बाद में, उत्तरी वेइ राजवंश पूर्वी वेइ (534-550) व पश्चिमी वेइ (535-557) में और फिर क्रमशः उत्तरी छी (550 -577) व उत्तरी चओ (557-581) में विभाजित हो गया। इन पांचों राज्यों को इतिहासकारों द्वारा "उत्तरी राजवंशों"का नाम दिया गया है।
दक्षिणी और उत्तरी राजवंश दरअसल पूर्वी चिन काल से चले आ रहे चीन के राजनीतिक विभाजन का ही जारी रूप थे।
दक्षिणी राजवंशों के जमाने में चीन ने आर्थिक क्षेत्र में विकास के लम्बे डग भरे। कृषि के क्षेत्र में, प्रचुर जल-उपलब्धि और अनुकूल मौसम का लाभ उठाकर साल में धान की दो फसलें उगाई जाने लगीं।
कृषि-उप्तपादन बढ़ने के साथ साथ छाङच्याङ नदी के दक्षिण का विशाल क्षेत्र समूचे देश का महत्वपूर्ण धान्यागार बन गया। दस्तकारी उद्योग ने भी तेजी से प्रगति की।
कताई-बुनाई की तकनीक में इस हद तक सुधार किया गया कि य्वी चाङ ( वर्तमान च्याङशी प्रान्त का नानछाङ शहर) जैसे क्षेत्रों में शाम को भिगोए गए सूत से अगली सुबह कपड़ा बनाया जा सकता था।
कागज, नमक, लैकर तथा चीनीमिट्टी की वस्तुएं बनाने की विधि तथा पोतनिर्माण की तकनीक में सुधार हुआ। व्यापार पनपने के साथ-साथ नगरों का भी विकास हुआ तथा वहां खुशहाली आई।
च्येनखाङ उस काल में दक्षिणी चीन का एक प्रमुख व्यापार-केन्द्र था। वैदेशिक व्यापार भी पीछे नहीं रहा। फ़ानय्वी (वर्तमान क्वाङचओ) दक्षिणपूर्वी एशिया के साथ चीन के व्यापार का प्रमुख केन्द्र बन गया।
दक्षिणी चीन के इस आर्थिक विकास में वहां की व्यापक मेहनतकश जनता ने पर्याप्त योगदान किया, उस के ही कठोर परिश्रम की बदौलत दक्षिणी चीन आर्थिक विकास की दृष्टि से उत्तरी चीन के बराबर पहुंच सका।
उत्तरी वेइ राजवंश के अधीन ह्वाङहो नदीघाटी के तमाम इलाकों के एकीकरण से वहां आकर बसने वाली सभी जातियों की जनता के आपसी संबंध मजबूत हुए और इस प्रकार समूची जनता की एकता सुदृढ़ हुई।
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