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(GMT+08:00) 2007-01-11 11:11:16    
पेइचिंग विश्विद्दालय के डाक्टर जू छींग जी

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डाक्टर जू छींग जीचीन के इस प्रसिद्ध विश्विद्दालय के चीनी भाषा विभाग में प्रोफेसर हैं , और पी एच डी व एम ए की डिग्री के छात्रों को अध्ययन निर्देशन देते हैं । वे पेइचिंग विश्विद्दालय के चीनी भाषा अनुसंधान केंद्र के एक प्रमुख अनुसंधान कर्ता भी हैं। उन का जन्म वर्ष 1956 की सात नवम्बर को दक्षिण पूर्वी चीन के च्यांग सू प्रांत के यी शिन शहर में हुआ। वर्ष 1992 से 1993 तक उन्होंने भारत के दिल्ली विश्विद्दालय के संस्कृत विभाग और बौद्ध धर्म शास्त्र विभाग में संस्कृत व पाली भाषाओं के साथ बौद्ध साहित्य तथा भाषा का अध्ययन किया। भारत के प्रति डाक्टर जू छींग जीके मन में गहन भावना है।

मध्यम युगीन चीनी भाषा पर भारतीय बौद्ध धर्म के प्रभाव के अध्ययन में उन की विशेष रुचि है। हाल ही में हमारी इस मशहूर भाषाविज्ञानी के साथ मुलाकात पेइचिंग में आयोजित भारतीय कांस्य मूर्तियों की प्रदर्शनी में हुई।और हम ने उन से एक विशेष बातचीत की। बातचीत में मेरा साथ दिया चंद्रिमा वहीं प्रस्तुत कर रही हैं।

भारत में अध्ययन के अपने अनुभवों की चर्चा में डाक्टर जू छींग जीबोले, भारत के लम्बे इतिहास एवं पुरानी संस्कृति ने मुझे पर बड़ी गहरी छाप छोड़ी । चीनी संस्कृति की विविधता का भारतीय संस्कृति से घनिष्ट संबंध है। चीन के धर्म ही नहीं, साहित्य तथा भाषा आदि पर भी भारत का प्रभाव पड़ा । सुप्रसिद्ध चीनी विद्वान श्री जी श्येन लिंग का विचार है कि भारत के प्रभाव को जाने बगैर चीन के पूर्वी हान राजवंश के बाद के इतिहास, साहित्य व भाषा ,यहां तक पूरी चीनी संस्कृति को अच्छी तरह जानना मुश्किल है। उन की बात बिलकुल है। भारत में रहने के दौरान, मैंने अनेक चीजें पढ़ीं । साथ ही मैंने संस्कृति की भिन्नता भी देखी, विशेषक धर्म के प्रति मेरी समझ औऱ बढ़ी । धर्म मानव संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग है। यदि मैंने भारत की यात्रा न की होती, तो धर्म के प्रति मेरी समझ बहुत सीमित रहती। भारत में अध्ययन का मेरा लक्ष्य मकसद चीनी संस्कृति के भारतीय संस्कृति में स्रोत को समझना था। मेरा विचार है कि चीनी संस्कृति की जीवनी शक्ति इसलिए इतनी बलवान होती है, क्योंकि उस का विविधता से संबंध है। भाषा एवं स्स्कृति के गहन अध्ययन के बाद ही मुझे पता चला कि हमारे दैनिक जीवन के हर क्षेत्र में भारत का कैसा प्रभाव है।

भारत के अपने प्रवास की चर्चा में श्री जू छिंग जी ने हमें बहुत दिल्लचस्प भारतीय रिति रिवाजों की जानकारी दी। वे कहते हैं, मेरा विचार है कि भारत पुराना होने के साथ साथ आधुनिक देश भी है। बौद्ध धर्म के हमारी शात्रों से देखा जा सकता है कि हमारे यहां में अब तक प्रचलित अनेक रीति रिवाज़ प्राचीन भारत से आये हैं। हालांकि भारत व चीन पड़ोसी हैं, बावजूद इस के दोनों की संस्कृति में भारी असमानताएं भी हैं। हम ने बौद्ध शास्त्रों में पढ़ा था कि प्राचीन भारत में लोग नीम से मंजन करते थे। औऱ यह भारतीय आदत अब भी बरखरार है। भारतीय लोगों के और भी विशेष रिवाज़ हैं। एक और मिसाल लें, मांस बिक्रेता चीनी आम तौर पर मांस के छोटे टुकड़े करने के लिए हाथ में चाकू लेकर उस पर चोट करता है। जबकि भारतीय कसाई को लकड़ी के कुंदे पर स्थित चाकू को पैरों से दककर दोनों हातों से उस पर मांस छीलना पसंद है।

श्री जू छिंग जी ने हमें एक और रोचक बात बतायी। चीन के युद्धरत राज्य ज्येन क्वो काल में हुए विद्वान छ्यू व्येन की रचना आकाश से प्रश्न या 天问 में कहा गया है कि चंद्रमा पर खरगोश का निवास है। जबकि , ईसापूर्व 1000 वर्ष की भारतीय रचना ऋग वेद बताती है कि उस समय के भारतीय लोग चंद्रमा में खरगोश होने की बात पर विश्वास करते थे। श्री जू का मानना है कि प्राचीन चीन व भारत के सांस्कृतिक आदान-प्रदान में चीनी संस्कृति ने स्पष्ट रुप से भारतीय संस्कृति से लाभ उठाया था। उन्होंने कहा कि पेइचिंग में लगी भारतीय प्रदर्शनी ने हमें धर्म की संस्कृति के प्रभाव को अच्छी तरह दिखाया भी है।

पर्यटन डाक्टर जू का प्रिये विष्य है। हालांकि उन्होंने भारत की केवल एक बार भारत की यात्रा की, तो उन्होंने वहां की अनेक विशेष जगहों का भ्रमण किया। उन का अनुसंधान विष्य चीनी संस्कृति व उस पर भारतीय संस्कृति का प्रभाव है, और विशेष रुप से बौद्ध धर्म उन के अधअययन का केंद्र रहा। इसलिए, वे पूर्वी भारत के बिहार प्रदेश से पश्चिम के आजंता तक गये। डाक्टर जू कहते हैं हम चीनी लोग सभी बौद्ध धर्म के अनुयाई नहीं हैं, फिर भी इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि बौद्ध संस्कृति ने हर चीनी के दिल पर प्रमुख डाला है। भारतीय संस्कृति, विशेषकर बौद्ध संस्कृति के प्रति हमारे मन में गहरी भावना है। हमारे दैनिक

जीवन में अकसर दिखने व सुनपड़ने वाली कुछ सांस्कृतिक रीतियों का स्रोत हम भारतीय संस्कृति में पाते हैं, यह बहुत ही रोचक तथ्य है।

14 फरवरी से 17 मार्च तक पेइचिंग के राष्ठ्रीय सहसत्राब्दी मंडय में आयोजित हुई भारतीय कांस्य मूर्तियों की प्रदर्शनी के उद्घाटन समारोह में प्रोफेसर जू भी आमंत्रित थे। इस प्रदर्शनी की चीन व भारत के सांस्कृतिक आदान-प्रदान में संभव भूमिका की चर्चा में उन्होंने कहा,

इस प्रदर्शनी का बहुत महत्व है। चीन व भारत के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना के बाद आयोजित हुआ यह सब से महत्वपूर्ण आयोजन है। इस में प्रदर्शित सभी कांस्य मूर्तियां भारती सांस्कृतिक अवशेष हैं। ये सब भारत के सब से पुराने संग्रहालय कोलकत्ता संग्रहालय से यहां लाई गई हैं। इन में मूर्तियों के अलावा, हिन्दु और जैय धर्मों की मूर्तियां हैं। इस से कहा जा सकता है कि यह प्राचीन भारत की सभ्यता की एक झलक देती है। इन मूर्तियों ने हमें चीन व भारत की संस्कृति को और अच्छी तरह जानने का मौका दिया है।

प्रोफेसर जू पेइचिंग विश्विद्दालय में भारत से संबंधित विष्यों जैसे बौद्ध धर्म केअनुसंधान, बौद्ध शास्त्र के अध्ययन , प्राचीन चीन व भारत के सांस्कृतिक आदान-प्रदान के इतिहास एवं संस्कृत पाठ्यक्रम के प्रभारी हैं। पेइचिंग विश्विद्दालय की संस्कृत शिक्षा को लेकर उन्होंने कहा,

पहले हमारे विश्विद्दालय में संस्कृत की कक्षा नहीं थी। लेकिन, अब चीन के सब से मशहूर विश्विद्दालय होने के नाते यहां इस तरह के पाठ्यक्रम चलाने का विशेष अर्थ है। वर्ष 1999 से विश्विद्दालय में प्राचीन भाषाओं का अध्ययन शुरु हुआ, तो संस्कृत, लातिन एवं यूनानी भाषाएं इस में शामिल हुईं। मेरा विचार है कि इस का लक्ष्य पेइचिंग विश्विद्दालय के स्तर को उन्नत करना भी था। क्योंकि विश्व के सभी मशहूर विश्विद्दालयों में प्राचीन भाषाओं के अध्ययन को बहुत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। पहले हमारे विश्विद्दालय में ऐसी कक्षाएं नहीं थीं। जिस का मुझे बहुत खेद था, पर इधर देश में रुपांतरण की नीति लागू होने के साथ हम ने अपने लम्बे इतिहास एवं संस्कृति के प्रचार प्रसार के कर्तव्य को कही गहरे महसूस किया औऱ इसीलिए, हमें दूसरे देशों की संस्कृति, विशेषकर भारतीय और यूरोपय की परम्परागत संस्कृति की जानकारी पाना बहुत जरुरी लगा। डाक्टर जू के अनुसार, हालांकि फिलहाल संस्कृत के छात्रों की संख्या बहुत अधिक नहीं है, फिर भी यह साल दर साल बढ़ रही है। उन का विचार है कि इस तरह के पाठ्यक्रम पेइचिंग विश्विद्दालय की शिक्षा की गुणवत्ता एवं प्रभाव को उन्नत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।