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(GMT+08:00) 2007-02-01 10:48:21    
भारतीय नृत्य से जोड़ने वाली सुप्रसिद्ध नृत्यकार जांग च्वन

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चीन में जब लोग प्रसिद्ध नृत्यकार जांग च्वन का उल्लेख करते हैं, तो यह स्वभाविक है कि उन का नाम भारतीय नृत्य से जोड़ा जाना पड़ता है। श्रीमति जांग च्वन चीनी पूर्व नृत्य मंडली की भूतपूर्व प्रधान निदेशक थी। बचपन से ही नला साहित्य से उन की रुचि रही है। 15 साल की उम्र में भारत तथआ अन्य एशिया देशों की यात्रा के दौरान उन्होंने एशियाई नृत्यकला सीखने लगी। वर्ष 1962 में चीनी पूर्व नृत्य मंडली की स्थापना हुई। दिवंगत प्रधान मंत्री चओ एन लाई की सिफारिश पर जांग च्वन इस मंडली की सदस्य बन गई। तब से वह भारतीय नृत्य करने औऱ सिखाने के रास्ते पर चल निकली।

नृत्यकार जांग च्वन का जन्म दक्षिण चीन के हू पेई प्रांत की चिन छ्वन जिन छ्वन काऊंटी में हुआ। लेकिन, सी छ्वान प्रांत में उन्होंने अपनी बालावस्था गुजारी। मिडिल स्कूल में ही उन की कला प्रतिभा दिखाई देने लगी। 14 साल की उम्र में वे शान्हाई की एक औपेरा मंडली में शरीक हुई।

वर्ष 1951 के ग्रीष्म काल में भूतपूर्व सोवियत संघ के लेनिन युवा लीग की केंद्रीय कमेटी के निमंत्रण पर चीनी किशोर पायनियर दस्ते के प्रतनिधि मंडल की सदस्य के रुप में आरस्ख पायनियर कैम्प में शारीक हुई। यह नव चीन के स्थापित होने के बाद सोवियत संघ की यात्रा पर भेजा गया प्रथम किशोर मंडल था।

भारतीय नृत्य के प्रति अपनी रुचि पैदा होने की चर्चा में श्रीमती जांग च्वन ने कहा, वर्ष 1954 में जांग च्वन चीनी सांस्कृतिक प्रतिनिधि मंडल के साथ भारत, बर्मा और इंटोनेशिया की यात्रा की। रवाना होने से पहले, दिवंगत प्रधान मंत्री चओ एन लेन ने प्रतिनिधि मंडल के सभी सदस्य से भेंट थी और कहा कि ये तीन देश, चीन के पड़ोसी है, सांस्कृतिक क्षेत्र में वे एक दूसरे से प्रभावित हुए हैं। वे केवल इसी उद्देश्य से ही नहीं, कि चीन की संस्कृति से उन्हें परिचित कराया जाए, बल्कि उन की संस्कृति का सीखायी जाएगी।

उन्हें परिचित कराया जाएगा, बल्कि उन की संस्कृति भी सीखायी जाएगी। यात्राओं के दौरान, सुप्रसिद्ध नृत्य कार देई ए ल्येन की रहनुमाई में प्रतिनिधि मंडल के नृत्यकारों ने भारतीय नृत्य सीख लिया। निसंदेह इस नृत्य में जांग च्वन ने महत्वूपर्ण पार्ट अदा किया।

पेइचिंग वापस लौटने के बाद उन्होंने दिवंगत अध्यक्ष माओ त्से तुंग और प्रधान मंत्री चओ एन लेन ने उन के नृत्य को देखा और उन की भूरि बूरि प्रशंसा की। वर्ष 1956 में जांग च्वन पेइचिंग नृत्य कॉलेज की भारतीय कक्षा में आयी, जो कुछ समय पहले स्थापित किया गया था। एक मौके पर प्रधान मंत्री चाओ एन लेई ने जा च्वन से कहा, तुम अच्छी तरह भारतीय नृत्य सीखो, और उस पर महारत हासिल करो। श्री चओ एन लाई की सलाह को उन्होंवे अपनी गिरह में बांध लिया औऱ खुब उन्हें यह विश्वास नहीं था कि बाद में भारतीय नृत्य करना उन की जिन्दगी भर का कार्य बन जाएगा।

श्रीमती जांग च्वन ने भावपूर्वक हमारी संवाददाता को यह बताया, सन 1978 में चीन औऱ भारत के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान बहाल होने लगा। सन 1980 में 45 वर्षीया श्रीमती जांग च्वन दर्पना कला प्रतिष्ठान में भारतीय शास्त्रीय नृत्य भरत सीखने गयी। एक सीमित समय में ज्यादा से ज्यादा नृत्य शाखाएं सीखने के लिए वे रोज सुबह छ बडे से रात को बारह बजे तक सीखती रही और यहां तक कि साज सब्जी खरीदने और भोजन करने के वक्त भी, नृत्य भाषा का अभ्यास करती थी। इस तरह उन्होंने केवल साढ़े तीन महीनों में ही छ वर्षों का कोर्स पूरा कर लिया। और स्नातक परीक्षा में अत्तीर्ण हो गयी। सुप्रसिद्ध भारतीय नृत्यकार ने अपने एक लेख में भाव विभोर होकर कहा, 46 वर्षीया जांग च्वन ने इतने कम समय में ही अपने कोर्स को पूरा कर लिया। उन्होंने जरुर ईश्वर को प्रभावित कर दिया है।

इस के बाद वे दिल्ली में आकर कटक नृत्य सीखने आयी। और उन्होंने उतने कम समय में ही छ वर्ष का कोर्स पूरा लिया। साथ साथ उन्होंने अन्य चार शाखाओं वाले नृत्य भी सीख लिये।

सन 1981 में स्वदेश लौटने के बाद उन्होंने पूर्व नाच गान मंडली में एक भारतीय नृत्य दल स्थापित किया। 1982 में श्रीमती जांग च्वन ने चीनी संगीत औऱ नृत्य दल के साथ फिर एक वार भारत की यात्रा की।

इस के बावजूद नृत्यकार जांग च्वन संतुष्ट नहीं थी। उन्होंने हमें यह बताया, वर्ष 1986 में चीनी शिक्षा मंत्रालय की रजामन्दी पर एक वर्ष सात महीनों के अध्ययन के लिए फिर भारत गई। इसी बीच लापरवाही से उन की पैर को चोटी लगी। तिस पर भी वह अपने अध्ययन पर डेटी रही।उन की भावना से अनेक भारतीय लोगों ने प्रभावित किया है।

स्वदेश लौटने के बाद शअरीमती जांग च्वन अपनी सारी शक्ति को बाल नृत्यकारों के प्रशिक्षण में लगा दिया। उन का विचार था समूचे नृत्य कार्य के विकास की दृष्टि से मौजूदा चीन में फौरी से फौरी कार्य बाल नृत्यकारों को प्रशिक्षित करना है।

उन्होंने एक सम्वाददाता से कहा, आप को मालूम है कि रंगमंच, हरेक नृत्यकार के लिए कितना आकर्षक है। रंगमंच से अलग होने की मेरी इच्छा भी नहीं है, पर चीनी नृत्य कार्य के विकास के लिए नौजवान नृत्य कारों को रंगमंच पर अभिन्य करने का ज्यादा से ज्यादा मौका देना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि नृत्य कला युवकों व युवतियों की कला है। उम्र नौजवान नृत्यकारों के लिए विशेष महत्वपूर्ण है। उम्र के कारण मुझे रंगमंच पर नृत्य करने का कम मौका प्राप्त होगा। लेकिन, मेरी कला का जीवन समाप्त नहीं हो गाय। मैं अपनी सारी शक्ति मौजवान नृत्यकारों को प्रशिक्षण करने में अर्पित करने को तैयार है। और अपने वर्षों के अनुभव उन्हें सिखाऊंगा, ताकि वे नृत्य कला का विकास करते रह सके। इस तरह मेरी कला का जीवन भी जारी रखा जा सके।

श्रीमती जांग च्वन भारतीय नृत्य कला से प्यार करती है, साथ ही वह चीनी राष्ट्र की परम्परागत कला को भी बहुत मूल्यवान समझती है। वर्ष 1990 में अपने वर्षों से चले आये स्वपन्न को साकार बना दिया। यानी उन्होंने तुलनात्मक तरीके से चीन के द्वन ह्वान नृत्य और भारतीय नृत्य को एक ही रंगमंच पर प्रस्तुत करवाया। जिसे चीनी और विदेशी दर्शकों की ओर से खूब पसंद मिला। चीन स्थित तत्कालीन भारतीय राजदूत ने प्रशंसा करते हुए कहा , यह भारत और चीन के बीच राजनयिक संबंध की स्थापना के बाद पिछले 40 वर्षों में प्रवत्त सब से शान्दार, खूबसूरत और कीमती तोहफा है। उन्होंने यह विचार व्यक्त करते हुए कहा कि वे इस कार्यक्रम को भारतीय रंगमंच पर प्रस्तुत करवाने की भरसक कोशिश करेंगे। भारतीय सरकार और जनता श्रीमती जांग च्वन द्वारा भारत और चीन के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए दिये गए योगदान का उच्च मूल्यांकन करती है। सुप्रसिद्ध नृत्यकार जांग च्वन चीन भारत मैत्री पुल की एक सफल निर्माता बन गई। हालांकि श्रीमती जांग च्वन अब एक वृद्धा हो गयी हैं, फिर भी वे भआरतीय नृत्य सीखती रहती हैं। उन के अनुसार, यदि मौका मिला, तो मैं नृत्य सीखने के लिए फिर एक बार भारत जाऊंगी । इस के अलावा, मैं भारतीय नृत्य संबंधी कुछ पस्तकों का अनुवाद भी करुंगी।