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2007-02-06 14:07:35
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छठे से दसवें पंचन लामाओं का संक्षिप्त इतिहास
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छठे पंचन लामा बादान येषी थे। उन का का जन्म सन् 1738 में हुआ था। छिंग राजवंश के सम्राट छ्यानलुंग ने उन्हें छठे पंचन लामा की उपाधि प्रदान कर साम्मानित किया। बादान येषी ने सातवें दलाई लामा के अवतार बालक के खोज काम का निर्देशन किया और सन् 1780 में वे छिंग राजवंश के सम्राट से मिलने के लिए शाही ग्रीष्म कालीन उद्यान छङत्हे गए , जहां छिंग सम्राट छ्यानलुंग ने उन का बड़ा सम्मान सत्कार किया , फिर वे पेइचिंग गए , वहां बीमारी के कारण उन का देहांत हुआ । उन के सम्मान में छिंग सम्राट ने पेइचिंग के शिहुंगसी मठ में एक पगोडा बनवाया ।  सातवें पंचन लामा डेनपाए न्यीमा थे । सातवें पंचन लामा डेनपाए न्यीमा का जन्म सन् 1782 में बाइनाम काउंटी में हुआ था। छिंग राजवंश के सम्राट छ्यानलुंग की अनुपति पर उनको सातवें पंचन लामा का अवतार बालक चुना गया था और सन् 1785 में उन के सातवें पंचन लामा बनने की रस्म आयोजित हुई । उनके कार्य काल में कोर्गों ने दो बार जाषिलुंगपो मठ पर आक्रमण किया, जिससे इस मठ को काफी नुक्सान हुआ। लेकिन छिंग राजवंश के सम्राट छ्यानलुंग की सेना की मदद से दोनों बार कोर्गों को परास्त कर दिया गया। नौवें, दसवें और ग्यारहवें दलाई लामाओं ने अपनी शिक्षा सातवें पंचन लामा डेनपाए न्यीमा से ही प्राप्त की थी। सन् 1853 में सातवें पंचन का स्वर्गवास हो गया।
आठवें पंचन लामा डेनपाए वांगषो थे । आठवें पंचन लामा डेनपाए वांगषो का जन्म सन्1855 में नामलिंग काउंटी में हुआ था। सन् 1857में वे सातवें पंचन लामा का अवतार बालक चुने गए । इनके नेतृत्व में सबसे प्रमुख घटना यह घटी कि आठवें पंचन लामा ने तिब्बती बौद्ध धर्म की न्यीगमा शाखा के ग्रन्थों का अध्ययन किया , जो जाषिलुंगपो मठ के दूसरे भिक्षुओं की नजर में अनुचित था। 28 साल की उम्र में ही बीमारी से उन का वर्ष1882 में स्वर्गवास हो गया। नौवें पंचन लामा का नाम था छोइग्यी न्यीमा । छोइग्यी न्यीमा का जन्म सन् 1883 में ल्हासा में हुआ। सन् 1903 में जब अंग्रेज सरकार ने तिब्बत पर हमला किया ,तो उस का मुकाबल करने के लिए तिब्बती सेना का नेतृत्व नौवें पंचन लामा और तेरहवें दलाई लामा ने किया था । लेकिन इस युद्ध में तिब्बती सेना हार हुई। इस युद्ध के बाद अंग्रेज सरकार ने अपनी कुटनीति से पंचन लामा और दलाई लामा के बीच मतभेद पैदा कर फुट के बीज बोए। चीन में उस वक्त की राजनीतिक घटनाओं की वजह से पंचन लामा को चीन के दूसरे शहरों का दौरा करना पड़ा। इस दौरान उन्होंने न केवल पेइचिंग, सिछुआन, छिंगहाई, नानचिंग जैसे शहरों की यात्रा की, बल्कि कई जगहों पर अपने कार्यालय भी खोलें। सन् 1933 के मार्च माह में उन्होंने तिब्बत पर शासन संबंधी सोलह सूत्रीय रायें और तीन शर्तें पेश कीं। सन् 1937 में इनका देहांत हो गया। दसवें पंचन लामा छोग्यी ग्याइनत्सेन थे । दसवें पंचन लामा छोग्यी ग्याइनत्सेन का जन्म सन् 1938 में छिंगहाई प्रांत की शुनह्वा काउंटी में हुआ। वे सन् 1943 में नौवें पंचन लामा का अवतार बालक चुने गए और सन् 1944 में टार मठ में उन का स्वागत किया गया । सन् 1951 के मई माह में चीन की केन्द्रीय सरकार और तिब्बत के बीच तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति के बारे में समझौता हुई , इस के उपलक्ष्य में एक विशेष समारोह का आयोजन किया गया और मौके पर पंचन लामा भी उपस्थित हुआ और उन की चीनी नेता माओ त्सतुंग से मुलाकात हुई । इस दौरान पंचन लामा और दलाई लामा के बीच मतभेद भी खत्म हो गये। सन् 1954 में पंचन लामा चीनी जन राजनीतिक सलाहकार सम्मेलन की राष्ट्रीय कमेटी के उपाध्यक्ष चुने गए । सन् 1958 में वे जाषिलुंगपो मठ के गेशी उपाधि से सम्मानित किए गए । सन् 1959 में तिब्बत के ऊपरी शासक वर्ग द्वारा सैन्य विद्रोह छेड़े जाने के बाद केन्द्रीय सरकार ने तिब्बत की गाशाग सरकार को भंग कर वहां तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की तैयारी कमेटी का प्रशासन लागू किया, जिस के अध्यक्ष दसवें पंचन लामा थे । सन् 1985 में दसवें पंचन ने जन राजनीतिक सलाहकार सम्मेलन की राष्ट्रीय कमेटी के उपाध्यक्ष न्गापाइ न्गावांग जिग्मे के साथ तिब्बत सहायता कोष कायम किया । सन् 1989 में तिब्बत के निरीक्षण दौर के लिए दसवें पंचन लामा तिब्बत के शिकाजे में जाषिलुंगपो मठ लौटे , वहां भारी मेहनत से दिल का दौरा पड़ा और अप्रत्याशित रूप से उन का देहांत हो गया ।
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