जनता तबाह हुई और सरकारी खजाना लगभग खाली हो गया ;उत्पादन लगभग ठप्प हो गया और किसानों का बोझ असहनीय हो गया।
वर्ग अन्तरविरोध तीव्र से तीव्रतर होते गए तथा उन्होंने किसान-विद्रोहों को जन्म दिया। इन विद्रोहों में चाए राङ व ली मी के नेतृत्व में वाकाङ किसान सेना द्वारा किया गया विद्रोह (यह उस स्थान पर हुआ था जहां वर्तमान हनान प्रान्त है), तओ च्येनते के नेतृत्व में वर्तमान हपेइ प्रान्त के अनेक स्थानों पर किया गया विद्रोह, जिसमें विद्रोहियों ने उन स्थानों पर कब्जा भी कर लिया था, और तू फ़ूवैइ व फ़ू कुङशि द्वारा चीन के दक्षिणपूर्वी भाग में किया गया विद्रोह सबसे बड़े थे।
इन तीनों विद्रोहों ने मिलकर स्वेइ राजवंश पर भीषण प्रहार किया।
जिस समय किसान-विद्रोहों की लपटें देशभर में उठ रही थीं, अभिजात वर्ग के लोग, सरकारी अफसर और जमींदार अपनी निजी सेनाएं बनाकर देश के इस या उस भाग पर अपना-अपना कब्जा करने में लगे हुए थे।
उन्होंने किसान-विद्रोह की विजय-उपलब्धियों को, जो वास्तव में किसानों को मिलनी चाहिए थीं, स्वयं हड़प लेना चाहा और अपनी सत्ता व प्रभाव की रक्षा करते हुए उनका विस्तार किया। 617 ई. में ली य्वान (565-635) नामक एक कुलीन और उसके पुत्र ली शिमिन (थाङ राजवंश का सम्राट थाएचुङ, शासनकाल 627-649) ने थाएय्वान में विद्रोह का झण्डा बुलन्द किया और शीघ्र ही स्वेइ राजवंश की राजधानी छाङआन पर कब्जा कर लिया।
618 ई. में स्वेइ सम्राट याङती, अपने एक अंगरक्षक द्वारा उस समय मार डाला गया जबकि वह च्याङतू में घिरा हुआ था। उसकी मृत्यु के साथ ही स्वेइ राजवंश का भी अन्त हो गया। उसी वर्ष ली य्वान ने छाङआन में सम्राट की उपाधि धारण कर अपने नए राज्य थाङ राजवंश (618-907) की स्थापना की।
इस नए राजवंश ने किसान-विद्रोहों को निर्दयता से कुचल डाला और क्षेत्रीय सत्ताधारियों को समाप्त कर देश का एकीकरण किया।
थाङ शासकों ने करों से होने वाली आय को सुनिश्चित करने के लिए भूमि के समान वितरण की व्यवस्था और त्निपक्षीय कर व्यवस्था लागू की।
भूमि के समान वितरण की व्यवस्था के अन्तर्गत 18 वर्ष से अधिक की अवस्था वाले प्रत्येक किसान को सरकार से 100 मू भूमि मिलती थी, जिस में से 20 मू भूमि (जिसे " स्थाई खेतों " का नाम दिया गया था) बेची या खरीदी जा सकती थी अथवा मौरूसी जमीन के रूप में संतानों को दी जा सकती थी, तथा शेष 80 मू वृद्धावस्था में काम न कर सकने की स्थिति में अथवा मृत्यु हो जाने पर सरकार को वापस करनी पड़ती थी।
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