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(GMT+08:00) 2007-02-12 09:51:04    
आँस्कर में चीनी फिल्म की सक्रिय भागीदारी

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पिछली शताब्दी के 80 वाले दशक में चीनी फिल्म-उद्योग का पुन:विकास शुरू हुआ। पांचवीं पीढ़ी के फिल्म-निर्देशकों ने खोजी महत्व की बहुत सी फिल्में बनाईँ,जो विदेशी फिल्म-समारोहों में पुरस्कृत की गयीं।सन् 1991 में श्री चांग ई-मो की फिल्म《लालटेंन》को वेनिस अंतर्राष्ट्रीय फिल्म-समारोह में रजत-पुरस्कार मिला।दूसरे साल इसी फिल्म समारोह में उन की अन्य एक फिल्म《मुकदमा》ने स्वर्ण जीता।सन् 1994 में 《जीवन》नामक उन की फिल्म फ्रांस के केन्नस फिल्म-समारोह में चुनाव-समिति के पुरस्कार से सम्मानित की गयी।इधर के कुछ वर्षों में चीनी युवा पीढ़ी के फिल्म-निर्देशकों की फिल्मों को भी एक के बाद एक अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुए हैं।

2005 में फिल्म-निर्देशक वांग श्याओ-श्वाई की फिल्म《छिंग-हुंग》ने केन्नस फिल्म-समारोह में चुनाव-समिति का पुरस्कार जीता।अन्य एक चीनी फिल्म-निर्देशक चांग-य्वान की फिल्म《सूर्यमुखी》को 53वें स्पेनिश सेन सेपास्टियन अंतर्राष्ट्रीय फिल्म- समारोह में सवर्श्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार प्राप्त हुआ।कुछ समय पहले चीनी महिला फिल्म-निर्देशक मा ली-वन की फिल्म《हम दोनों》टोक्यो अंतर्राष्ट्रीय फिल्म-समारोह में निर्देशक और अभिनेत्री की श्रेणियों के सर्वोच्च पुरस्कारों से नवाजी गयीं।पिछले 20 वर्षों में चीनी फिल्मों के विश्व फिल्म-जगत पर प्रभाव के बारे में फ्रांस की एक फिल्म-पत्रिका के प्रमुख संपादक श्री जेन.मिचेल.फ़्रोडोन ने कहा :

"पिछली सदी के 80 वाले दशक के शुरू से ही अधिकाधिक चीनी फिल्में फ्रांस समेत बहुत से यूरोपीय देशों में दिखाई गयी हैं,जो विश्व को चीन द्वारा दिया गया उपहार मानी गयी हैं।विश्व के विभिन्न देशों के दर्शक इन फिल्मों के जरिए चीनियों की नयी जीवन-शैली,नए विचारों और चीन की रमणीक प्राकृतिक छटा,परंपरागत व आधुनिक गीत-संगीत से वाकिफ हो गए हैं।यह वैश्विक फिल्मोद्योग यहां तक कि पूरी वैश्विक संस्कृति में चीन का बड़ा योगदान है।"

चीनी फिल्मों को यूरोप और एशिया के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म-समारोहों में अनेक पुरस्कार हासिल हुए हैं,तो भी वे ऑस्कर से वंचित रही हैं।इस का क्या कारण है? चीनी मीडिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर श्री हू-ख का विचार है :

"मैं समझता हूं कि इस का कारण फिल्मों के प्रति दृष्टिकोण है।पश्चिमी लोग व्यक्तित्व उभारने वाले कलात्मक सृजन को महत्व देते है और साथ ही संस्कृति की विविधताओं को प्रेरित करते हैं ।उन की नजर में वह फिल्म अच्छी है,जिस में अन्य फिल्मों से अगल विशेषता व ताजगी होती है।विशेषता और ताज़गी उन के लिए सब से बड़ी दिलचस्पी है।"

ऑस्कर पुरस्कार पिछली शताब्दी के 30 वाले दशक में स्थापित हुआ। लम्बे अरसे से उसे विश्व में अधिकांश फिल्मकारों द्वारा अपेक्षाकृत निष्पक्ष औऱ विशेषज्ञतापूर्ण माना जाता रहा है।उस की प्रतिष्ठा वेनिस फिल्म समारोह,केन्नस फिल्म समारोह और बर्लिन फिल्म समारोह से जरा भी कम नहीं है।प्रोफेसर हू-ख का मानना है कि अमरीका की कुछ फिल्में आधुनिक डिजिटल तकनीक से बनीं हैं और आंखें लुभाने वाले दृश्यों के सहारे फिल्म बाजार में हिट रहीं,पर वैचारिक तौर पर उन का भारी महत्व नहीं है।वे दर्शकों को अचंभे में डालती हैं,पर प्रभावित नहीं कर सकतीं।अजीबोगरीब बात है कि इधर के कुछ वर्षों में ऑस्कर पर इस तरह की फिल्में हावी रही हैं।इस से ऑस्कर की विशेषज्ञता पर सवाल उठा है।श्री हू-ख के विचार में चीन,जापान और दक्षिण कोरिया जैसे एशियाई देशों के फिल्मकारों को सामान्य मन और साधारण दृष्टि से ऑस्कर को देखना चाहिए।उन का कहना है :

ऑस्कर के बहुत से ऐसे मापदंड हैं,जिन पर खरा उतरना चीनी फिल्मों के लिए बहुत कठिन है।ये मापदंड अमरीकी या पश्चिमी देशों की रुचि के अनुसार बनाए गय़े हैं,जबकि चीनी फिल्में खुद चीनियों की रुचि को प्राथमिकता देती हैं।ऑस्कर न मिल पाने का मतलब यह नहीं है कि चीन और अन्य एशियाई देशों के फिल्मकार श्रेष्ठ फिल्म नहीं बना सकते हैं।वास्विकता यह है कि चीन समेत अनेक एशियाई देशों की फिल्मों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त हुई है।"

उन का मानना है कि फिल्मकारों के लिए अपने पसंदीदा विषय पर एकाग्रता से फिल्म बनाना सब से महत्वपूर्ण है।फिल्मों के जरिए कला के प्रति अपने अनुभव औऱ आदर्श को दर्शकों तक पहुंचाने से ही फिल्मकार सफल हो सकते हैं।