प्रिय दोस्तो , चीन के भ्रमण कार्यक्रम में हम आप के साथ उत्तर चीन के हो पेई प्रांत में स्थित हजार वर्ष पुराने लुंग शिंग मंदिर को देखने गये थे , पर आज हम फिर इसी मंदिर में सहस्र हस्तों व आंखों वाली बौद्धिसत्व मूर्ति देखने जा रहे हैं ।
जैसा कि आप जानते हैं कि उत्तर चीन के हो पेई प्रांत की राजधानी उत्तर शी च्या च्वान शहर से 15 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है और यहां सुरक्षित राष्ट्रीय स्तरीय सांस्कृतिक व ऐतिहासिक अवशेषों की संख्या भी बहुत अधिक है और शिंग लुंग मंदिर भी उन में अपना विशेष स्थान रखता है ।
वास्तव में तथाकथित सहस्र हस्तों व आंखों वाली देवी बौधिसत्व की मूर्ति के पास हजार हाथ व आंखें नहीं थीं , उस के पास सिर्फ 42 हाथ हैं , सब से आगे के दोनों हाथ जोड़कर दिखाने के अतिरिक्त बाकी सभी हाथों में सूर्य , चांद , तीर और तलवार जैसे शस्त्र हैं , एक बहुत बड़ा खुला हुआ पंख मालूम पड़ता है , जो जन समुदाय के बचाव के लिए एक शक्तिशाली शक्ति प्रतीक है । बौधिसत्व मूर्ति के चेहरे पर तीन आंखें भी हैं , इस का अर्थ है कि वह अतीत , वर्तमान और परलोक जानती है ।
शिंग लुंग मंदिर में सहस्र मूर्ति को छोड़कर बौधिसत्व की तथाकथित उल्टी बैठी हुई मूर्ति भी बहुत चर्चित है और वह समूचे चीन में बेमिसाल मानी जाती है ।
पर इस मूर्ति का नाम उल्टी बैठी हुई मूर्ति क्यों पड़ा । वास्तव में चीन के सभी मंदिरों में जितनी भी ज्यादा बौधिसत्व की मूर्तियां पायी जाती हैं , वे सब की सब दक्षिणी ओर बैठी हुई दिखाई देती हैं , केवल इसी मंदिर में यह मूर्ति उत्तरी ओर बैठे हुए नजर आती है , इसीलिये यह मूर्ति उल्टी बैठी हुई मूर्ति के नाम से प्रसिद्ध हो गयी है । कहा जाता है कि बौधिसत्व ने यह कसम खाई थी कि यदि वह जन समुदाय को पीड़ा से छुटकारा दिलाने में सफल नहीं होगें , तो वह पीछे हटने का नाम तक भी नहीं लेगें । पर जरा सोचो , क्या मानव जाति की मुसीबतों को पूरी तरह मिटाया जा सकता है । अतः यह मूर्ति हमेशा के लिये उत्तर की ओर बैठी हुए दिखायी देती है और वह उल्टी बैठी हुई मूर्ति के नाम से विख्यात भी है ।
कहा जाता है कि यह मूर्ति वास्तविक सौंदर्य और खूबसूरत बौधिसत्व के तस्वीर की सूक्ष्म मिलावट का सफल नमूना है । हो पेई प्रांत के शह च्या च्वान शहर के सामाजिक अकादमी के अनुसंधानकर्ता व विद्वान श्री ल्यांग युंग ने उस के सौंदर्य की प्रशंसा में कहा कि यह मूर्ति बेहद सजीव लगती है और वह बौद्ध मूर्तियों में विशेष स्थान रखती है ।
इस के अलावा लुंग शिंग मंदिर में स्वी राजवंश काल में निर्मित लुंग ज़ांग स शिला लेख और चीनी प्राचीन वास्तु शैली युक्त सहस्र बुद्ध मूर्तियां भी चीन बेमिसाल मानी जाती हैं ।
लुंग ज़ांग स शिलालेख एक हजार चार सौ साल पहले निर्मित हुआ था । इस शिला लेख पर अंकित चीनी लिपि कला अपनी विशेष पहचान बनाती है और वह अचमकदार सोने के नाम से भी जानी जाती है । सन 1052 में निर्मित मुनि भवन भी प्राचीन चीनी वास्तु कला इतिहास में दुर्लभ है । सात मीटर ऊंची कांस्य मूर्ति के सात मंजिला आधार पर कमल के फूल की सहस्र पंखुड़ियां बनायी गयी हैं और हरेक पंखुड़ी पर एक महीन मूर्ति बैठी हुई दिखाई गई है , इसलिये वह सहस्र मूर्ति कहलाती है । विद्वान ल्यांग यूंग ने कहा कि यह मूर्ति प्राचीन चीनी वास्तु कला की परिचायक है और चीन में बेमिसाल भी है ।
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