी दीवारों पर चिपकाते हैं। पूजन की रस्म चाहे न रह गई हो, पर लोगों को चूल्हे-देवता की याद अभी भी आती है। चूल्हा-देवता-पूजन दिवस से ही बाजार में रौनक अपने उफान पर आने लगती है। सड़कों पर लोगों के हाथों में तरह-तरह की मिठाइयों और अन्य खाद्य पदार्थों से भरे उपहारों के छोटे-बड़े डिब्बे दिखाई पड़ने लगते हैं। सरकारी संस्थाओं और विभिन्न प्रकार की कंपनियों में कार्यरत बड़ी संख्या में लोग आने वाले नए साल की छुट्टियां घऱ लौटकर परिजनों के साथ मनाने के लिए दफ्तरी काम निपटाने में तेजी लाने लगते हैं । संक्षेप में चूल्हा-देवता-पूजन दिवस से आम दिनों की तुलना में लोगों की खुशियों और व्यस्तता में वृद्धि शुरू होती है।
|