परिवार की विधवा स्त्नी को 30 मू भूमि मिलती थी और यदि उसका एक अलग परिवार होता था, तो ऐसी विधवा स्त्नी को 50 मू भूमि तक दी जा सकती थी। स्त्नियों में केवल विधवाओं को ही भूमि मिलती थी।
त्निपक्षीय कर व्यवस्था के अन्तर्गत प्रत्येक वयस्क पुरुष को अनिवार्यतः लगान के तौर पर 2 तान अनाज और नजराने के तौर पर 20 फुट रेशम तथा 3 औंस कच्चा रेशम हर साल सरकार को देना पड़ता था।
इसके अलावा उसे हर साल 20 दिन की सरकारी बेगार भी करनी होता थी। जो व्यक्ति किसी कारणवश बेगार नहीं कर पाता था उसे अपनी अनुपस्थिति के बदले 3 फुट रेशम प्रति दिन के हिसाब से सरकार को देना पड़ता था।
जहां तक प्रशासकीय संगठनों का संबंध था, थाङ राजवंश ने थोड़े-बहुत परिवर्तनों के साथ स्वेइ राजवंश की व्यवस्था को अपनाया। स्थानीय प्रशासन में, प्रान्तों व काउन्टियों की दो-स्तरीय व्यवस्था कायम रही, किन्तु सीमावर्ती क्षेत्र तथा सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्र इस के अपवाद थे, जहां का प्रशासन क्षेत्रीय गैरिजन कमानों के हाथ में था।
गैरिजन कमान का सर्वाच्च अधिकारी अपने क्षेत्र के नागरिक व फौजी मामलों के लिए जिम्मेदार होता था। सम्राट थाएचुङ के शासनकाल में देश को स्थलाकृति के अनुसार 10 क्षेत्रों में विभाजित किया गया था और सम्राट श्वेनचुङ के शासनकाल में इस विभाजन का विस्तार कर 15 क्षेत्र बना दिए गए।
प्रत्येक क्षेत्र में एक महानिरीक्षक ( इंस्पेक्टर जनरल) होता था, जो प्रान्त व काउन्टी स्तर के अधिकारियों के काम का परिनिरीक्षण करता था।
सम्राट थाएचुङ के शासनकाल में, "थाङ राजवंश की विधि संहिता" का 12 खण्डों में सम्पादन व संकलन किया गया। थाएचुङ के उत्तरवर्ती सम्राट काओचुङ के आदेश से इस संहिता की प्रत्येक धारा की सविस्तार व्याख्या व स्पष्टीकरण किया गया। परिणामस्वरूप, "'थाङ राजवंश की विधि-संहिता' की व्याख्यात्मक टीका" की रचना हुई, जिसके 30 खण्ड थे। इन दोनों ही ग्रन्थों को चीनी कानून के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।
थाङ राजवंशकाल में सरकारी अफसरी की परीक्षा को, जिसकी शुरुआत स्वेइ राजवंशकाल में हुई था, और विकसित किया गया। विभिन्न प्रकार की परीक्षाओं की संख्या बढ़ाकर एक दर्जन से अधिक कर दी गई, जिनमें "श्यू छाए","चिन शि","मिङ चिङ" और "मिङ फ़ा"(विधि-विशेषज्ञ) की उपधियों के लिए होने वाली परीक्षाएं भी शामिल थीं।
इन उपधियों में "चिन शि"की उपाधि सबसे महत्वपूर्ण व सम्मानित समझी जाती थी। इन परीक्षाओं में देश की राजधानी के महाविद्यलयों से स्नातक होने वाले विद्यार्थी अथवा प्रान्तों व काउन्टियों से आए ऐसे विद्यार्थी भाग लेते थे जिनकी सिफारिश प्रान्तीय अथवा काउन्टी सरकार द्वारा की जाती थी। प्रान्त अथवा काउन्टी के विद्यार्थियों को पहले स्थानीय स्तर की प्रारम्भिक परीक्षा में उत्तीर्ण होना पड़ता था;तभी वे राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा में बैठ सकते थे।
राष्ट्रीय राजधानी में आयोजित परीक्षा में सफल होने वाले परीक्षार्थियों को प्रशासन मंत्रालय द्वारा अधिकारी-पद पर नियुक्त किया जाता था। परीक्षा के जरिए अफसरों का चयन करने की इस व्यवस्था ने थाङ राजवंश की सामाजिक बुनियाद को पुख्ता कर दिया।
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