प्रोफेसर थेई जुंग भारतीय मूल के चीनी हैं। वे भारत के ही नहीं, बल्कि चीन के भी अच्छे मित्र हैं। वर्ष 2006 पेइचिंग मंच के दौरान, हमारी संवाददाता ने प्रोफेसर थेई जुंग से मुलाकात की औऱ उन से बातचीत की। हालांकि इस वर्ष वे 78 वर्ष के हो गये हैं, फिर भी वे स्वस्थ दिखाई देते हैं। निस्संदेह ,हमारे बीच बातचीत प्रोफेसर थेई जुंग के पिता थेई व्यन शैन के ज़िक्र से शुरु हुई।
अपने पिता के भारत के साथ घनिष्ठ संबंधों की चर्चा में प्रोफेसर थेई जुंग ने कहा कि उन के पिता के मशहूर भारतीय कवि ठाकुर के बीच अच्छी मैत्री थी। प्रोफेसर थेई जुंग ने याद करते हुए बताया, वर्ष 1913 में श्री ठाकुर को साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार मिला । उन्होंने इस के साथ मिलने वाली इनाम-राशि से एक अंतरराष्ट्रीय विश्विद्यालय की स्थापना की। वास्तव में यह एक विश्वविद्यालय नहीं है, वह किंडरगार्डन से विश्वविद्यालय तक की सभी कक्षाओं वाला एक स्कूल है। श्री ठाकुर की उम्मीद थी कि यह स्कूल दुनिया में पक्षियों का घोंसला बने, और दुनिया के पक्षी उड़कर यहां आयें। वर्ष 1921 में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना की । शुरु में, चीनी संस्कृति पढाने के लिए उन्होंने एक फ्रांसिसी विद्वान श्री लेईवे को आमंत्रित किया। श्री लेईवे 1922 में वापस लौटे। वर्ष 1924 में श्री ठाकुर ने चीन की यात्रा की और तत्कालीन चीन के मशहूर विद्वान ल्येन छी श्याओ आदि को भारत में पढ़ाने के लिए आमंत्रित किया। लेकिन, चीन में राजनीतिक स्थिति डांवाडोल होने के कारण श्री ल्यांग छी श्याओ आदि चीनी विद्वान भारत नहीं जा पाए। वर्ष 1927 में श्री ठाकुर सिंगापुर गये, मेरे पिता भी वहां गये । वहां उन की मुलाकात ठाकुर से हुई। मेरे पिता से मिल कर श्री ठाकुर बहुत खुश हुए। श्री ठाकुर ने मेरे पिता को भारत में चीन का अनुसंधान करने के लिए आमंत्रित किया। वर्ष 1928 में मेरे पिता भारत गये। बाद में मेरी मां मुझे भारत लायीं । मैं घर में सब से बड़ा बेटा हूं। श्री ठाकुर मुझे बहुत पसंद करते थे और उन्होंने मुझे हिन्दी नाम अशोक भी दिया। वर्ष 1933 में मेरे पिता ने नानचिन में चीन-भारत संघ की स्थापना की। एक साल के बाद उन्होंने भारत में भी चीन-भारत संघ और चीनी अकादमी की स्थापना की। उसी समय से वर्ष 1971 रिटायर होने तक मेरे पिता इस अकादमी के अध्य क्ष रहे थे। वर्ष 1954 में विश्वविद्यालय से स्नातक होने के बाद मैं भी इस अकादमी का एक अध्यापक बना।
श्री थेई जुंग के अनुसार, उन के पिता जी थेई व्यन शैन ने ही उन्हें जीवन का रास्ता दिखाया है। चीन-भारत मैत्री बढ़ाने के अपने पिता के सपने को साकार करने के लिए श्री थेई जुंग ने चीनी अध्यापक का काम करना शुरु किया। पिछली आधी सदी से प्रोफेसर थेई जुंग भारत में चीनी सिखाते हैं और चीन व भारत के बारे में अनुसंधान करते हैं। उन्होंने चीन-भारत संबंध संबंधी अनेक पुस्तकें भी लिखी हैं। हाल ही में वे और चीनी विद्वान गडं ईंग जडं ने संयुक्त रुप से एक नयी पुस्तक ---भारत और चीन--- लिखी। अपनी नयी पुस्तक में प्रोफेसर थेई जुंग की अनेक वर्षों की अनुसंधान की उपलब्धियां शामिल हैं। चीन व भारत के बीच प्रतिस्पर्द्धा की तुलना में वे दोनों के बीच मैत्री को कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण समझते हैं। प्रोफेसर थेई जुंग ने एक दिलचस्प उदाहरण से अपनी बात स्पष्ट की। उन के अनुसार, चीन एक सेब है, जबकि भारत एक नारंगी है। उन्होंने कहा कि दोनों की एक दूसरे से तुलना करने की आवश्यक्ता नहीं है। हाल ही में अंतरराष्ट्रीय समुदाय में यह बहस बहुत प्रचलित है कि क्या भारत चीन के आगे जा सकेगा या नहीं। प्रोफेसर थेई जुंग ने कहा कि वे आशा करते हैं कि चीन व भारत सहयोग में साझेदार बन सकेंगे। उन के अनुसार चीन व भारत बीच अनेक क्षेत्रों में एक दूसरे से सीख सकते हैं।
इधर के वर्षों में चीन व भारत के व्यापार का बड़ा विकास हुआ है। भारत की निजी कंपनियों ने दोनों देशों के व्यापार को आगे बढ़ाने में विशेष योगदान किया है। दवाओं और कृषि क्षेत्र में सहयोग की ज्यादा आवश्यकता है। कृषि क्षेत्र में आदान-प्रदान का उज्ज्वल भविष्य है। दस वर्ष पहले, जब मैं भारत में व्यापार को आगे बढ़ाना चाहता था, तो बड़ी बाधाएं आती थीं। आज स्थिति बदल रही है।
दो हजार वर्षों से भी पहले चीन व भारत विश्व में सब से विकसित देश थे। दोनों देश पड़ोसी देश भी हैं। इधर के वर्षों में चीन व भारत के तेज आर्थिक विकास से दोनों देशों के संबंधों ने दुनिया का व्यापक ध्यान खींचा है। दोनों देशों के आर्थिक आदान-प्रदान में प्रतिस्पर्द्धा है और विवाद भी है। यह स्वाभाविक है कि लोग इन दोनों देशों की तुलना करना पसंद करते हैं। पश्चिमी देशों के कुछ विद्वान चीन-भारत की तुलना करते समय दोनों की आपूर्ति को नजरअंदाज करते हैं। उन की नजर में चीन व भारत में से एक विजेता होगा और एक हारेगा । लेकिन, चीन व भारत अपने-अपने रास्ते आगे विकास कर रहे हैं। वर्ष 2003 में भूतपूर्व भारतीय प्रधान मंत्री वाजपेयी ने चीन यात्रा से पहले कहा था कि हमें लड़ाई नहीं चाहिए। वर्ष 2004 में चीनी प्रधान मंत्री वन जा पाओ की भारत यात्रा से द्विपक्षीय संबंध विकास के एक नये दौर में प्रवेश कर गए हैं।अब चीन व भारत ने रणनीतिक सहयोगी साझेदारी संबंध स्थापित किया है। चीन व भारत की सीमा समस्या के विशेष प्रतिनिधियों की वार्ता में भी सक्रिय प्रगति हुई है। दोनों के बीच व्यापार रक्म प्रति वर्ष 30 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ रही है। दोनों देशों के जाने-माने व्यक्तियों का मंच भी हर वर्ष एक दूसरे के यहां आयोजित होता रहता है। दोनों देशों के बीच आदान-प्रदान बढ़ने के साथ-साथ दोनों देशों की जनता के बीच आपसी समझ भी बढ़ रही है। भारतीय भूतपूर्व वाणिज्य मंत्री श्री रमेश ने चीन-भारत संबंध के लिए एक नया शब्द चीन्डिया पेश किया। अब यह शब्द दुनिया में प्रचलित हो गया है। श्री रमेश के अच्छे मित्र प्रोफेसर थेई जुंग ने इस का चीनी में中印大同 शब्द में अनुवाद किया है। इस की व्याख्या करते समय प्रोफेसर थेई जुंग ने कहा, चीन्डिया वास्तव में चाइना व इन्डिया का जोड़ है, जिस का मतलब चीन व भारत दोनों एकजुट होकर काम करें और आगे विकास व सहयोग करने के लिए समान प्रयास करें। दोनों देश शांति सहअस्तित्व चाहते हैं।
प्रोफेसर थेई जुंग के विचार में चीन्डिया का अब चीन में प्रचलित सामन्जस्यपूर्ण दुनिया से घनिष्ठ संबंध है। यह एक विचारधारा है। उन्होंने कहा कि वास्तव में यह विचारधारा उन के पिता जी से आयी थी। वे आशा करते हैं कि चीन्डिया से फिर एक बार पुराने चीन के समृद्ध काल में चीन-भारत संबंध को प्रतिबिंबित किया जा एगा। वे द्विपक्षीय परम्परागत संबंध की बहाली करना चाहते थे। पिछले 70 से ज्यादा वर्षों में उन के पिता और वे चीन-भारत मैत्री के लिए काम करते रहे थे, फिर भी उन्होंने चीन्डिया शब्द के बारे में नहीं सोचा । कुछ वर्ष पहले उन के एक भारतीय मित्र ने यह शब्द प्रस्तुत किया। उन के मित्र ने अपनी पुस्तक में कहा कि चीन्डिया वास्तव में श्री नेहरू और श्री ठाकुर की विचारधारा से आया है। भारतीय कवि ठाकुर ने श्री थेई व्यन शैन को विरासत दी है और वह पारिवारिक धरोहर के रुप में भी बाद में श्री थेई जुंग के दिमाग में आया। उस समय, श्री ठाकुर और उन के पिता ने गहन रुप से महसूस किया कि चीन व भारत की सभ्यताओं के बीच सहयोग को बढ़ावा देने से अवश्य ही एक शांतिपूर्ण व एकजुट दुनिया की स्थापना करने में योगदान दिया जा सकेगा।
अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय में चीनी विभाग खोलने के बाद, भारत की राजधानी दिल्ली के दिल्ली विश्वविद्यालय और नेहरु विश्वविद्यालय में भी क्रमशः चीनी भाषा का विभाग खोला गया। श्री थेई जुंग इन विभागों के प्रोफेसर बनें। नेहरू विश्वविद्यालय के चीनी विभाग की चर्चा में श्री थेई जुंग ने कहा ,वर्ष 1964 में मैं दिल्ली विश्वविद्यालय के चीनी भाषा विभाग का अध्यक्ष बना। वर्ष 1978 से मैं नेहरू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर बना। इस विभाग में भारतीय विद्यार्थियों को पांच वर्षों तक चीनी सिखाई । मैंने चीनी की पढ़ाई में मेहनत की और धीरे-धीरे चीनी विभाग का विस्तार करता रहा ।अब तक भारत में कम से कम पांच ऐसे विश्वविद्यालय हैं, जहां चीनी भाषा सिखाई जाती है।
दोनों देशों के बीच व्यापार का आदान-प्रदान बढ़ने और पर्यटन के बढ़ने के साथ-साथ, आजकल अधिक से अधिक विद्यार्थियों ने चीनी सीखना शुरु किया है। श्री थेई जुंग ने कहा, आजकल चीनी सीखने में भारतीय लोगों में बड़ा जोश है। चूंकि चीनी भाषा सीखने से उन के स्नातक होने से पहले ही उन्हें पर्यटन गाईड या किसी कंपनी में काम करने का मौका मिल सकेगा। पहले नेहरु विश्वविद्यालय में रुसी भाषा का बोलबाला था, जबकि अब चीनी भाषा का है।
श्री थेई जुंग के अनुसार, दिल्ली विश्वविद्यालय में चीनी भाषा सीखने के लिए इस वर्ष 400 से ज्यादा विद्यार्थियों ने आवेदन किया है। नेहरु विश्व विद्यालय में भी छात्रों की संख्या 100 को पार कर गयी है। चीनी भाषा के अध्यापक की समस्या दिल्ली विश्विद्यालय में खास तौर पर गंभीर है। भारत स्थित चीनी दूतावास की मदद से ये भारतीय विद्यार्थी अक्सर चीनी फिल्में देखते हैं और त्यौहार के दिन उन्हें च्याओ त्ज नामक आदि चीनी खाना खाने का मौका मिलता है। श्री थेई जुंग ने कहा कि निकट भविष्य में पेइचिंग विश्वविद्यालय के महा निदेशक भी भारत जाएंगे, और नेहरु विश्वविद्यालय में चीनी शोध अकादमी की स्थापना करेंगे। इस तरह विश्वविद्यालय में अध्यापकों के अभाव की समस्या का समाधान किया जा सकेगा।
चीन-भारत संबंध के भविष्य के प्रति श्री थेई जुंग पूरी तरह आशावान हैं। उन्हों ने कहा कि मैं हमेशा ही चीन-भारत संबंध पर आशावादी रुख अपनाता हूं। मैंने अपने एक लेख में लिखा है कि हम दोनों देश हिमालय को एक शांतिपूर्ण सीमा बनाएं, और दोनों देशों के लोग हिमालय में स्केटिंग करें और आनंद उठाएं। वहां हम शीतकालीन ऑलंपियाड का आयोजन भी कर सकते हैं।
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