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(GMT+08:00) 2006-12-13 12:33:55    
उन्होंने भारत के लिये पहला स्वर्ण पदक प्राप्त किया

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दोस्तो, दिसंबर की पहली तारीख को 15वें एशिया खेल समारोह का उद्घाटन कतर की राजधानी दोहा में हुआ। मौजूदा दोहा खेल समारोह में कुल मिलाकर 45 देशों से आए 12 हजार से ज्यादा खिलाड़ी भाग ले रहे हैं । भारत ने भी अपनी टीम भेजी । और कुछ खेल प्रतियोगिताओं में भारतीय खिलाड़ियों ने बहुत अच्छी उपलब्धि भी प्राप्त की।

दोहा के आलडांना व्यायामशाला में कुछ दिन पहले समाप्त हुई एशिया खेल समारोह की अंतर्राष्ट्रीय महिला व्यक्तिगत शतरंज प्रतियोगिता में भारतीय लड़की सुश्री कोनेरू हांपी ने भारतीय प्रतिनिधि मंडल के लिये पहला स्वर्ण पदक प्राप्त किया।

सुश्री कोनेरू का जन्म भारत के आंध्र प्रदेश के गुदिवादा में हुआ। हालांकि वह केवल 19 की है, पर उसने हमउम्र वालों से बहुत ज्यादा गौरवपूर्ण उपलब्धियां प्राप्त की हैं। वह एशिया में सब से नौजवान महिला अंतर्राष्ट्रीय शतरंज मास्टर है, और अंतर्राष्ट्रीय शतरंज की विश्व चैंपियनशिप प्राप्त करने वाली प्रथम भारतीय महिला खिलाड़ी भी है। वह चार बार अंतर्राष्ट्रीय शतरंज की महिला विश्व चैंपियन हो गयी है , और वह दो बार भारत के नौजवान मामलात व खेल विभाग द्वारा प्रदत्त युवा खेल पुरस्कार से सम्मानित भी की गई है । इन के अलावा उसे भारत सरकार का सर्वोच्च खेल पुरस्कार अर्जुन पुरस्कार भी मिला।

दोहा एशिया खेल समारोह में चैंपियनशिप प्राप्त करने के अनुभव की चर्चा में उसने बहुत भाव विभोर हो कर कहा कि यह एक बड़ी गर्व की बात है कि मैंने अपने देश के लिये पहला स्वर्ण पदक जीता है। उसने कहाः मुझे बड़ी खुशी हुई है। मैं स्वर्ण पदक प्राप्त करने के लिये यहां आयी हूं। मुझे विश्वास था कि मैं जीत लूंगी। अंत में मैंने जीत ही ली। मुझे बहुत गर्व महसूस हुई है कि मैं भारत के लिये पहला स्वर्ण पदक लायी हूं।

सुश्री कोनेरू ने संवाददाताओं को बताया कि उसने कई बार विश्व चैंपियनशिप प्राप्त की है , लेकिन मौजूदा खिताब विशेष महत्व की है। क्योंकि इस बार अंतर्राष्ट्रीय शतरंज पहली बार एशिया खेल समारोह की इवेंट बनायी गयी है। और इस की चैंपियनशिप प्राप्त करना न सिर्फ़ उस खुद के लिये ही नहीं , बल्कि सभी भारतीय शतरंज खिलाड़ियों के लिये भी खास महत्व की बात है।

जब संवाददाता ने उससे यह पूछा कि चैंपियनशिप प्राप्त करते समय तुम सब से पहले किस को धन्यवाद देना चाहती हो?तो उसने बेझिझक से कहा कि पिता जी को । सुश्री कोनेरू के पिता जी उस की जिन्दगी में सब से महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं। छै वर्ष की आयु में कोनेरू ने अपने पिता जी श्री कोनेरू अशोक से अंतर्राष्ट्रीय शतरंज सीखना शुरू किया । अभी तक पिता जी उस के प्रशिक्षक भी हैं। कोनेरू के अनुसार उस के पिता जी एक सुपर शतरंज दीवाने हैं। हर सुबह उठने के बाद उन का पहला काम शतरंज खेलना है। और उन्होंने दक्षिण भारत में अंतर्राष्ट्रीय शतरंज की चैंपियनशिप प्राप्त की थी। पहले उस के पिता जी एक रासायन इंजीनियर थे। बाद में उन्हों ने अपनी बेटी को एक पेशेवर शतरंज खिलाड़ी बनाने के लिये अपने उस जोब को छोड़ा और घर में विशेष तौर पर कोनेरू को प्रशिक्षित करने लगे । कोनेरू का घर बहुत धनवान् नहीं है। बेटी को शतरंज खेलने का समर्थन देने के लिये माता-पिता ने टेलीवीज़न सेट खरीदने की योजना छोड़कर उसे शतरंज सीखने के लिये एक कंप्यूटर खरीद ली। कोनेरू की आंखों में उस के पिता जी एक परंपरागत व गंभीर आदमी हैं, यहां तक कि कभी कभी वे बड़ी कड़ेपन के साथ पेश आते हैं, सुश्री कोनेरू ने कहाः पिता जी के रूप से वे ज्यादा एक कोच की तरह व्यवहार करते हैं। अगर मेरी कुछ भी गलती हुई, तो वे मेरी कड़ी आलोचना करते हैं । कभी कभी जब मैं अच्छी तरह से शतरंज नहीं खेल सकती, तो वे बहुत नाराज़ होते हैं । जो भी हो , वे एक बहुत अच्छे प्रशिक्षक जरूर हैं।

पिता जी के प्रशिक्षण व प्रोत्साहन में कोनेरू लगातार दस से ज्यादा वर्षों तक शतरंज खेलती रही, और उस के हाथ में बारंबार शानदार उपलब्धियां आयीं । वर्तमान में उस के दर्जे का अंक 2545 तक जा पहुंचा है , जो वर्तमान महिला शतरंज खिलाड़ियों में सब से ऊंचे स्थान पर है। हालांकि कोनेरू की आयु कम है, लेकिन प्रतियोगिता में उस का खेल प्रदर्शन बहुत परिपक्व और श्रेष्ठ है। मौजूदा एशिया खेल समारोह में उसने अपनी अच्छी मानसिक गुणवत्ता व मजबूत कौशल पर निर्भर करके शक्तिशाली चीनी खिलाड़ी च्याओ श्वेए व कतर की खिलाड़ी चू छन को हराकर अंतिम जीत ली।

चीनी टीम के अंतर्राष्ट्रीय शतरंज प्रशिक्षक श्री ये च्यांग छ्वंए ने कोनेरु का मूल्यांकन करते हुआ कहाः कोनेरू विश्व में पहली वरीयता प्राप्त खिलाड़ी है। वह बहुत ठंडे दिमाग और धीरज के साथ खेलती है। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि उसने जीत ली। महिला शतरंज खिलाड़िनों की प्रतिस्पर्द्धा में वह अतूल्य है।

पर भारतीय अंतर्राष्ट्रीय शतरंज टीम के नेता श्री भरत सिंह चौहान की नजर में सुश्री कोनेरू एक बहुत भोली लड़की है। वह शांत मिजाज की है और किसी से झगड़ा नहीं करती। उस की माता जी की आंखों में कोनेरू एक बहुत समझदार बेटी है। उन्होंने कहाः वह एक साधारण लड़की है, बहुत साधारण। जब वह एक बच्ची थी, तब उसे शतरंज खेलने का बड़ा शौक हुआ । वह अपने पिता जी की बातों पर बहुत विश्वास करती है। पिता जी ने जैसा कहा, वह वैसा करती है। अभी तक उस की आदत नहीं बदली है।

संवाददाता के सामने कोनेरू एक प्यारी पड़ोसी लड़की जैसी है। बड़ी भोली, बड़ी सुशील , और कुछ कुछ शर्मिंदा भी है। जब संवाददाता ने आम जीवन में उस का शौक पूछा?तो उसने जवाब दिया कि अन्य लड़कियों की तरह ही वह घर में किताब पढ़ना, बाहर खेल-कूद करना और अपने परिवार जनों के साथ भारतीय फिल्म देखना पसंद करती है।

अपनी ज़िंदगी में सब से अविस्मरनीय बात की चर्चा में सुश्री कोनेरू ने कहा कि वर्ष 2001 में उसने विश्व युवा चैंपियनशिप में चैंपियनशिप हासिल की, वह उस की समूची ज़िन्दगी में सब से बड़ी खुशी की बात है। अपनी भीवी योजना व लक्ष्य पर सुश्री कोनेरू ने संवाददाता से कहा कि उस के कई लक्ष्य हैं, पर वर्तमान में उस का सब से प्रमुख लक्ष्य तो सिंगापुर की शतरंज मास्टर प्रतियोगिता में जीतना और अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में अपने स्थान को उन्नत करना और अपने देश को और ज्यादा रौशन देना है।

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