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(GMT+08:00) 2006-12-20 09:34:33    
स छ्वान प्रांत-- दक्षिण पश्चिमी चीन के स छ्वान प्रांत में खड़े अर्मेई पर्वत और ल शान पर्वत का दौरा

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स छ्वान प्रांत -- पांडा की जन्मभूमि सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए आप का स्वागत । आज के इस कार्यक्रम में आप मेरे साथ दक्षिण पश्चिमी चीन के स छ्वान प्रांत में खड़े अर्मेई पर्वत और ल शान पर्वत का दौरा करेंगे । लेकिन कार्यक्रम सुनने के पहले आप ध्यान से सुनिए इस के लिए दो सवाल। पहला सवाल है: क्या अर्मेई पर्वत चीनी बौद्ध धर्म के तीर्थ स्थलों में से एक है ?दूसरा सवाल है: विश्व की सब से बड़ी बुद्ध मुर्ति यानी ल शान पर्वत पर बनायी गयी महा बुद्ध मुर्ति की उंचाई कितनी है ?दोस्तो , इन दो सवालों का जवाब हमारे इस कार्यक्रम में मिल सकता है, मुझे विश्वास है कि ध्यान से कार्यक्रम सुनने के बाद आप को इस का उत्तर जरूर मिल जाएगा ।

दक्षिण पश्चिमी चीन के स छ्वान प्रांत में स्थित अर्मेई पर्वत चीन के प्रथम पर्वत के नाम से मशहूर है । कहा जाता है कि ईस्वी चौथी शताब्दी में भारतीय भिक्षु पाओ चांग ने अर्मेई पर्वत का दौरा किया और इस अद्भुत पहाड़ से बहुत मोहित हो कर उन्होंने इसे को चीन का प्रथम पर्वत की उपाधि । इसी तरह अर्मेई पर्वत चीन के प्रथम पर्वत के नाम से विश्व में मशहूर हो गया ।

अर्मेई पर्वत की उंचाई समुद्र सतह से तीन हज़ार से ज्यादा मीटर है । पर्वत की तलहटी से चोटी तक के जल वायु और तापमान का बड़ा अन्तर होता है , जिस से पर्वत पर किस्म किस्म की वनस्पतियां उगती हैं । आंकड़ों से पता चला कि अर्मेई पर्वत में पांच हज़ार से ज्यादा किस्मों की वनस्पतियां उपलब्ध हैं , जो सारे युरोप की कुल वनस्पति किस्मों के बराबर है, यहां विश्व के दुर्ल किस्मों की बहुत सी वनस्पतियां भी मिलती हैं । सारा अर्मेई पर्वत हरे भरे पेड़ों से भरपूर्ण है, एक साल की चार ऋतुओं में तथा पर्वत की भिन्न-भिन्न उंचाई पर प्राकृतिक दृश्य अलग-अलग के होते हैं । प्राचीन ऐतिहासिक उल्लेखों के अनुसार अर्मेई शब्द का मतलब सुन्दर युवती की भौंह है, एक पर्वत को ऐसा नाम दिया जाने से आप को अर्मेई पर्वत की सुन्दरता महसूस हो सकती है ।

अर्मेई पर्वत चीन में इसलिए भी मशहूर है कि वह बौद्ध धर्म से घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है । ईस्वी पहली शताब्दी में बौद्ध धर्म भारत से अर्मेई पर्वत तक आ पहुंचा, जहां चीन के प्रथम बौध मठ की स्थापना हुई । धीरे-धीरे इस मठ के आसपास बड़ी संख्या में मठों के निर्माण के बाद अर्मेई पर्वत चीनी बौद्ध धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक बन गया । यहां हर रोज़ पूजा करने आने वाले अनुयायियों की संख्या बहुत ज्यादा है ।

अर्मेई पर्वत में बौधिसत्व सामंतभद्र की पूजा की जाती है । वर्तमान में अर्मेई पर्वत में करीब 30 मठ हैं और लगभग 300 भिक्षु भिक्षुणी रहते हैं ।

अर्मेई पर्वत पर निर्मित मठ बहुत प्राचीन ही नहीं, रहस्यमय भी है । इस पर्वत की यात्रा करने के दौरान अगर आप का भाग्य खुला है, तो किसी मठ की धार्मिक गतिविधि में भाग लेने का मौका भी मिल सकता है, बौद्ध धर्म के इस विशेष वातावरण में आप की चित्त को बड़ी शांति मिलेगी ।

अर्मेई पर्वत की सब से उंची चोची को स्वर्ण चोटी कही जाती है । यहां तीन स्वर्ण बुद्ध भवनों के अलावा बौधिसत्व सामंतभद्र की 48 मीटर लम्बी स्वर्ण मूर्ति बहुत ध्यानाकर्षक है । हमारी गाइड सुश्री यांग थाओ ने जानकारी देते हुए कहा, "इस मुर्ति में बौधिसत्व सामंतभद्र सफेद हाथी पर सवार है , चार तरफ में उन के मुख आनंद , क्रोध , उदास और खुशी की मुद्रा में है , इस मूर्ति की दस पहलुएं भी हैं , जो चीन की इस प्रकार की एकमात्र बुद्ध मु्र्ति है , चारों ओर से उन्हें निहारने पर तो लगता है कि वे हमेशा दर्शकों की ओर मुख कर देखते हैं और भक्तों को वरदान देते हैं । "

श्री ली गेन व्यान बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं, वे विशेष तौर पर कोरिया गणराज्य से सामंतभद्र बौधिसत्व की पूजा करने के लिए अर्मेई आए हैं । उन्होंने कहा ,"इस बार मेरे अर्मेई आने का प्रमुख मकसद सामंतभद्र की मूर्ति का दर्शन करना है । मुझे लगता है कि चीन एक महान देश है । मैं ने दस मुखों वाली इस बुद्ध मूर्ति के सामने दस बार दंडवत किया, और तीन स्वर्ण भवनों के बाहर तीन बार नतमस्तक किया । इस के अलावा मैं ने पूजा प्रार्थना के लिए मठ को दान भी दिया। "

अर्मेई की स्वर्ण चोटी बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए एक अहम तीर्थ स्थल होने के अलावा सुर्योद्य और बादल का समुद्र जैसा अनोखा प्राकृतिक सौंदर्य देखने की अच्छी जगह भी है । हर रोज़ सूर्योद्य के समय सारा अर्मेई पर्वत स्वर्णीय किरणों में डूब गया , जो अतूलनीय मन मोहक सां बनता है । सूर्योद्य के बाद सफेद-सफेद बादल टुकड़े पर्वत के नीचे की ओर से धीरे-धीरे ऊपर तैर कर आते हैं , जो अर्मेई पर्वत की चोटी पर सफेद बादलों के अनंत विशाल समुद्र के रूप में दिखाई पड़ता है । इसी वक्त आप को महसूस हुआ कि कुदरती शक्ति इतनी आश्चर्यचकित और अद्भुत रहस्यमय होती है ।

अगर सौभाग्य हो, तो पर्यटक अर्मेई पर्वत की चोटी पर एक और किस्म का आश्चर्यजनक दृश्य देख सकता है । यह आश्चर्य अर्मेई पर्वत की बुद्ध प्रभा के नाम से मशहूर है । पर्वत चोटी पर दिखने वाला बुद्ध प्रभा असल में एक विशेष प्राकृतिक भौगोलिक नजारा है । इस समय विशाल सफेद बादल के समुद्र के बीच सप्त रंगों वाला एक विशाल तेज प्रकाश माला दिखाई देती है, पर्यटक की छाया इसी इंद्रधनुष जैसी प्रकाश माला के भीतर दिखती है । अगर आप चलते फिरते हो, तो प्रकाश माले के अन्दर आप की छाया भी चलती फिरती है । कहते हैं कि बुद्ध प्रभा मंडल का दर्शन कर सकने वाला व्यक्ति का भगवान बुद्ध से संबंध होता है । लेकिन ऐसे विशेष दृश्य को देख पाने का अवसर बहुत कम है । वैज्ञानिक अनुसंधान के अनुसार बुद्ध प्रभा मंडल जैसा प्रकाश माला पैदा होने के लिए सूर्य की किरणों और विशेष भौगोलिक स्थिति की आवश्यक्ता है । दोस्तो, अगर आप को इस में रूचि हो, तो आइये, अर्मेई पर्वत का दौरा करें, शायद आप यहां बुद्ध प्रभा भी देखने को मिल पाएं, और आप का भाग्य भगवान बुद्ध के साथ जोड़ा हुआ होगा ।

बौद्ध धर्म के विकास के चलते अर्मेई पर्वत की विविध संस्कृति का विकास भी हुआ है । प्राचीन मठ और बुद्ध मूर्तियों के अर्मेई पर्वत के सुन्दर प्राकृतिक दृश्य के साथ मिलकर विशेष संस्कृति भी पैदा हुई । अब अर्मेई पर्वत को युनेस्को के विश्व प्राकृतिक व सांस्कृतिक विरासत की नामसूचि में शामिल किया गया है। स छ्वांग प्रांत में अर्मेई पर्वत का दौरा करने के बाद अगर आप को चीनी बौद्ध धर्म में रूचि बनी रहे , तो अर्मेई पर्वत से पश्चिम में तीस किलोमीटर दूर स्थित ल शान पर्वत की सैर भी कर सकेंगे, यहां विश्व की सब से बड़ी बुद्ध मूर्ति---ल शान महा बुद्ध मूर्ति विराजमान है । इसे देख कर आप को जरूर आश्चर्य व आलीशान लगता है ।

ल शान पर्वत की महाबुद्ध मूर्ति पर्वत की सीधी खड़ी चट्टान पर खोदी गयी है, जिस की लम्बाई 70 से ज्यादा मीटर है और दोनों कंधों के बीच चौड़ाई 20 से ज्यादा मीटर । मूर्ति का सिर पर्वत की चोटी पर है और पांव पर्वत की तलहटी में बहती नदी के तट पर । इस मूर्ति की मुद्रा बहुत सौम्य और शांत है । स्थानीय लेगों का कहना है कि पूरा ल शान पर्वत एक बुद्ध मूर्ति है, जबकि बुद्ध मूर्ति एक पर्वत भी । ल शान पर्वत की महाबुद्ध मूर्ति देखने के बाद पर्यटकों को जरूर आश्चर्य हुआ होगा कि आखिरकार यहां क्यों इतनी बड़ी मूर्ति का निर्माण किया गया, और किस ने इस का निर्माण किया था । हमारी गाइड सुश्री वू ली फिंग ने हमें एक कहानी सुनाते हुए कहा,"ल शान पर्वत की महाबुद्ध मूर्ति का निर्माण थांग राजवंश यानी ईस्वी सातवीं शताब्दी से शुरू हुआ । हाई थोंग नामक एक भिक्षु ल शान आए थे, उन्होंने देखा कि ल शान के पास से तीन नदियां गुज़रती हैं और यहां नाव के डूब जाने से लोगों की मृत्यु होने की घटना हुआ करती थी । नदी के किनारे महा बुद्ध मुर्ति खोदने से बाढ़ पर काबू पाने के लिए भिक्षु हाई थोंग ने ल शान पर्वत को महाबुद्ध मूर्ति का रूप देने का निश्चय किया । अनगिनत कठिनाइयों और स्थानीय भ्रष्ट दुष्ट अधिकारियों के ठगने को दूर करने के बाद भिक्षु हाई थोंग ने इस महा बुद्ध मुर्ति का सिर बनवाया , जब उन का निर्वाण हुआ ।

इस के बाद दो पीढ़ियों के लोगों द्वारा नब्बे सालों तक निर्माण किया जाने के बाद ल शान पर्वत की महाबुद्ध मूर्ति का निर्माण अखिरकार पूरा हो गया । बड़ी संख्या में बौद्ध धर्म के भिक्षु और अनुयायी दूर से यहां पूजा करने आते हैं । पश्चिमी चीन के छिंगहाई प्रांत के नालाछिंग मठ के जीवित बुद्ध नोर्बु रिन्पोचे ने ल शान पर्वत की महाबुद्ध मूर्ति का दर्शन करने के बाद कहा ,"हमारे बौद्ध धर्म के सभी अनुयायियों के लिए यहां आकर महाबुद्ध की इस लम्बे इतिहास वाली विशाल मूर्ति की पूजा करना बहुत अच्छी बात है , इस से हमारी बुद्धि खुल जाएगी।"

दोस्तो, स छ्वांग प्रांत के अर्मेई पर्वत और ल शान पर्वत का दौरान करने से आप को चीनी बौद्ध धर्म की संस्कृति का गुढ़ जरूर महसूस हुआ होगा । अच्छा, कार्यक्रम समाप्त होने के पूर्व मैं आप को एक बार फिर आज के सवाल याद दिलाती हूं , प्रथम सवाल है : क्या अर्मेई पर्वत चीनी बौद्ध धर्म के तीर्थ स्थलों में से एक है ?दूसरा सवाल है: विश्व की सब से बड़ी बुद्ध मुर्ति यानी ल शान पर्वत की महाबुद्ध मुर्ति की उंचाई कितनी है ?हम आप के जवाब के इन्तजार में हैं ।