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(GMT+08:00) 2006-12-07 15:35:10    
छंगतु शहर के मंजूश्री मंदिर का दौरा

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श्रोता दोस्तो, मजूश्री मंदिर में नाना प्रकार वाली तीन सौ से अधिक मूर्तियां और अन्य संबंधित धार्मिक निधियां भी हैं । खुदाई में प्राप्त शिला लेख , थांग , सुंग और छिंग राजवंश कालों में निर्मित लौहे व कांस्य की मूर्तियां और म्यांमार जेट मूर्ति बहुत आकर्षित हैं ।

इतना ही नहीं , मंजूश्री मंदिर में सुरक्षित थांग राजवंश के महा भिक्षु ह्वेनसान के शरीर सब से दुर्लभ हैं । थांग राजवंश के महा आचार्य ह्वेनसान छंगतू के मंदिर में ही भिक्षु की उपाधि से सम्मानित हुए और लगातार इसी मंदिर में पांच साल रहकर भारत गये । इसलिये छंगतू और महा आचार्य ह्वेनसान के बीच गहरा संबंध रहा । जैसा कि हम जानते हैं कि ह्वेनसान सच्चे मायने में सूत्रों के ग्रहण के लिये भारी मुसीबतें झेलते हुए पैदल चलकर तीन सालों के बाद भारत पहुंचे थे । फिर वे भारत में 17 सालों तक बौद्ध सूत्रों का अध्ययन करने में दिलोजान से लग गये । महा आचार्य ह्वेनसान भारत से 675 ग्रंथों के बौद्ध सूत्र चीन लाये और साथ ही चीनी नीति दर्शन जैसे सूत्रों को चीनी भाषा से संस्कृत में अनुदित कर भारत में लोकप्रिय बनाया । महा आचार्य ह्वेनसान ने चीनी व भारतीय संस्कृति के आदान-प्रदान में अत्यंत भारी योगदान दिया है । 1942 में पूर्वी चीन के चांगसू प्रांत के नानचिंग शहर में महा आचार्य ह्वेनसान के शरीर के तीन टुकड़े प्राप्त हुए , जिन का एक टुकड़ा नानचिंग शहर में रखा गया , अन्य दो टुकड़े क्रमशः शीआन शहर व छंगतू शहर के मंजूश्री मंदिर में सुरक्षित हैं । महा आचार्य ह्वेनसान की चर्चा में 18 वें चुंग शिंग आचार्य ने कहा महा आचार्य ह्वेनसान बौद्ध धार्मिक जगत में एक उच्च स्तरीय बौद्ध मास्टर ही नहीं , एक महान अनुवादक , यात्री और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के एक असाधारण दूत भी थे । भारत व चीन दोनों देश विश्व में प्राचीन सभ्यता वाले परम्परागत देश हैं , ये दोनों देश मैत्रीपूर्ण पड़ोसी देश भी हैं , दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान का इतिहास बहुत पुराना है और महा आचार्य ह्वेनसान ने चीन व भारत में सांस्कृतिक आदान-प्रदान में असाधारण योगदान दिया है ।

इस के अलावा मंजूश्री मंदिर में भारतीय पत्र सूत्र , थांग राजवंश के बांस पर लिखित सूत्र , सहस्र बुद्ध चोला और बालों से तैयार बौधिसत्व मूर्ति जैसे बौद्ध धार्मिक व सांस्कृतिक अवशेष भी सुरक्षित हैं । भारतीय पत्र सूत्र सन 1887 में मिंग ख्वान आचार्य भारत से चीन लाये थे और ये सू्त्र अब बेहद दुर्लभ माने जाते हैं । सहस्रबुद्ध चोला मिंग राजवंश के राजा छुंग चन की रानियों ने बड़े ढंग से काढ़ा हुआ है , यह तीन सौ साल पुराना बेशकीमती चोला आज तक भी अच्छी तरह सुरक्षित है । जहां तक बालों से तैयार बौधिसत्व मूर्ति का ताल्लुक है , वह छिंग राजवंश के च्या छिंग व ताओ क्वांग काल में शेनशी व कानसू क्षेत्रों में तैनात सैनिक कमांडर यांग य्यू छुन की बेटी ने अपने बालों से काढ़ी है और वह भी एक दुर्लभ कला कृति की गिनती में शामिल है ।

मंजूश्री मंदिर में तैयार शाकाहारी भोजन भी बेहद प्रसिद्ध है और वह देशी-विदेशी पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है । भारतीय विद्वान श्री लाल जी श्रावक ने यहां के शाकाहारी भोजन का स्वाद लेने के बाद प्रशंसा में कहा छंगतू का मंजूश्री मंदिर बौद्ध धार्मिक अनुयाइयों का पूजा करने का तीर्थ स्थल है , यहां हर रोज बड़ी तादाद में अनुयायी बुद्ध की पूजा करने आते हैं। साथ ही मंजूश्री मंदिर अपने अनुपम प्राकृतिक दृश्यों और भव्य भवनों व बड़ी संख्या में दुर्लभ सांस्कृतिक अवशेषों से अनेक देशी-विदेशी पर्यटकों को मोह लेता है ।

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