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(GMT+08:00) 2007-01-23 09:40:06    
चाम्पा त्सोंद्रे और उन का विशेष बच्चों के लिए स्कूल

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तिब्बत की राजधानी ल्हासा में एक विशेष स्कूल है , जिस का नेम है छाईछ्वान । इस स्कूल के द्वार के सामने आने के बाद हमारे कानों में बच्चों की सुरीली आवाज़ सुनाई दे रही है । स्कूल में अंदर जाने के बाद हम ने देखा कि विद्यार्थी हाथों में हाथ लेकर स्कूल का गीत गा रहे हैं। नन्हें बच्चों की आवाज़ इस 3700 से वर्ग मीटर वाले तिब्बती शैली के स्कूल में गूंज रही है, जो यहां से गुज़रने वाले लोगों को लुभाती है ।

यह एक विशेष स्कूल है, जहां विक्लांग और अनाथ बच्चे पढ़ते हैं । स्कूल के कुलपति चाम्पा त्सोंद्रे हैं, और वे ल्हासा के एक जातीय हस्तकला वस्तु निर्माण कारखाने के निदेशक भी हैं । चाम्पा त्सोंद्रे बहुत जोशीले व्यक्ति हैं, पुराने तिब्बत के अन्य तिब्बती बच्चों की तरह चाम्पा त्सोंद्रे बचपन में किसी स्कूल में नहीं गए और सिर्फ़ कई सालों तक बौद्धिक सूत्र पढ़ते रहे । बड़े होने के बाद उन्होंने बढ़ई का काम किया, जूते बनाने का काम किया और अभिनेता भी बने । इस तरह जीवन में उन्होंने अनेक अनुभव संजोए हैं ।

वर्ष 1986 में चाम्पा त्सोंद्रे ल्हासा के एक जूते बनाने वाले कारखाने के निदेशक बने । इस दौरान उन्होंने कई विकलांग बच्चों व अनाथों को सड़कों पर देखा, इन बच्चों को किसी स्कूल में पढ़ने का मौका नहीं था और विक्लांग युवाओं को कोई रोज़गार नहीं मिल सकता था, इस तरह वे सड़क के आवारा बन जाते थे और जीवन बहुत मुश्किल था । चाम्पा त्सोंद्रे ने गहन रूप से सोचविचार कर इन अनाथ बच्चों व विक्लांगों को पढ़ने व काम करने का मौका प्रदान करने का फैसला कर लिया ।

चाम्पा त्सोंद्रे ने अपने जूते बनाने के कारखाने को विकलांग कल्याण व जातीय हस्तकला वस्तुओं के निर्माण के मिश्रित कारखाने में बदला । उन्होंने समाज के बीस से ज्यादा विक्लांग व अनाथों को कारखाने में दाखिला दे कर उन्हें सांस्कृतिक चीज़ें, चित्र बनाना, खुदाई करना तथा जूते बनाना आदि जातीय तकनीक में प्रशिक्षित किया । उन की आशा है कि ये विक्लांग व अनाथ तकनीक प्राप्त करने के बाद स्व निर्भर जीवन बिता सकेंगे ।

वर्ष 1993 में चाम्पा त्सोंद्रे ने अनेक सालों में किफायत करके चार लाख य्वान से ज्यादा पूंजी से ल्हासा में इन विक्लागं और अनाथ बच्चों के लिए विशेष तौर पर छाइ छ्वान नामक एक स्कूल की स्थापना की। इस तरह चाम्पा त्सोंद्रे एक स्कूल के कुलपति बन गए ।

छाइ छ्वान अनाथ स्कूल में चाम्पा त्सोंद्रे विद्यार्थियों के जीवन बिताने और शिक्षा लेने का सब खर्च प्रदान करते हैं । इस के साथ ही वे स्वयं विद्यार्थियों को तिब्बती शैली के चित्र बनाने, जातीय वस्त्र व तिब्बती काग़ज़ बनाने तथा तिब्बती काष्ठ खुदाई आदि तकनीक भी सिखाते हैं । चाम्पा त्सोंद्रे ने कहा कि वे इन विद्यार्थियों को स्व-निर्भर जीवन बिताने की क्षमता हासिल करने और समाज के लिए सुयोग्य नागरिक बनने का प्रशिक्षण देने की कोशिश करते हैं । उन का कहना है

"हर रविवार को मैं विद्यार्थियों को इक्ट्ठा कर के उन्हें दो घंटे कहानी सुनाता हूँ । मैंने उन्हें बताया कि पुराने तिब्बत में अनाथ बच्चों और विक्लांगों का ख्याल नहीं किया जाता था और उन का जीवन बहुत कठिन था । लेकिन आज हम सुखमय जीवन बिताने लगे हैं। इस लिए हमें समाज का धन्यवाद करना चाहिए और मातृभूमि की ज्यादा से ज्यादा जानकारी लेनी चाहिए। इस तरह हमारे स्कूल से शिक्षा लेने के बाद हमारे स्कूल के विद्यार्थी बड़ी मेहनत से पढ़ते हैं । छाइ छ्वान स्कूल के अनेक विद्यार्थियों को समाज की मान्यता प्राप्त हुई है।

वर्तमान में छाई छ्वान स्कूल में कुल 145 विद्यार्थी हैं । चाम्पा त्सोंद्रे उन के साथ अपने बच्चों की ही तरह व्यवहार करते हैं । स्कूल के विद्यार्थी चाम्पा त्सोंद्रे को कुलपति के बजाए बाबा कह कर बुलाते हैं । स्कूल का छात्र डोर्चे त्सेतान एक अनाथ है । छाइ छ्वान स्कूल में आने के बाद अपने जीवन की याद करते हुए डोर्चे त्सतान ने कहा

"छाइ छ्वान स्कूल में आने के बाद मैं ने अपने जीवन में पहली बार एक बड़ा परिवार और इतने भाई बहनों का प्यार प्राप्त किया । पहली बार मैंने पेट भर खाना खाया और इतनी विशाल कक्षा में बैठा। मैं ने पहली बार अध्यापक को देखा और पहली बार नयी-नयी किताबें हासिल कीं । यहां मुझे पहली बार पता चला है कि मेरी मातृभूमि का नाम चीन है..... मेरे जीवन के अनेक प्रथम अनुभव यहां ही हुए हैं । अब मैं छाइ छ्वान स्कूल में छै साल बिता चुका हूँ । मैं अपने सहपाठियों के साथ यहां सुखमय जीवन बिता रहा हूँ । हम ने यहां से अनेक जानकारी पायी है।"