चीन के सिन्चांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश की फुहाई काऊंटी में रहने वाले विकलांक लेखक श्री क्वोछङ इधर के सालों में काफी मशहूर हो गया । उन्हों ने अपनी कृत्रिम हाथों के बूते कम्प्युटर के की बार्ड पर लाखों शब्दों के दो उपन्यास और अनेक कविता संग्रह लिख कर प्रकाशित किये हैं ।
श्री क्वोछङ इस साल 32 वर्ष के हुए हैं । वर्ष 1998 में एक गाड़ी दुर्घटना में उन्हें गंभीर पक्षघात लगा और डाक्टर ने उन के सिर्फ दो साल जीवित रहने का दावा किया । किन्तु श्री क्वोछङ ने अपना ऐसा भाग्य नहीं माना और समाज के लिए एक कर्मक व्यक्ति बना रहने की कोशिश की ।
ऊरूमुची शहर के एक अस्पताल में हमारे संवाददाता की पलंग पर लेटे क्वोछङ से मुलाकात हुई । उन के सिर पर बाल छोटे है , शरीर में थोड़ा मोटा और आंखों पर चश्मा चढ़ा हुआ, उन की आंखों में तेज की ज्योति चमकती है और चेहरे पर हमेशा मुस्कराहट खिलती है । वे पलंग पर एक रूईदार बिस्तर पर पीठ टेके लेटे हुए है और पांव एक लकड़ी की तख्ते पर टिकाए हुए । लेकिन कुछ ही देर में उन के पैरों में तीव्र कंपी आयी और चेहरे की मांसपेशी भी बेकाबू हो कर सिकुड़ने लगी । ऐसी हालत में उन का शरीर एक पिंड के रूप में सिकुड़ा , और उन की मां ने उन के जकड़े हुए पैरों को धीरे धीरे ठीक कर दिया और पुनः तख्ते पर टिकवाया । थोड़ा आराम मिलने पर श्री क्वोछङ के चेहरे पर फिर मुस्कान खिली । उन्हों ने कहा कि उन के लिए सब से बड़ी खुशी की बात यह है कि वे अपनी पुस्तकों की कमाई से खुद बीमारी के इलाज का खर्च दे सकते हैं । वे कहते हैः
पिछले आठ सालों में न जाने कितनी बार अस्पताल में भर्ती किया गया है , इलाज का सभी खर्च मां बाप ने उठाया , यह मां बाप की खून पसीने की कमाई है , मैं अब भी उस वक्त की बात नहीं भूल सकता है कि बड़ी मुसीबत से मारे मां बाप ने किस तरह लोगों से पैसा उधार लिया । कड़ाके की सर्दियों में हो , या तपती गर्मियों में , वे हर जगह पैसा उधार लेने जाते थे । अब हालत बदली , मैं ने जो पुस्तकें लिखी हैं , उस से छै हजार य्वान की आय आयी , इतनी धन राशि पर मैं राहत से इलाज करवा सकता हूं ।
श्री क्वोछङ के अनुसार गाड़ी दुर्घटना का शिकार होने के बाद उन का मन मरा हुआ जैसा हो गया , कभी एक तंदुरूस्त युवक था , तो कभी पलंग पर लेटा अपाहिज । जब रोज खिड़की से बाहर झांकते झांकते जीवन गुजारता था , तो मेरी आंखों में बार बार आंसू भर आती थी । हर वक्त पलंग पर पड़ने के कारण मेरे शरीर में बेडसॉर पड़ा और हड्डी भी निकल कर दिखाई पड़ी , इस नाचार हालत में आत्महत्या करने की कोशिश में खाना पीना छोड़ने का भी मन हुआ ।
उसी समय , जब आगे जीने के लिए क्वोछङ का मनोबल करीब करीब मिटा , उन की मां जी ने उन्हें एक अकल्पनीय बात बतायी । अपने पुत्र का इलाज करवाने के लिए मां जी दिन में नौकरी का काम करती हैं , रात में कागज के डिब्बे चिपकाने के काम से कुछ कमाने की कोशिश भी करती है । इलाज का असह्य खर्च देने के लिए मां जी ने कई बार दूसरों के सामने दंडवत कर भीख मांगी थी । क्वोछङ का मन टूट गया , आंखों से आंसू बेकाबू हो कर बह गयी । मांजी के पूर्व के कोमल गोरे हाथ अब बुरी तरह सूज गए और खुरदरे हो गए तथा सिर पर बाल पक्के भी हुए । तब क्वोछङ को लगा कि यदि वे अपने स्वास्थ्य को बर्बाद करने की कोशिश करें, तो मां जी के महान मातृत्व को बर्बाद करने के तूल्य है ।
उसी दिन से श्री क्वोछङ ने अपनी जिन्दगी का महत्व समझा और अपना कर्तव्य निभाने की कटिबद्धता ली । उन के बाप भी बीमारी से पीड़ित है और पारिवारी जीवन का भार अपने 1000 य्वान मासिक वेतन से संभालते हैं । इस पर श्री क्वो ने कहाः
लकवा मारा तो सत्य है , पर मैं यथाशक्ति से कुछ न कुछ कर सकता हूं । मैं कला साहित्य के शौकिन हूं । पलंग पर लेखन का काम करने के लिए समक्ष हूं । इस तरह जीवन को खाली नहीं बिताऊंगा और कुछ कमाने की भी कोशिश कर सकता हूं ।
जब बड़ी बहन ने नोटबुक कम्प्युटर सेट को श्री क्वोछङ के सामने रखा , तो वे बहुत चकरे हुए , कम्प्युटर से वे सरासर अंधे थे । फिर भी कोशिश तो करना चाहिए । लकवा से मारे क्वो छङ के लिए इस आधुनिक चीज का प्रयोग सीखना कोई आसान काम नहीं था , हाथ में जीवन शक्ति नहीं होने पर उन्हों ने एक लोह हुक से अपनी कलाई बांध कर बांह को घूमाने के जरिए की बॉर्ड पर की दबाने के तरीके का आविष्कार किया । अद्मय और अथक मेहनत का रंग आया , उन्हों ने कम्प्युटर पर 28 शब्दों की एक कविता लिखने में कामयाबी हासिल की । स्वस्थ व्यक्ति के लिए बड़ा आसान काम , पर उन के लिए कड़ी मेहनत की जरूरत है । अपनी सफलता पर उन्हें जो खुशी का मसहूस हुआ , वह दूसरों के लिए असोचनीय है । उन्हों ने कहाः
नौ महीनों में मैं ने दो उपन्यास लिखे , खाने , सोने और शोचालय जाने के समय को छोड़ कर बाकी तमाम समय में मैं लिखता रहा । हर रोज दस घंटे ज्यादा समय तक की बॉर्ड पर हाथ चलाता रहता हूं । कम्प्युटर पर लिखने के लिए मुझे बगल की ओर लेटे बांह का प्रयोग करना पड़ता है , इसलिए रोज मैं केवल एक हजार शब्द लिख सकता हूं । मेरे एक उपन्यास के चार लाख 50 हजार शब्द हैं , एक शब्द के लिए कम से कम तीन बार की दबाने के हिसाब से एक उपन्यास को पूरा करने में मेरे बांह को 15 लाख बार चलाना चाहिए ।
एक साल बाद , क्वोछङ कम्प्युटर पर लिखने में कुशल हो गया और उन का प्रथम उपन्यास –चार लाख 50 हजार शब्दों का लम्बी रात से गुजरा उन के लोह हुक से बंधे भुज से पूरा किया गया है । संबंधित संस्था की मदद से लम्बी रात से गुजरा प्रकाशित हुआ , फिर उन के निबंध व कविता संग्रह भी जीवन की ज्योति शीर्षक में प्रकाशित हुआ ।
उपन्यास कहानी लिखने की सफलता के आधार पर श्री क्वोछङ ने दांतों से चीनी परम्परागत ब्रश पेन पकड़े लिपीकला का अभ्यास करने का प्रयास किया । इस काम करने में उन के शरीर का ऊपरी भाग चमड़े के फीते से चेयरकुर्सी पर बांधा गया और दांतों से चापस्तिक पकड़े , फिर चापस्तिक पर ब्रश पेन बांधे , इस तरह मुंह , दांतों और जीभ की शक्ति लगा कर ब्रश पेन को घूमा कर लिखना , आप सोचे , यह कितना अकल्पनीय कठोर काम है । किन्तु श्री क्वो छङ ने अपने दृढ संकल्प और कड़ी मेहनत के बल पर इस असाधारण कठिन काम को पूरा कर लिया है । अब उन का लिपीकला का स्तर श्रेष्ठ दर्जे पर पहुंचा है ।
अद्मय मनोबल और कड़े परिश्रम से श्री क्वोछङ ने स्वस्थ लोगों से भी श्रेष्ठ कारनामे किए हैं , पर उन का स्वास्थ्य भी काफी गिर पड़ा , गुरदों में पानी जम गया और शरीर में प्रतिरोधक शक्ति कमजोर हुई , इस पर उन्हों ने कहाः
क्या पता है कि गुरदों में भी बीमारी पड़ी , मैं आठ सालों से गंभीर बीमारी से जूझता आया हूं , अब मेरी कोई घबराहट नहीं हुई , एक तरफ ध्यान से बीमारी का इलाज कराता हूं , दूसरी तरफ साफ साफ समझ जाना चाहिए कि जीवन अल्पकालिक होता है , जब तक मैं जीता हूं , तब तक कुछ न कुछ लाभदायक काम करता रहूंगा । मैं मौत से नहीं डरता हूं ।
पलंग पर लेटे श्री क्वोछङ हमेशा मुस्कराते रहते हैं , उन से मिलने आए लोगों की आंखों में आंसू भरी देख कर उन्हों ने उन्हें जो गीत गुनगुन कर गाया , उस का नाम है मर्द है , तो मर्दानगी होना ।
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