चीन के सिन्चांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ऊरूमुची में जीवाश्यों का संग्रहण करने के लिए मशहूर एक बुजुर्ग रहते हैं, जिस का नाम चो फङछाई है । पिछले 50 सालों में उन्हों ने जो जीवाश्य संगृहित किए हैं , उन का कुल वजन कई टन तक पहुंचा है , जिन में जीव जंतुओं और वनस्पतियों के विविध जीवाश्य शामिल हैं । श्री चो फङछाई ने कभी मृत वादी नाम से जाने जाने वाली लोपुबो झील का भी दौरा किया और चार बार तिब्बत पहुंच कर चुमुलांगमा पर्वत चोटी पर भी चढ़े ।
रिटायर होने से पहले श्री चो फङछाई एक पुलिसकर्मी थे , जीवाश्यों का संग्रहण करना उन का अवकाशकालीन शौक है , उन का यह शौक उन के पिता से विरासत में प्राप्त हुआ है । उन के पिता अपने जीवन काल में एक मशहूर चीनी चिकित्सा पद्धति के डाक्टर थे , पिता के चिकित्सा जीवन से छोटा चो फङछाई बहुत प्रभावित हुआ और बचपन में ही उन्हों ने बीमारियों के इलाज की कुछ परम्परागत नुस्खें सीखीं । इस की याद करते हुए उन्हों ने कहाः
मेरी छोटी उम्र में ही मेरे पिता ने अकसर मुझे नदियों के किनारों पर जीवाश्य ढूंढ़ने भेजा , इस किस्म का जीवाश्य उस समय ड्रैगन की हड्डी के नाम से जाना जाता था , जो किसी प्रकार के घाव और नासूर को ठीक करने में उपयोगी होता है । इस पत्थर जैसी चीज की क्षमता पर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ और जीवाश्य बहुत पसंद भी आया ।
चीनी औषधि पद्धति के अनुसार ड्रैगन हड्डी नाम का जीवाश्य शांति और आराम देने का काम आता है । अपनी बालावस्था के इस अनुभव से प्रभावित हो कर श्री चो फङछाई को जीवाश्य संग्रहण करने का शौक उत्पन्न हुआ , जो बड़े होने पर पुलिसकर्मी बनने के बाद भी बरकरार रहा है ।
वर्षों के अनुभवों के आधार पर श्री चो ने जीवाश्य जानने पहचाने का अपना तरीका बनाया है , जीवाश्यों की मूल विशेषता के अलावा उन्हों ने जीभ मारने से पहचाने का तरीका आविष्कारित किया । इस की चर्चा में उन्हों ने कहाः
आम पत्थर पर जीभ मारने से वह बहुत चिकना लगता है , जबकि सिल्कनकृत पत्थर जीभ देने पर चिकना नहीं लगता है , बल्कि एक अलग का महसूस पाया जाता है ।
दशकों से श्री चो फङछाई ने जो कई टनों के जीवाश्य संग्रहण किए हैं , वे अधिकांश उन के अवकाशसमय में प्राप्त हुए , इस के लिए वे निर्जन सरहदी क्षेत्रों तक गए , मृत वादी के नाम से मशहूर लोपुबो झील का दौरा किया और चार बार तिब्बत गए और विश्व की सब से ऊंची पर्वत चोटी चुमुलांगमा पर आरोहित हुए ।
अब श्री चो के पास करीब दो हजार जीवाश्य इकट्ठे हुए हैं , जिन में मछली , पक्षी , मेढक , सांप , चिउरे और छिपकली आदि शामिल हैं । उन के पास एक बहुत कीमती जीवाश्य सुरक्षित है , जो पक्षी जाति के पूर्वज का है , उस का सिर पक्षी का है और पूंच्छ मछली का है । उन के संगृहित वनस्पति जीवाश्यों में सरपत , बांस , गुलदाउदी और अंगूर जैसे विभिन्न वनस्पतियां हैं । उन के पास एक समुद्री कमल नाम का जीवाश्य है , जो सर्वेक्षण के अनुसार आज से दस करोड़ वर्ष पहले समुद्र में उगता था , जिस के पत्ते बिलकुल आज के कमल फूल के पत्ते के समान है । उन के और एक जीवाश्य पर ऊंगली जितनी बड़ी 60 मछलियां देखने को मिलती हैं ।
इन अमोल जीवाश्य संग्रहण करने के लिए श्री चो फङछाई ने अकल्पनीय काम किए थे । उदाहरणार्थ ,रहस्यमय लोपुबो झील ने अनेकों वैज्ञानिकों और अन्वेषकों को आकर्षित किया है , बेशक उस ने श्री चो को भी अपनी ओर खींचा । पिछली शताब्दी के नब्बे दशक में श्री चो अकेले लोपुबो झील क्षेत्र के प्राचीन लोलान नगर के निकट पहुंचे । कुछ ककड़ी और पानी के साथ उन्हों ने इस निर्जन रेगिस्तान का दौरा किया , प्राचीन नगर के दुर्ग व दीवार देखे । और जब बहुत से मूल्यवान ऐतिहासिक अवशेष बटोर कर वापस लौटने लगा , तो उन के लिए एक खतरनाक घटना हुई ।
उन्हों ने कहा कि जब मैं नदी के तट पर नीचे कूदा , तो अनायास रेतों के बीच फंस पड़ा , रेत छाती तक ढके । यदि मैं इस से निकल नहीं सका , तो मैं जरूर इस निर्जन स्थान पर मर जाऊंगा । मैं ने ठंडे दिमाग से काम लिया , मैं ने पास की कुछ सूखी लकड़ी पकड़ कर रेत के ढेर से बाहर रेंगने की कोशिश की, मैं ने विडियो कैमरे के फीते को आगे फेंक कर उस के सहारे भी रेंगने की कोशिश की , अंत में मैं रेतों में से बाहर निकला और मेरी जान बच गयी । इस प्रकार की खतरनाक घटने से श्री चो को हल्की चोट लगी , लेकिन उन्हों ने प्राचीन काल के अनेक मिट्टी के बर्तन , चीनी मिट्टी बर्तन के टुकड़े और प्राचीन सिक्के ढूंढ लिए।
तिब्बत जाना भी श्री चो फङछाई का सपना था । पर्वतारोहन का प्रशिक्षण पाने के बिना वे अकेले चुमुलांगमा चोटी पर चढने निकले । विश्व के इस उच्चतम पर्वत पर उन्हों ने बहुत से फोटो खींचे और खास कर समुद्र सतह से 6000 मीटर ऊंचे स्थान पर उन्हों ने एक समुद्री सीप का जीवाश्य खोज पाया । इस ऊंचे और निम्न तापमान वाले स्थान पर जीवन का लक्ष्य पा कर वे बहुत उत्साहित हुए , उन का कहना हैः
लोग कहते हैं कि चुमुलांगमा चोटी देख पाने वाले सुखनसीब है , मैं ने चुमुलांगमा पर्वत चोटी देखी है । समुद्र सतह से 6000 मीटर ऊंचे स्थल पर हिम नद, हिम पर्वत और हिम सेराक देखे और खास कर मैं ने हिम कमल का फूल देखा , जो बैंगनी व पीली रंग के हैं , यह ऊंचे पहाड़ पर उगे बहुत दुर्लभ फूल है , बहुत कम देखने को मिलता है । मैं ने उस के अनेक फोटो खींचे ।
चुमुलांगमा चोटी पर श्री चो फङछाई ने अपने विडियो कैमरे से हजारों मीटर ऊंचे पहाड़ के हिम कमल व अन्य वनस्पति के फोटो ले लिए और मूल्यवान जीवाश्य ढूंढ निकाले । उन के फोटों से वहां की वन्य स्थिति प्रतिबिंबित हुई है ।
वर्षो के संग्रहण से श्री चो को इतने ज्यादा जीवाश्य मिले हैं कि उन के मकान ऐसी चीजों से भरेपूरे ठूंसे हुए हैं। उन की पत्नी यु चीह्वी ने कहाः
मैं उन का समर्थन करती हूं , वे अपनी पसंद पर हमेशा दृढ रहते हैं , यह उन का शौक है , व्यक्ति का कोई न कोई शौक होना चाहिए । मैं उन का समर्थन करती हूं । वे अपने संग्रहण पर लिखते भी रहते हैं , मैं भी उन के संग्रहण को पसंद करती हूं । उन के संग्रहण की प्रदर्शनी भी लगती है , इस के लिए मैं सफाई का काम करते हुए उन की मदद करती हूं ।
आज से पांच साल पहले श्री चो फङछाई ने व्यक्तिगत जीवाश्य संग्रहालय निर्मित किया , तब से बहुत से लोग उन की जीवाश्य प्रदर्शनी देखने आते हैं , जिन में बहुत से विदेशी लोग भी शामिल हैं , जो दूर दूर से आए हैं । अब उन के संग्रहालय का विस्तार भी किया गया और अलग अलग विषय पर अलग अलग संग्रहालय बनाने की योजना भी बनायी गयी , ताकि लोग विस्तार से जीवाश्य के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकें और प्रकृति को और अधिक प्यार कर सकें और हमारी इस दुनिया की कीमत समझ सकें ।
श्री चो फङछाई ने विश्वविद्यालय में लेक्चर भी किया , जिस पर व्यापक प्रतिक्रिया हुई । उन्हों ने कहाः
संग्रहण के लिए मेरा मकसद मानव समाज के लिए ऐसी दुर्लभ चीजों को सुरक्षित करना है तथा इन अमोल जीवाश्यों को इकट्ठे कर लोगों को दिखाना है । जब इन चीजों को पीढ़ी दर पीढी अच्छी तरह सुरक्षित किया जाएगा , तो लोगों को किताबी अध्ययन के लिए असली वस्तु देखने का मौका भी मिल सकेगा । यह बहुत महत्वपूर्ण काम है ।
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