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(GMT+08:00) 2007-01-30 17:25:43    
ल्हासा में छाईछ्वान अनाथ स्कूल

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चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा में छाईछ्वान नामक एक अनाथ स्कूल, जहां विक्लांग और अनाथ बच्चे पढ़ते हैं । स्कूल के कुलपति चाम्पा त्सोंद्रे हैं, और वे ल्हासा के एक जातीय हस्तकला वस्तु निर्माण कारखाने के निदेशक भी हैं । चाम्पा त्सोंद्रे बहुत जोशीले व्यक्ति हैं, पुराने तिब्बत के अन्य तिब्बती बच्चों की तरह चाम्पा त्सोंद्रे बचपन में किसी स्कूल में नहीं गए और सिर्फ़ कई सालों तक बौद्धिक सूत्र पढ़ते रहे । बड़े होने के बाद उन्होंने बढ़ई का काम किया, जूते बनाने का काम किया और अभिनेता भी बने । इस तरह जीवन में उन्होंने अनेक अनुभव संजोए हैं ।

वर्ष 1993 में चाम्पा त्सोंद्रे ने अनेक सालों में किफायत करके चार लाख य्वान से ज्यादा पूंजी से ल्हासा में इन विक्लागं और अनाथ बच्चों के लिए विशेष तौर पर छाइ छ्वान नामक एक स्कूल की स्थापना की। इस तरह चाम्पा त्सोंद्रे एक स्कूल के कुलपति बन गए और वे विद्यार्थियों के जीवन बिताने और शिक्षा लेने का सब खर्च प्रदान करते हैं । इस के साथ ही वे स्वयं विद्यार्थियों को तिब्बती शैली के चित्र बनाने, जातीय वस्त्र व तिब्बती काग़ज़ बनाने तथा तिब्बती काष्ठ खुदाई आदि तकनीक भी सिखाते हैं । चाम्पा त्सोंद्रे ने कहा कि वे इन विद्यार्थियों को स्व-निर्भर जीवन बिताने की क्षमता हासिल करने और समाज के लिए सुयोग्य नागरिक बनने का प्रशिक्षण देने की कोशिश करते हैं ।

चाम्पा त्सोंद्रे की गतिविधि को स्थानीय सरकार का समर्थन प्राप्त हुआ है। स्कूल के बच्चों के जीवन की गारंटी देने के लिए स्थानीय सरकार हर महीने में हर बच्चे को दो सौ य्वान का भत्ता प्रदान करती है । अगर स्कूल के विद्यार्थी बीमार हो जाएं, तो संबंधित विभाग समय पर उस का इलाज करता है ।

चाम्पा त्सोंद्रे की गतिविधियों ने लोगों को प्रभावित किया और अनेक अध्यापकों को स्कूल में आने के लिए आकर्षित भी किया । अधिकांश अध्यापकों ने छाइ छ्वान स्कूल में पढ़ाने की इच्छा व्यक्त की और उन की आशा है कि ज्यादा से ज्यादा अनाथों को जानकारी ही नहीं, ज्ञान भी प्रदान करेंगे। सुश्री दशी चोमा उन में से एक हैं । वे इस स्कूल की अध्यापिका के रूप में एक साल बिता चुकी हैं और वर्तमान में अपने कार्य को पसंद करती हैं । सुश्री दशी चोमा ने कहा

"मैं पढ़ाई का काम करते हुए दस साल बिता चुकी हूँ । छाइ छ्वान स्कूल में आने के बाद एक साल हो गया है। यहां पढ़ाई का काम करना दूसरे स्कूलों से बिलकुल अलग है । क्योंकि यहां के विद्यार्थी विक्लांग हैं । कुछ लोग बहरे हैं, कुछ लोग नेत्रहीन हैं, कुछ लोग अनाथ हैं और कुछ लोग दस वर्ष की उम्र तक स्कूल नहीं जाते हैं। लेकिन ये विद्यार्थी बहुत मेहनत के साथ पढ़ते हैं ।हर बार जब मैं हमारे कुलपति की स्नेहपूर्ण आंखों को देखती हूं और हमारे स्कूल के विद्यार्थियों के लिए पूरे लगन से काम करते देखती हूं , तो मैं बहुत प्रभावित होती हूं । मुझे लगता है कि छाइ छ्वान स्कूल में एक अध्यापिका बनना मरे जीवन भर का सौभाग्य है । भविष्य में मैं और मेहनती से काम करती रहूंगी और हमारे स्कूल को अच्छे से अच्छा बनाने का कोशिश करती रहूंगी । "

विक्लांग और अनाथ एक विशेष समुदाय है । उन्हें शिक्षा देने के दौरान श्री चाम्पा त्सोंद्रे भीतरी इलाके के संबंधित स्कूलों के समुन्नत उपाय व अनुभवों से सीख कर तिब्बत की वास्तविक स्थिति के अनुसार अपना रास्ता ढूंढते हैं । उन्होंने विद्यार्थियों की बुद्धि के स्तर के अनुसार स्कूल के अध्यापकों व अध्यापिकाओं के साथ पढ़ाई के अलग-अलग प्रस्ताव व उपाय खोजे हैं । मसलन स्कूल श्रेष्ठ विद्यार्थियों को उन की स्व-शिक्षण की क्षमता बढ़ाने पर जोर देता है । कम बुद्धिमान विक्लांग विद्यार्थियों को बुनियादी शिक्षा देने पर महत्व देता है । इस तरह की पढ़ाई से विद्यार्थी आसानी से ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं और पढ़ने के दौरान उन की भारी रूचि उत्पन्न होती है , जिस से स्कूल की पढ़ाई की गुणवत्ता उन्नत हुई है ।

अपनी स्थापना के बाद ल्हासा छाइ छ्वान स्कूल के दस साल गुज़र गए हैं । स्कूल के अनेक विद्यार्थियों ने यहां से स्नातक होने के बाद भीतरी इलाके के हाई स्कूलों व युनिवर्सिटियों में भाग लिया है। चाम्पा त्सोंद्रे की कोशिश फल लायी है, इसलिए उन्हें बहुत अच्छा लगता है,और खुशी होती है ।