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(GMT+08:00) 2007-01-29 20:14:03    
मशहूर हास्य-संवाद कलाकार स्वर्गीय मा-ची की कहानी

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मा-ची सन् 1934 में एक बहुत गरीब परिवार में जन्मे थे। जीवन के लिए वह 14 साल की उम्र में ही शांघाई शहर की एक कपड़ा मिल में बाल-मजदूर बने। 1949 में चीन लोक गणराज्य की स्थापना के बाद वह पेइचिंग आकर पुस्तकों की एक दुकान में काम करने लगे।1956 में उन की जिन्दगी में एक नया मोड आया जब एक सांस्कृतिक समारोह में उन्हों ने अपनी प्रतिभा दिखा कर दिग्गज कलाकारों को प्रभावित किया और उन्हें मशहूर चीनी प्रसारण कला मंडली में दाखिला दिया गया। इस मंडली के एक नेता,प्रसिद्ध हास्य-संवाद कलाकार श्री हो पाओ-लिन के स्नेहपूर्ण निर्देशन में वह अपनी विशेष संवेदनशीलता और याददाश्त से जल्द ही देश भर में विख्यात हो गए।

मा-ची ने कहा कि उन की जिन्दगी कभी हास्य-संवाद कला से अलग नहीं हुई और उन्हें चीनी विशेषता वाली इस कला से गहन प्यार रहा है।लेकिन पेइचिंग ऑपेरा,स्थानीय लोक गीत और काग़ज-कटाई जैसी परंपरागत चीनी कलाओं की ही तरह हास्य-संवाद कला में भी आधुनिक बहुमीडिया और मनोरंजन उद्योग के प्रभाव के कारण पिछली सदी के 90 वाले दशक से मंदी आई है। गैर-भौतिक सांस्कृतिक अवशेष के रूप में परंपरागत चीनी कलाओं को बचाने के लिए इधर के कुछ वर्षों में चीन सरकार ने सामाजिक एवं वित्तीय तौर पर भगीरथ कोशिशें कीं हैं। फलस्वरूप लोगों में परंपरागत संस्कृति व कला के प्रति उत्साह लौटा है और हास्य-संवाद भी लोगों के जीवन में फिर से मनोरंजन का एक स्रोत बनने में सफल हुआ है।पेइचिंग में युवा हास्य-संवाद कलाकार श्री क्वो त-कांग द्वारा अपने जैसे युवा सहयोगियों के साथ प्रस्तुत हास्य-संवाद इस समय हास्य-संवाद प्रेमियों की पहली पसंद है। जहां-जहां ये युवा कलाकार जाते हैं,वहां-वहां उन के पीछे बड़ी संख्या में दीवाने दौड़ते नजर आते हैं। जिस थिएटर में उन का विशेष शो होता है,वह दर्शकों से खचाखच भर जाता है। कुछ समय पूर्व चीनी केंद्रीय टीवी या सीसीटीवी द्वारा संयोजित राष्ट्रीय हास्य-संवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया गया तो देश भर के बेशुमार दर्शकों का ध्यान इस कला की ओर गया। इस बदलाव पर मा-ची को बहुत खुशी हुई। वे चाहते थे कि वह हास्य-संवाद कला में अर्जित अपने अनुभवों को अच्छी तरह शामिल करेंगे, ताकि इस से युवा कलाकारों को कुछ मदद मिल सके।उन्हीं की आवाज़ में

"मैं 72 वर्ष का हो चुका हूं।बूढ़ा हो गया हूं और अभिनय-मंच से भी सेवानिवृत हो गया हूं। मुझे लगता है कि हालांकि मैं ने जिन्दगी का अधिकांश समय हास्य-संवाद कला के अध्ययन में लगाया है,पर इस क्षेत्र में अभी काफी कुछ करना बाकी है। मुझे यह भी लगता है कि हास्य-संवाद कला में मेरा स्तर मेरे गुरू को स्तर से कोसों दूर है,तो भी मैं ने कुछ अच्छे अनुभव अर्जित किए हैं। मैं चाहता हूं कि मैं अपनी जिन्दगी के बचे बाकी समय में इन अनुभवों से युवा-पीढ़ी के कलाकारों को अच्छी तरह वाकिफ करने की कोशिश करूं। इस के अलावा हास्य-संवाद बनने योग्य नए विषय समय-समय पर मेरे दिमाग में आते रहते हैं,सो मैं नये हास्य-संवाद लिखने का काम जारी रखूंगा। हां,स्फूर्ति पहले जैसी नही रह गई है,पर नयी कृति लिखने के लिए काफ़ी है।अभी मैं लिखने में व्यस्त हूं।"

एक विख्यात कलाकार के रूप में मा-ची ने बहुत से देशों का दौरा किया है और चीन व विदेशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान के बहुत से आयोजनों में भाग लिया है।सन् 2005 में उन्हों ने दुबारा अफ्रीका के लगभग सभी देशों का दौरा किया और स्थानीय कलाकारों के साथ अनेक हास्य-संवाद शो प्रस्तुत किए,जिन्हों ने वहां खूब धूम मचाई।

इस की याद ताजा करते हुए मा-ची ने कहा थाः

"अफ्रीकी दोस्तों के साथ दुबारा सहयोग करके शो प्रस्तुत करना मेरे लिए बड़ी खुशी की बात रहा है,जिस से मुझे कलात्मक नयेपन का एहसास हुआ है।अफ्रीका के नाचगान बहुत सुन्दर हैं।अगर उन की प्रस्तुति चीन में होती है,तो निश्चय ही चीनी लोगों को वे बहुत पसंद आएंगे।अफ्रीका के वन्यजीव भी विश्वविख्यात हैं। मैं ने वहां के अभयारण्य में बहुत से दुर्लभ व मूल्यवान वन्यजीव देखे हैं।देखने के समय मैं ने सोचा कि ये जीव मानव-जाति के दोस्त हैं।उन के अस्तित्व का मानव-जाति के अस्तित्व पर असर पड़ता है।सो उन का संरक्षण अत्यंत ज़रूरी है। पर उन्हें और उन के जीवन के पर्यावरण को कैसे संरक्षित किया जाए? इस का उपाय ढूंढना सभी समझदार लोगों का समान दायित्व है। इस में हम हास्य-संवाद कलाकार कुछ प्रचार-प्रसार का काम कर सकते हैं। मेरा ख्याल है कि कलाकार जहां जाते हैं,उन्हें वहां के जनजीवन और वातावरण का अन्वेषण करना चाहिए। इस के आधार पर जो कृति बनाई जाती है,वह जीवन शक्ति से भरपूर हो सकती है और लम्बे समय तक लोकप्रिय रह सकती है।"