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(GMT+08:00) 2006-12-11 12:17:29    
चीन में अंतर्राष्ट्रीय कंफ्यूशिज़म संस्कृति-उत्सव का आयोजन

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कुछ समय पूर्व चीन के पूर्वी भाग में स्थित छू-फु शहर में वर्ष 2006 के अंतर्राष्ट्रीय कंफ्यूशिज़म संस्कृति-उत्सव का आयोजन हुआ। एक हफ्ते तक चले इस उत्सव के दौरान यूनेस्को और चीन के संबंधित विभागों ने संयुक्त रूप से सिलसिलेवार गतिविधियां आयोजित कीं।

इस साल कंफ्यूशियस की 2557 वीं जंयती है। इसे मनाने के लिए उन के जन्मस्थान—शानतुंग प्रांत के छू-फु शहर और थाइवान के थाइपे व थाइनान आदि क्षेत्रों के कंफ्यूशियस-मंदिरों ने एक साथ धूम-धाम से भव्य समारोह आयोजित किया। अभी आप जो रिकोर्डिंग सुन रहे थे,वह छू-फु के कंफ्यूशियस-मंदिर में आयोजित इस समारोह का एक अंश है।

सूत्रों के अनुसार इस साल के कंफ्यूशिज़म संस्कृति-उत्सव का विषय है श्रेष्ठ परंपरागत संस्कृति का विकास करो, थाइवान जलडमरूमध्य के दोनों तटों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को मजबूत करो और सहयोग व विकास को बढाओ। उत्सव के दौरान चीनी कंफ्यूशिज़म व्यापारियों का त्रितीय अंतर्राष्ट्रीय मंच भी आयोजित किया गया।थाइवान की चीनी क्वोमिंगतांग पार्टी की पूर्व उपाध्यक्ष सुश्री लिन छंग-ची ने विशेष रूप से एक शिष्टमंडल का नेतृत्व कर इस गतिविधि में भाग लिया। उस के उद्घाटन-समारोह में उन्हों ने भाषण देते हुए कहाः "सभी चीनियों के दिलों में कंफ्यूशियस एक सब से सम्माननीय महात्मा हैं। उन के बहुपयोगी कंफ्यूशिज़म विचार चीनियों के खून में 2000 वषों से भी अधिक समय से बहते आ रहे हैं। चीनियों की कथनी-करनी उन से प्रभावित है। आज कंफ्यूशियस के जन्मस्थान आकर उन के आगे सिर निवाने समय हमारा मनोभाव वैसा ही है जैसा किसी पवित्र तीर्थ-स्थल के दर्शन करते समय होता है। यह गतिविधि कंफ्यूशिज़म संस्कृति को विरासत में लेने और विकसित करने की प्रतीक है। थाइवान के विभिन्न क्षेत्रों के कंफ्यूशियस-मंदिरों में भी इस तरह की गतिविधियां चलाई जाती हैं। इस से जाहिर है कि चीनी संस्कृति कब से थाइवान में घर कर गई है। हमें विश्वास है कि थाइवान जलडमरूमध्य के आर-पार के संबंध सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम से मजबूत होंगे, क्योंकि दोनों पक्षों के पास एक दूसरे के लिए सीखने लायक चीजें ज्यादा हैं। "

सुश्री लिन के अनुसार थाइवान में कंफ्यूशियस-मंदिर बड़ी संख्या में हैं। थाइवान के दक्षिणी भाग में स्थित एक कंफ्यूशियस-मंदिर 15वीं शताब्दी में बनाया गया और उत्तरी भाग में जो सब से मशहूर कंफ्यूशियस-मंदिर है,उस का निर्माण 19वीं शताब्दी में किया गया था। प्रतिवर्ष कंफ्यूशियस की जयंती पर थाइवानवासी उन की स्मृति में भव्य आयोजन करते हैं।

कंफ्यूशियस चीन के प्राचीन काल में एक महान-विचारक,राजनीतिज्ञ व शिक्षक थे और कंफ्यूशिज़म विद्या के संस्थापक भी। वह दया,एकता और शिष्टाचार को महत्व देते थे।

उन के विचारों का चीन के प्राचीन काल के दर्शनशास्त्र,राजनीति,संस्कृति,शिक्षा,सामाजिक जीवन और परंपराओं व रीति-रिवाजों पर गहरा प्रभाव पड़ा। इसलिए उन के विचारों को चीनी राष्ट्र की परंपरागत संस्कृति की मुख्यधारा माना गया है। 2000 सालों से भी अधिक समय से चीनी लोग सम्मानजनक रूप से कंफ्यूशियस को महात्मा कहकर पुकारते आए हैं। उन से संबंधित ऐतिहासिक वास्तु अवशेषों को यूनेस्को द्वारा विश्व सांस्कृतिक संपदा की सूची में शामिल किया गया है।

छू-फु शहर में आयोजित वर्ष 2006 के अंतर्राष्ट्रीय कंफ्यूशिज़म संस्कृति-उत्सव के दौरान यूनेस्को के कंफ्यूशियस-शिक्षा पुरस्कार का प्रथम वितरण-समारोह आयोजित हुआ,जिस में भारत के राजस्थान की साक्षरता व शिक्षा संस्था और मोरक्को के शिक्षा-मंत्रालय को पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। कंफ्यूशियस जीवन भर शिक्षा देने के साथ-साथ अपने इस विचार के प्रचार-प्रसार में लगे हुए थे कि हर व्यक्ति को चाहे उस की हैसियत ऊंची हो या नीची,शिक्षा लेने का बराबर हक और मौका दिया जाना चाहिए। उन के कोई 2000 वर्ष पुराने इस विचार की आज भी चीन और विदेशों में खूब प्रशंसा की जा रही है। यूनेस्को के प्रतिनिधि,सहायक शिक्षा महानिदेशक श्री थांग-वन ने समारोह में कहाः

"कंफ्यूशियस शिक्षा-पुरस्कार यूनेस्को द्वारा विश्व में किसी चीनी के नाम पर स्थापित प्रथम पुरस्कार है। मेरे ख्याल से इस के तीन महत्व हैं। एक- कंफ्यूशियस के शैक्षिक विचारों की प्रशंसा। दूसरा- चीन सरकार द्वारा शिक्षा खासकर निरक्षरता-निवारण में प्राप्त उपल्ब्धियों की प्रशंसा औऱ तीसरा-विश्व भर में सर्वशिक्षा और ग्रामीण निरक्षरता-निवारण में सक्रिय संस्थाओं और व्यक्तियों की प्रेरणा। हमें उम्मीद है कि पुरस्कार प्राप्त संस्थाएं या व्यक्ति शिक्षा के विकास और निरक्षरता-निवारण में और ज्यादा योगदान करेंगे।"

उत्सव के दौरान छू-फु कंफ्यूशियस शिक्षालय की औपचारिक स्थापना भी हुई। उस का लक्ष्य कंफ्यूशिज़म विद्या को केंद्र बनाकर पूर्वी व पश्चिमी संस्कृतियों का अनुसंधान करना और शिक्षा,प्रदर्शनी व प्रकाशन जैसे कार्यों के जरिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सांस्कृतिक आदान-प्रदान बढाना है। इस शिक्षालय की स्थापना के दिन चीन और कई विदेशी विद्वानों ने शिक्षालय के सभागार में कंफ्यूशियस और उन के विचारों पर अकादमिक संगोष्ठी आयोजित की। जापानी विद्वान श्री जुनिछी शिनमुरा ने जापानी में अनुवादित व प्रकाशित कंफ्यूशियस की एक पुस्तक और खुद किसी जापानी विद्वान द्वारा लिखी गई एक पुस्तक《कंफ्यूशियस की जिन्दगी》का संगोष्ठी में वितरण किया। उन का मानना है कि वर्तमान समाज में कंफ्यूशिज़म गरीबी व अमीरी के बीच और पूर्व व पश्चिम के बीच खाई को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है। उन का कहना हैः

"सच पूछें,मेरे विचार में बाजार-अर्थव्यस्था को समाजवाद से जोड़ना अजीब सी बात है। पता नहीं कि इन दोनों का एक दूसरे से कौन सा संबंध हो सकता है? लेकिन यह तय है कि समाजवाद मूलतः दया से तालुक रखता है, जबकि किसी भी तरह की खाई कम करने या मिटाने में दया की भूमिका भारी महत्व की है।"

उत्सव के दौरान देशी व विदेशी मीडिल स्कूलों के कुलपतियों का शिक्षा-मंच , चीनी कंफ्यूशिज़म व्यापारियों का अंतर्राष्ट्रीय मंच, "कंफ्यूशियस के करीब आओ "अंतर्राष्ट्रीय फोटो-प्रतियोगिता जैसे आयोजन भी किए गए और साथ ही ऐसा एक संग्रहालय भी कायम किया गया,जो विशेष रूप से चीन के इतिहास में हुई उच्च शिक्षा संबंधी राष्ट्रीय परीक्षाओं में प्रथम स्थान प्राप्त व्यक्तियों के जीवन,उन की अकादमिक उपलब्धियों और शिक्षा के विकास में उन के योगदानों से जुडा हुआ है। यह चीन में अपने तरह का एकमात्र संग्रहालय है। दर्शक उस में प्रदर्शित 1000 से अधिक सांस्कृतिक अवशेषों के माध्यम से चीन के प्राचीन काल की शैक्षिक व्यवस्था से वाकिफ हो सकते हैं। इस संग्रहालय के संस्थापक श्री ल्यू-श्याओ च्यांगसूवासी हैं। चीनी राष्ट्र की श्रेष्ठ संस्कृति के एक अंग के रूप में कंफ्यूशिज़म विद्या के प्रचार-प्रसार के लिए उन्हों ने अपने जन्मस्थान—च्यांगसू प्रांत को छोड़ विशेष तौर पर कंफ्यूशियस के जन्मस्थान—छू-फु में यह संग्रहालय कायम किया। उन्हों ने कहाः

"छू-फु कंफ्यूशियस की जन्मभूमि है। उन के विचारों के प्रचार-प्रसार संबंधी संग्रहालय की स्थापना के लिए यहां से अधिक और उचित स्थान कोई नहीं हो सकता है।

कंफ्यूशिज़म विद्या में बुजुर्गों का सम्मान,बच्चों से स्नेह, सहयोगियों से ईमानदारी,

शिष्टाचार और शर्मसारी जैसे गुणों पर जोर दिया जाता है, जोकि आज के बाजारु दौर में नगण्य हो गए हैं। ज्यादातर लोग सिर्फ पैसे के पीछे भाग रहे हैं,यह स्थिति बहुत खतरनाक है।कंफ्यूशिज़म विद्या परंपरागत चीनी संस्कृति का सार है और कोई 5000 वर्ष पुरानी चीनी सभ्यता के विकास की नींव भी है। इसलिए मैंने इस संग्रहालय की स्थापना की है और मुझे आशा है कि दर्शक इस संग्रहालय से जुडे ऐतिहासिक व्यक्तियों से गुणात्मक तौर पर कुछ सीख सकेगें।"

इस उत्सव ने थाइवान के अल्पसंख्यक जातीय लोगों को भी आकर्षित किया। आख थाइवान के रीय्वेथान नामक एक क्षेत्र में बसने वाली काओ-शान जाति के हैं। वह इस उत्सव की गतिविधियों में भाग लेने के लिए विशेष रूप से छू-फु आए औऱ यह उन की चीनी मुख्यभूमि की प्रथम यात्रा भी है। उन्हों ने कहा कि थाइवान में भी कंफ्यूशियस की स्मृति में गतिविधियां आयोजित की जाती हैं और बहुत से लोग उन के मंदिर भी जाते हैं। लेकिन उन के जन्मस्थान में उन के स्मृति-समारोह के आयोजन में एक अलग तरह का ही अनुभव होता है। उन्हों ने कहाः

"हम ने कंफ्यूशियस के बारे में जो जानकारियां प्राप्त की हैं,वे सब की सब किताबी जानकारियां हैं। जहां तक उन के जीवनकाल की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का सवाल है,उस के बारे में कोई भी ज्ञान हमें नहीं है। थाइवान में हम उन्हें यों ही सतही जानकारी के आधार तक सीमित रह कर ही याद करते हैं और उन के विचारों के बारे में बहुत कम सोचते हैं। यहां आकर खुद उन के ही नहीं,बल्कि उन के विचारों और शिक्षा के विकास में उन के योगदानों के बारे में समृद्ध जानकारियां मिली हैं। कहा जा सकता है कि कंफ्यूशियस चीन की परंपरागत नैतिकता का एक आदर्श है और उन का हजारों वर्ष पुरानी चीनी संस्कृति के विकास पर भारी प्रभाव पड़ा है। यहां आकर मुझे उन की महानता का अहसास हुआ है। घर लौटकर मैं कंफ्यूशिज़म विद्या का अनुसंधान करूंगा।"