श्रोता दोस्तो, यह सर्वविदित है कि बौद्ध धर्म का जन्म भारत में हुआ था । प्रथम शताब्दी में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार भारत से चीन में हुआ और वह धीरे-धीरे चीन में पूरी तरह फैल गया । इस तरह आज भी चीन के विभिन्न क्षेत्रों में बहुत से प्राचीन बौद्ध मंदिर और तीर्थ बौद्ध धार्मिक स्थल पाये जाते हैं । दक्षिण-पश्चिम चीन के सछ्वान प्रांत के छंगतू शहर में स्थित वन शू य्वान उन में से एक है ।
दक्षिण-पश्चिम चीन के सछ्वान प्रांत का छंगतू शहर इस प्रांत की राजधानी ही नहीं , एक बहुत खूबसूरत शहर भी है । वन शू य्वान इसी शहर के उत्तर पश्चिम भाग में अवस्थित है । 1983 में यह मंदिर चीनी राज्य-परिषद द्वारा हान जातिबहुल क्षेत्र में प्रमुख राष्ट्रीय संरक्षित मंदिरों में संरक्षित किया गया है ।
मंजूश्री मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है । कहा जाता है कि स्वी राजवंश के राजा वन ती का बेटा यांग श्यू सछ्वान राज्य का प्रशासक था , उस की एक पत्नि बौद्ध धर्म पर विश्वास करती थी । उस समय छंगतू शहर में विश्वास नामक एक भिक्षु बहुत नामी था , उस की यह पत्नि इस ज्ञानी भिक्षु का इतना अधिक सम्मान करती थी कि उस ने विशेष तौर पर उस के लिये एक मंदिर बनवाया और उसी मंदिर का नाम विश्वास रखा । मिंग राजवंश के अंत में यह विश्वास मंदिर युद्धाग्नि में जल कर नष्ट हो गया , सिर्फ लौहे से निर्मित दस मूर्तियां और हजार वर्ष पुराने दो चीढ़ बचे रहे गये ।
मंजूश्री मंदिर के इतिहास के बारे में इस मंदिर के 18 वें आचार्य चुंग शिंग ने हमें बताया कि ईस्वी 1681 में छिंग राजवंश के राजा खांग शी काल में एक छी तू नामक बौद्ध मास्टर विश्वास मंदिर के खण्डहरों में आकर इस मंदिर का पुनर्निर्माण करना चाहता था । अतः उस ने इस मंदिर के खण्डहर पर उगे दो प्राचीन चीढों के बीच एक झौंपड़ी स्थापित कर ली , दिन में वह इस झौंपड़ी में बौद्ध सूत्रों का अध्ययन करता था , जबकि रात को दीवार के सामने बैठकर ध्यानासन करता था , इसी तरह उस ने लगातार यहां पर तपस्या करते-करते दसेक साल बिताए । एक दिन जब मास्टर छी तू ध्यानासन में लीन था तो अचानक उस के इर्द-गिर्द लाल किरणों का प्रकाश हुआ । स्थानीय लोग अग्निकांड समझकर आग बुझाने के लिये तुरंत ही घटनास्थल पर आ पहुंचे , पर वे तत्कालीन स्थिति देखकर एकदम चकित रह गये । आचार्य चुंग शिंग ने कहा उस समय बुजुर्ग बौद्ध मास्टर के पूरे शरीर से निकली लाल किरणों में एक शेर के सिर की तस्वीर दिखायी पड़ी । बौद्ध धर्म के विश्वास में शेर को बौधिसत्व की सवारी और प्रकाश को बुद्धिमत्ता का प्रतीक माना जाता है , इसलिये स्थानीय लोगों ने उसे बौधिसत्व मंजूश्री का अवतार समझकर मंदिर के पुनर्निर्माण में चंदा दिया और इस मंदिर का नाम विश्वास से बदल कर मंजूश्री रख दिया ।
मंजूश्री मंदिर के निर्माण के बाद स्थानीय शासक ने मास्टर छी तू के चमत्कार राजा खांग शी को रिपोर्ट दी । राजा खांग शी ने उस से मिलने के लिये लगातार तीन बार मास्टर छी तू को राजधानी आने का आदेश दिया , पर मास्टर छी तू ने उन के आदेश को ठुकरा दिया । राजा खांगशी ने मास्टर छी तू को सजा देने के बजाए मंजूश्री मंदिर को बौद्ध सूत्र भेंट किये । सन 1703 में राजा खांग शी ने अपना हस्तलिखित बोर्ड , जिस पर खाली जंगल शब्द अंकित हुए हैं मजूश्री मंदिर को उपहार के रूप में दे दिया , इसलिये यह स्थल खाली जंगल के नाम से भी जाना जाता है । अब राजा खांग शी की यह हस्तलिपि भी इसी मंदिर में रखी हुई है । तब से यह मंदिर दक्षिण-पश्चिम चीन में बौद्ध धार्मिक तीर्थ स्थल बन गया है ।
मंजूश्री मंदिर छंगतू शहर में बेहद अच्छे ढंग से सुरक्षित है । 11 हजार 600 वर्गमीटर क्षेत्रफल वाले विशाल मंदिर में कुल दो सौ से अधिक कमरे हैं और 170 से अधिक भिक्षु रहते हैं । आज सछ्वान प्रांत का बौद्ध धर्म संघ भी इसी मंदिर में अवस्थित है । इस मंदिर में स्वर्ग राजा भवन , बौधिसत्व भवन , महावीर भवन और सूत्र शिक्षा दीक्षा भवन जैसी इमारतें भी देखने को मिलती हैं । इस मंदिर के 18 वें आचार्य चुंग शिंग ने सूत्र शिक्षा भवन से अवगत कराते हुए कहा सूत्र शिक्षा दीक्षा भवन असल में बौद्ध धर्म को लोकप्रिय बनाने का केंद्र है । चाहे वे बड़े हों या छोटे , नास्तिक हो या आस्तिक , सभी लोग यहां पर समान रूप से बौद्ध सूत्रों का ज्ञान ग्रहण कर सकते हैं ।
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