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थ्वोपा हुङ अर्थात उत्तरी वेइ राजवंश के सम्राट श्याओवन (शासनकाल 471-499) ने हान जाति के जमींदार वर्ग के राजनीतिक अनुभव से प्रभावित होकर सिलसिलेवार अनेक सुधार किए।
485 ई. में उसने भूमि के समान वितरण की नीति अपनाई, जिसके अन्तर्गत किसान परिवारों को उनकी सदस्य-संख्या व श्रमशक्ति के आधार पर सरकारी जमीन वितरित की गई। बदले में, किसान सरकार को लगान के रूप में अनाज तथा नजराने के तौर पर रेशम या कपड़ा देते थे।
उन्हें राजकीय कार्यों में अपना श्रम भी देना पड़ता था और सैनिक सेवा करनी पड़ती थी। भूमि के समान वितरण की नीति के लागू होने से ऐसी तमाम जमीन, जो बेकार पड़ी हुई थी, भूमिहीन किसानों को मिल गई।
फलस्वरूप, उत्तरी चीन की अर्थव्यवस्था के स्वस्थ विकास का आधार तैयार हो गया, सरका री राजस्व में वृद्धि हुई और किसानों से बेगार लेने में भी कुछ सुविधा हो गई।
494 ई. में उत्तरी वेइ राजवंश अपनी राजधानी फिङछङ से हटाकर ल्वोयाङ ले आया और इस प्रकार उसने मध्यवर्ती मैदान पर अपना नियंत्रण सुदृढ़ कर लिया।
इसी बीच उत्तरी वेइ सम्राट ने हान जाति की जनता से सीखने का एक कार्यक्रम चलाया, जिसके अन्तर्गत श्येनपेइ जाति के कुलीन लोगों को हान जाति के कुलनाम व वेशभूषा अपनाने, उनकी भाषा बोलने तथा उनके साथ विवाह-संबंध स्थापित करने को प्रेरित प्रोत्साहित किया गया।
यहां तक कि उत्तरी वेइ की राजनीतिक व्यवस्था भी हान व्यवस्था के ढांचे के अनुसार निर्मित की गई। उत्तरी वेइ राजवंश द्वारा किए गए इन तमाम उपायों का उद्देश्य हान जाति के जमींदारों का समर्थन प्राप्त करना था। वस्तुगत रूप से, इन उपायों ने श्येनपेइ समाज के सामन्तीकरण की गति तेज कर दी और उत्तरी चीन की तमाम जातियों के समागम में सहायता की।
उत्तरी वेइ राजवंश के अन्तिम काल में सामाजिक अन्तरविरोध तीव्र हो गए और इस तीव्रीकरण की परिणति उत्तरी वेइ शासन के विरुद्ध ह्वाङहो नदी के उत्तर की विभिन्न जातियों की जनता के एक बड़े विद्रोह में हुई।
यह विद्रोह असफल रहा, किन्तु उसके बाद स्वयं उत्तरी वेइ राजवंश के शासकों के बीच परस्पर भ्रातृहत्या का सिलसिला शुरू हो गया और अन्त में राजवंश में फूट पड़ गई।
577 ई. में उत्तरी चओ राजवंश ने समूचे उत्तरी चीन को एक किया और अपने नए राज्य में अनेक प्रकार के सुधार किए। इस के फलस्वरूप उसकी आर्थिक व सैन्य शक्ति इतनी बढ़ गई कि वह दक्षिणी चीन के अ पने समकालीन प्रतिद्वंद्वी छन राजवंश को समाप्त कर समूचे चीन का एकीकरण करने की स्थिति में पहुंच गया।
इस काल में संस्कृति व विज्ञान के क्षेत्र में नई प्रगति हुई। विशिष्ट वैज्ञानिक चू छुङचि (429-500) ने वृत्त की परिधि व व्यास का अनुपात 3.1415926 और 3.1415927 के बीच की संख्या ग के रूप में निर्धारित किया। च्या सिश्ये ने कृषि और पशुपालन के बारे में मेहनतकश जनता के अनुभवों का निचोड़ निकाल कर"छी मिन याओ शू"(कृषि व पशुपालन निर्देशिका) नामक पुस्तक लिखी।
ली ताओय्वान (465 अथवा 472-527) द्वारा लिखित "नदीशास्त्र की व्याख्या" एक महत्वपूर्ण प्राचीन भौगोलिक पुस्तक मानी जाती है। बौद्धधर्म उस समय तक अति लोकप्रिय हो गया था तथा उसे शासक वर्ग का संरक्षण भी प्राप्त हो गया था।
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