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(GMT+08:00) 2007-01-17 16:24:10    
रहस्यमय ह्वा याओ यानी फूल याओ जातीय लड़कियां कसीदा करने में निपुर्ण

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प्रिय दोस्तो , हम चीन के भ्रमण कार्यक्रम में दक्षिणी चीन के क्वांगशी च्वान जातीय स्वायत्त प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्र में बसी चीनी अल्पसंख्यक जातियों में से एक लाल याओ जाति और मध्य चीन के हू नान प्रांत के पहाड़ी क्षेत्र में बसी इस जाति की एक अलग शाखा फूल याओ के बारे में कुछ बता चुके हैं ।आप को अवश्य ही मजा आया है ।

आज के चीन के भ्रमण कार्यक्रम में हम मध्य चीन के उत्तर पश्चिम हू नान प्रांत के हू शिंग पड़ाड़ी क्षेत्र में आबाद याओ जाति की ह्वा याओ यानी फूल याओ नामक एक अलग शाखा के गांव के दौरे पर जा हैं ।

हमें मालूम है कि इस जाति की शाखा का नाम फूल याओ क्यों दिया गया है । इस की देन इस शाखा की लड़कियों को जाती है । क्योंकि इस जाति के पोशाक , विशेषकर लड़कियां जो सुंदर रंगीन कसीदा कपड़े पहनती हैं , वे सब के सब खुद लड़कियों कसीदा किये जाते हैं और उन की आकृतियां भी बेहद सजीव व विविधतापूर्ण हैं । इसीलिये लोगों ने हमारी जाति को फूल याओ का सुंदर नाम दे दिया ।

फूल याओ की युवतियों के लिये कढ़ाई करने में निपुण होना और अपने हाथों से जिंदगी भर के लिये पर्याप्त स्कर्ट कसीदा करना अत्यावश्यक है , वरना कोई भी युवक उस के साथ शादी करना नहीं चाहता । इसलिये फूल याओ जाति की युवतियां अपने बचपन से ही कढ़ाई की कौशलता पर महारत हासिल करने की जी तोड़कर कोशिश करती हैं और वे अक्सर एक साथ बैठकर स्कर्टों पर विविधतापूर्ण जीती जागती आकृतियां काढ़ते हुए दिखाई देती हैं । हमारे संवाददाता ने काढ़ने में मग्न ली ली नामक युवती के साथ बातचीत की ।

जब हमारे सम्वाददाता ने उस से पूछा कि आप क्या काढ़ रही हैं , तो ली ली ने जवाब में कहा कि देखिये , मैं मछली की आकृति काढ़ रही हूं । हम जैसी फूल याओ जातीय लड़कियां आम तौर पर दस , ग्यारह साल की उम्र से ही कसीदा कला सीखने लगती हैं ।

युवतियों ने इस तरह परिचय देते हुए कहा कि उन्हें एक स्कर्ट काढ़ने के लिये सूई से कम से कम तीन लाख से अधिक पग भरना पड़ता है , अतः एक स्कर्ट काढ़ने में आधे साल का समय लग जाता है । फूल याओ जाति की महिलाएं अपने आप को सजना इतना पसंद करती हैं कि वे श्रम करने में अपना कसीदा काढ़ा स्कर्ट और चमकीले स्कार्फ कभी भी नहीं उतारती हैं ।

फूल याओ जाति का प्राचीन पेड़ों से घनिष्ट वास्ता है , हरेक गांव के आसपास प्राचीन पेड़ उगे हुए हैं । इस जाति के युवक फंग ची आन ने मुस्काराते हुए हमारे संवाददाता से कहा कि हमारी फूल याओ जाति में प्राचीन पेड़ों की पूजा करने की परम्परा है । बुजुर्ग अक्सर हमें यह उपदेश देते हैं कि जहां प्राचीन पेड़ दिखाई देते हैं , वहां अवश्य ही लोग रहते हैं । इसलिये यदि आप हमारे यहां के किसी पहाड़ पर भ्रम में पड़ गये हो , तो चिन्ता करने की कोई जरूरत नहीं , उक्त उपदेश के अनुसार प्राचीन पेड़ की खोज से बाहर जा सकते हैं ।

फूल याओ जाति को विश्वास है कि प्राचीन पेड़ इस जाति के वासियों के रक्षक हैं । गांववासी जब प्राचीन पेड़ के पास आते हैं , तो वे अवश्य ही हाथ से उसे छू लेते हैं । कहा जाता है कि इस से पूरी जाति के लिये भला है ।

फूल याओ जाति पहाड़ी गीत गाने के शौकिन है , उन के गांव में अक्सर मधुर पहाड़ी गीत सुनने को मिलता है ।

फूल याओ जाति के पहाड़ी गीत मन छूने वाले ही नहीं , बहुत से युवक व युवतियां ऐसे गीतों के माध्यम से ही प्रेम के बंधनों में भी बंध जाते हैं । साथ ही खेतों में काम करते समय वे पहाड़ी गीत गाना भी नहीं भूलते , इसलिये पहाड़ी गीत इस जाति के जीवन का एक अभिन्न भाग बन गया है ।

फूल याओ जाति के बीच अनेक प्रकार के रीति रिवाज प्रचलित हैं , जिन में शादी व्याह सब से चर्चित है । आम तौर पर शादी व्याह में दुल्हा व दुल्हन मुख्य पार्ट हैं , पर फूल याओ जाति के शादी व्याह में उन के बजाये उन का परिचायक ही है । फूल याओ जाति परिचायकों को सब से बुद्धिमान व सम्मानित मानती है । शादी व्याह में दुल्हन की सहलियां उस के परिचायक को निशाना बनाकर उस पर पतली कीचड़ फेंकने में होड़ लगा देती हैं , जबकि यह परिचायक अपने कपड़े पर पतली कीचड़ देखकर गुस्से के बजाये अत्यंत प्रसन्न हो उठता है ।

परिचायक चांग ने इस की चर्चा में कहा कि हम बहुत प्रसन्न हैं , क्योंकि जितनी अधिक कीचड़ अपने कपड़े पर फेंकी जाती हैं , हमें उतना ही अधिक सम्मान मिलता साबित होता है । इसलिये कीचड़ फेंकने का तमाशा बडा मजदार होता है ।

बेशक , जब फूल याओ जाति के जिस गांव में शादी व्याह होता है , तो उसी गांव के तमाम लोग खुशियां मनाने के लिये शादी व्याह में उपस्थित होते हैं और धधगती आग्नि के आसपास गहरी रात तक नाचते गाते रहे हैं और चारों ओर उल्लासपूर्ण माहौल व्याप्त रहा है ।

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