चीन की अल्पसंख्यक जाति कार्यक्रम सुनने के लिए आप का हार्दिक स्वागत । सिन्चांग की विभिन्न अल्पसंख्यक जातियों कि शिल्प कला अनूठी , विविधतापूर्ण , सूक्ष्म और गहरी संस्कृति गर्भित होती है । सिन्चांग की मशहूर शिल्प कला में कसीढा , परिधान , चीनी मिट्टी के बर्तन , जेड वस्तु , बुनाई तथा ग्रामीण चित्रकला आदि विषय शामिल हैं , जिन में अहम मानवीय , सांस्कृतिक तथा जातीय विशेषता लिए हुई है । वर्तमान सिन्चांग में बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक जातीय महिलाएं इन पेशों में कार्यरत हैं । उन की मेहनत से सदियों से चली आयी इन परम्परागत शिल्प कलाओं को संरक्षित किया गया और विकसित भी किया गया है। आज सिन्चांग की अल्प संख्यक जातीय महिलाओं द्वारा परम्परागत शिल्प कलाओं का नया विकास करने की कहानी।
काश्गर शहर सिन्चांग से गुजरे प्राचीन रेशम मार्ग पर स्थित एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक शहर है , वह वूवेर जाति बहुल क्षेत्र भी है , जहां वेवूर लोग पीढियों से रहते आए हैं । काश्गर में वेवूर महिलाएं सदियों से परम्परात शिल्प कलाओं और कृषि व पशुपालन के विकास में जुटी रहती हैं और अहम भूमिका अदा करती हैं । काश्गर की चीनी मिट्टी के बर्तन बनाने की शिल्प कला नव पाषाण युग से शुरू हुई और महिलाओं के हाथों से विकसित होती गयी और पुरूषों के श्रम के साथ एक मशहूर कारगरी बन गयी । सिन्चांग की अल्प संख्यक जातियों में सदियों से यह परम्परा चली आयी है कि पुरूष चीनी मिट्टी के कच्चे बर्तन बनाते हैं और महिलाएं बर्तन पर रंगीन ग्लेज के बेलबुटे बनाती हैं । महिलाएं चीनी मिट्टी के बर्तन पर जो ग्लेज का काम करती हैं , वह पूरी तरह उन के अनुभवों और हाथों के कुशल होने पर निर्भर करता है । उन के हाथों से अकसर उच्च कोटि के सुन्दर अनूठे बर्तन तैयार हो कर प्रकाश में आते हैं ।
सिन्चांग में हाथ धोने का काम आने वाला अब्दु देगची यानी पानी का केतली काश्गर के चीनी मिट्टी बर्तनों का प्रतिनिधित्व करने वाली शिल्प वस्तु है । इस प्रकार के चीनी मिट्टी के केतली की दोनों तरफों पर पांच छेद हैं , बाहर देखने में ये पांचों छेद आपस में खुले रहते हैं , लेकिन असल में वे एक दूसरे के लिए बन्द हुए हैं। इस तरह केतली में जब पानी भरा है, तो पानी छेद में से नहीं निकल सकता , केवल केतली के मुंह में से निकल सकता है । इस किस्म का बर्तन काश्गर क्षेत्र की इंजिशा काऊंटी के इमाम .कावूली खानदान की वंशागत कारीगरी है । दस्तकार इमाम .काववूली ने इस की चर्चा करते हुए कहाः
यह दस्तकारी सीखना बहुत मुश्किल है , इस की नौ शिल्प विधियां होती हैं ,जो वंशागत रूप से उलपब्ध करायी जाती है। हम पहले चिकनी मिट्टी का गारा बनाते हैं , फिर पांवों से रौंदने , हाथों से मंथने तथा मिलाने के जरिए गारा को और गाढ़ा चिकना और शक्तिशाली लोंदा बनाते हैं, इस के बाद चाक पर लोंदा रख कर ढांचा बनाते हैं ,इस के बाद ऊंगली से केतली की दोनों तरफों पर पांच छेद बनाते हैं , आगे उसे सूखा कर उस पर ग्लेज चढ़ाते हैं और अन्त में भट्टी में डाल कर आंच से पका देते हैं । इस केतली में पानी डालने के बाद पानी छेद से बाहर नहीं निकल सकता है , इस का कारण यह है कि केतली के भीतर एक परत मौजूद है , जो बाहर से नहीं दिखाई देता है । यही अब्दु देगची का मूल रहस्य है ।
सिन्चांग की किरगिज जाति के लोग पीढ़ियों से पामीर पठार पर रहते हैं और पशुपालन का घूमंतू जीवन बिताते हैं । किरगिज जाति के मकान तंबू और मिट्टी लकड़ी के दोनों किस्मों के होते हैं । किन्तु दोनों प्रकार के मकानों के अन्दर सजावट और साजा सज्जा किरगिज महिलाओं के कुशल हाथों से कसीदा की गई जातीय विशेष दस्तकारी की चीजों से किया जाता है । मकान की दीवारों पर दरी टंकी हुई हैं , पलंग के किनारों पर पर्दे , मिट्टी के पलंग पर कंबल , कंबल पर कसीदे की ऊंनी बिछौने रखे जाते हैं । इन सभी बिछौनों पर अद्भुत सुन्दर बेलबुटे और चित्र कसीदे गए हैं , जिन में विकृत पर्वत तस्वीर , उमड़ते पानी के फवारे , मंडरा हुआ बादल , खिले हुए पुष्प , हरा भरा घास मैदान और वृक्ष के उल्टी सीधी शाखाएं और टहनियां आदि खूबसूरत तस्वीरें देखने को मिलती हैं।
किरगिज जातीय महिला नुर जामली पहले एक ग्रामीण अध्यापिका थी । अवकाश काल में वह अपनी दस्तकारी चीजों को बाजार में ले बेचती है , उन की दस्तकारी चीजें हाथोंहाथ बिकती हैं । वर्तमान में उन्हों ने एक शिल्त वर्कशाप खोला , जिस में 50 महिलाएं काम करती हैं । ये किरगिज महिलाएं अपने कुशल हाथों से कसीदाकारी के अनेक हुनरों से जो चीजें बनाती हैं , वह रंग में बहुत चमकीली और छटा में मोहिक होती हैं , जो देश विदेश में बहुत लोकप्रिय हो गयी है । नुर जामली ने कहाः
दस साल की उम्र में मुझे दस्तकारी में बहुत बड़ी दिलचस्पी आयी , बड़ी होने के बाद मैं शिक्षक का काम करती थी और अवकाश समय कुछ कारीगरी की चीजें बनाकर बेचती थी । बहुत से लोगों को मेरी दस्तकारी पसंद हुई , लेकिन अकेली मैं एक व्यक्ति ज्यादा नहीं बना सकती , इसलिए मैं ने एक वर्कशाप खोला । मेरा व्यापार लगातार बढ़ता जा रहा है । मैं चाहती हूं कि हमारे वर्कशाप के उत्पादों को पेइचिंग में ले कर प्रदर्शित करूं, ताकि अधिक से अधिक लोगों को हमारी किरगिज जाति की शिल्प कला मालूम हो सके ।
इधर के सालों में सिन्चांग की मंगोल जाति के चोगा और वेवूर जाति के एटलेस रेशम से बनाए गए जातीय विशेष आभूषण विभिन्न जातीय दस्तकारी उत्पाद मेलों और प्रतियोगिताओं में काफी लोकप्रिय हो गए । काश्गर की वेवूर महिला थुसनायी सिन्चांग के एटलेस रेशम से विवाह पोशाक बनाने की प्रवर्तक है । सिन्चांग के परम्परागत रेशमी कपड़े पर आधुनिक शिल्प कला से बनाए गए शादी के पोशाक वेवूर युवाओं में अत्यन्त पसंद हो गए हैं और इस प्रकार के पोशाक का बाजार बहुत उम्दा है ।
लोक दस्तकारी की चीजों का बाजार लगातार समृद्ध होने के परिणाम स्वरूप सिन्चांग की विभिन्न अल्पसंख्यत जातियों की महिलाएं भी खुशहाली के रास्ते पर चल निकली हैं । सिन्चांग के ईली कजाख जातीय स्वायत्त प्रिफेक्चर की नीलेक काऊंटी एक गरीब जिला है , लेकिन इधर के दो सालों में नीलेक काऊंटी की कजाख महिलाओं ने अपनी परम्परागत कसीदा कला से जो कजाख जातीय विशेषता वाली दस्तकारी वस्तुएं बनायी हैं , वे बहुत बेहतर बिकती हैं । ईली प्रिफेक्चर की नीलेक काऊंटी के महिला संघ के अध्यक्ष माउलिदा ने इस पर कहाः
नीलेक काऊंटी में अब दो जातीय दस्तकारी उत्पादन केन्द्र खोले गए हैं , जिन में 1200 कजाख महिलाएं कार्यरत हैं , वे अवकाश काल में दस्तकारी की चीजें बनाती हैं , अनुभवी व्यक्ति का वार्षिक वेतन दस हजार य्वान है , नौसिखिया की वार्षिक आय भी चार पांच हजार य्वान है ।
सिन्चांग की विभिन्न अल्पसंख्यक जातियों की महिलाओं ने पितामह से बरकरार रही परम्परागत जातीय दस्तकारी को न केवल विरासत में प्राप्त किया और साथ ही इन शिल्प कलाओं का विकास और नया सृजन भी किया है , जिस से वहां की परम्परागत शिल्प कला की वस्तुएं विभिन्न रूपों में सुरक्षित हो गयी और समाज में लोकप्रिय हो गयी है । इस लोक शिल्पकारों ने कैंची व सुई जैसे आदिम साधनों से जो शानदार जातीय संस्कृति की उत्कृष्ट दस्तकारी चीजें बनायी हैं , वह लोगों को बहुत ही मनमोहित करती है । इस तरह सिन्चांग के शिल्पकारों का जीवन भी उन की सुन्दर दस्तकारी वस्तुओं की भांति अत्यन्त सुन्दर और आकर्षक बन गया है ।
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