प्रिय दोस्तो , हम जानते ही हैं कि उजबेक जाति के जीवन में बड़ा सुधार आया है और इस जाति के लोग बड़े धूमधाम से शादियां करते हैं । आज हम फिर उजबेक जाति की शादी के प्रचलित रीति रिवाज देखने जाते हैं ।
थोड़ी देर के बाद दुल्हा कमरे के अंदर जाकर दुल्हन के बगल में बैठ गया । इसी वक्त दुल्हन की मां ने गोद में एक खूब सूरत गुड़िया जैसा मुन्ना लिये दुल्हन को पकड़ाने के लिये दे दिया । यह देख कर हमारे संवाददाता ने किसी महिला मेहमान से प्रश्न किया , तो उस ने इस का अर्थ बताते हुए कहा कि शादी के बाद दुल्हन ज्यादा से ज्यादा संतानों का जन्म दे सके और सुखमय जीवन बीता सके । इस रस्म की समाप्ति के तुरंत बाद घर में इकट्ठी सभी महिलाएं इस नव दंपति को शुभकामनाएं देने के लिये गीत गाने लगीं ।
हमारे संवाददाता पास में बैठी दुल्हन की दादी जी के पास बैठकर बातचीत करने लगे । जब हमारे संवाददाता ने उन से यह प्रश्न किया कि उन्हें अपनी पोती की शादी में क्या टिप्पणी है , तो उन्हों ने अपनी शादी का सिंहावलोकन करते हुए कहा कि उस समय हमारे पास वी सी डी क्या , टेपरिकार्टर तक भी नहीं था । मेरे पति केवल एक टांगा उधार लेकर तुंगबरा बजाते हुए मुझे ससुराल के घर ले आये । दादी ने आगे चलकर कहा कि उन्हें अभी तक साफ साफ याद है कि जब वे शादी प्रमाण पत्र लेने रजिस्ट्रेशन ओफिस गये , तो रजिस्ट्रेशन ओफिस में कार्यरत कर्मचारी ने दादी को गिफ्ट के रूप में एक रेश्मी रूमाल भेंट किया और उन्हों ने उसे दादा के प्रेम का प्रतीक मानकर अपने पास अभी तक बरकरार रखा ।
यह बातचीत करते करते पास में खड़े दादा ने भी सामने आकर हमारे संवाददाता को बताते हुए कहा कि हालांकि उस समय जीवन काफी दुभर था , पर वे दोनों एक दूसरे से बहुत प्रेम करते हैं और उन का पारिवारिक जीवन अत्यंत सुखमय रहा है । उन के चेहरों पर नजर मुस्कान को देख कर हमारे संवाददाता ने मन ही मन यह सोचा कि बात सही है , तत्काल में हालांकि गरीबी से दहेज और बारात तक भी कोई नसीब नहीं था , पर फिर भी वह छोटा सा रेश्मी रूमाल उन के सचे मुहब्बत का परिचायक तो है ही । दादा दादी के बेटे यानी दुल्हन के पिता अब्दु अलाह मजीद की शादी काफी भव्यदार थी । अब्दु अलाह मजीद ने अपनी शादी की चर्चा में कहा कि मेरी शादी 1985 में हुई । हमारी जाति के रीति रिवाज के अनुसार शादी तय करते समय मैं ने दुल्हन वाले को रजाई व तकिया जैसी वस्तुएं दहेज के रूप में दे दी , साथ ही मैं ने सब से अच्छे कपड़े से अपनी पत्नि के लिये नया त्रेस भी बनवाया । उन्हों ने बड़े मजे से बताया कि अब बारात में कारों का फैशन है , पर उस समय ट्रक का था । मैं किराये पर एक ट्रक लेकर अपनी दुल्हन को घर ले आया , साथ ही मैं ने सभी संबंधियों व दोस्तों को दावत भी दे दी । हालांकि तब से लेकर अब तक बीसेक साल बीत गये हैं , पर वह तत्कालीन गरमागरम माहौल आज भी ताजा होकर आ गया है ।
यवाओं को हर्षोल्लाहपूर्ण वातावरण से ज्यादा लगाव है । इस शादी में बहुत से युवक युवतियां आये हैं । वे बड़ी प्रसन्नता से हंसा मजाक उड़ाते व गपशप मारते हुए नजर आते हैं । दुल्हे का छोटा भाई अईदिन इस साल 22 वर्ष का है और शादी करने का काबिल है । वह अपने शादी व्याह की कल्पना करते हुए हमारे संवाददाता को बताया कि वह अपने शादी व्याह में नया विषय जोड़ देगा ।
मैं चाहता हूं कि मैं 2008 में शादी करूं और अपनी दुल्हन को लेकर पेइचिंग में आलम्पिक खेल समारोह देखने जाऊं ।
मत पूछिये , रेश्मी रूमाल से सोने की अंगुठी और टांगे से कार से यह बिल्कुल साबित कर दिखाया गया है कि उजबेकी जाति की तीन पीढ़ियों के शादी व्याह में भारी परिवर्तन ही नहीं , इस जाति के दैनिक जीवन में भी जमीन आस्मान का बदलाव आ ही गया है ।
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