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हाल में चीन की राजधानी पेइचिंग में विक्लांगों की व्यवसायिक हुनरों की प्रदर्शनी लगायी गयी, जिसमें एक व्यक्ति जिसके हाथ नहीं है अपने मुँह और पैरों से खराब घड़ियों को ठीक कर रहा था। इस प्रदर्शनी में देखा गया की कुछ ही समय में वह खराब घड़ीयों को ठीक कर दे रहा था।
इस व्यक्ति की लगन और परिश्रम और उसकी एकाग्रता की सराहना करने के लिए हर एक को प्रदर्शनी जाने की जरुरत नहीं है। जरा सोचिए, एक घड़ी के पुर्जे कितने छोटे और बारिक होते हैं। सुनने में काफी आशचर्यजनक और चकित करने वाली बात है की इस प्रकार के अनोखे हुनर और कार्यकुशलता विक्लांग कैसे अपने लगन और धैर्य से विकसित करते हैं।
उदाहरण के लिए 28 वर्षिय वांग चिआंगहाई को ही ले लीजिए जो बचपन में एक दुर्घटना के शिकार होने के कारण केवल पांच वर्ष की उम्र में ही अपने दोनों हाथ खो दिए। लेकिन वांग ने जिंदगी में हिम्मत नहीं हारी और सतारह वर्ष की उम्र में ही वे खराब घड़ीयों की मरम्मत करने का काम सीखने लगे।
पिछले ग्यारह सालों में उन्होंने 10, 000 से भी अधिक घड़ियों की मरम्मत की है। 
इस बात की दाद देनी होगी वांग को की कितनी ज्यादा आत्म विशवास है उनमें कि वे सारी मुसिबतों को अपने कठिन लगन और परिश्रम से मात देते हुए अपने लगन से और दृढ़ता से अनोखे हुनर हासिल किये। वांग को अपने बदकिशमति से कितना बड़ा महासंग्राम करना पड़ा होगा लेकिन उन्होंने एक पल के लिए भी हार नहीं मानी।
वांग के जैसे मेहनती लोग आज के युवा पीड़ि के लिए एक आदर्श हैं लेकिन आज की युवा पीड़ि को मनेरंजन उद्योग और टीवी से इतना ज्यादा लगाव है की वे इसकी झूठी ग्लैमर के पीछे भागते हैं और पाप, एक्टिंग, संगीत के दुनिया के सितारे इनके आदर्श हैं।
इसका जीता जागता नमूना है पेइचिंग की एक बेरोजगार महिला जिसके बारे में पेइचिंग की मीडिया ने रिपोर्ट किया। इस महिला का उम्र, वांग चिआंगहाई की भांति 28 वर्ष है और इसने अपने जिंदगी के पिछले ग्यारह वर्ष केवल हांगकांग के एक मशहूर एक्टर के साथ मुलाकात करने के इंतजार में बिता दिया।
इस मशहूर कलाकार के साथ उसका मुलाकात कराने के लिए इस महिला के माता पिता को अपना घर बेचना पड़ा और उन्हें कई सारी कठिनाईयों का सामना करना पड़ा।
इस तरह के उदाहरण आज की समाज में कई रुपों में हमें देखने को मिलती है। आज का समाज में नैतिक मूल्यों का पतन, भौतिकता की उत्थान और आध्यात्मिकता की पतन काफी साफ नजर आ रही है।
चीन एक विकासशील देश है और ऐसा देश एक हद के बाद भौतिकता से परिपूर्ण जीवनशैली को बढ़ावा देने में न सिर्फ अयोग्य है बल्कि ऐसे शैली को बढ़ावा देने के लिए उसके पास जरुरत संसाधन और पर्याप्त धन नहीं है। इसीलिए ऐसे समय पर हमें भौतिकता पर नहीं बल्कि कड़े परिश्रम और मेहनत से अपने जीवनोनत्ती के लिए और समाज और राष्ट्र कल्याण के लिए लगन से काम करना चाहिए। क्यों न हम यह काम आज और अभी शुरु करें?
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