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प्रिय मित्रो , आज के चीन का भ्रमण साप्ताहिक कार्यक्रम में हम आप को दक्षिण-पश्चिम चीन के छंगतु शहर में स्थित महा ता छी मंदिर के दौरे पर ले चलते हैं । आशा है कि आप को इस दौरे में मजा आयेगा ।
सर्वविदित है कि भारत बौद्ध धर्म का उद्गम स्थल है और धर्म का प्रचार-प्रसार ईस्वी पहली शताब्दी के आसपास चीन में शुरु हो गया था , फिर जल्द ही चीन से होकर कोरियाई प्रायद्वीप और जापान में उस का प्रचार-प्रसार हुआ । कहा जाता है कि ईस्वी 64 वर्ष में चीन के हान राजवंश के राजा मिंग ती ने बारह दूतों को बौद्ध सूत्र सीखने के लिये भारत भेजा । ईस्वी 67 वर्ष में उक्त दूत दो भारतीय भिक्षुओं के साथ बौद्ध सूत्र ग्रंथ व मूर्तियां ले कर मिंग राजवंश की राजधानी आज के मध्य चीन के ह नान प्रांत के लो यांग शहर वापस लौटे। इस के बाद उन्हों ने लो यांग शहर में कुछ बौद्ध सूत्रों का चीनी-भाषा में अनुवाद किया , साथ ही तत्कालीन राजधानी लो यांग शहर में चीन के प्रथम बौद्ध मंदिर का निर्माण भी किया गया और इसी मंदिर का नाम सफेद घोड़ा यानी चीनी भाषा में पाई मा स पड़ा। कहा जाता है कि भारत से लाए गए बौद्ध सूत्र व मूर्तियां सब की सब सफेद घोड़े की पीठ पर लाद कर ही चीन लायी गयी थीं , इसीलिये प्रथम बौद्ध मंदिर का नाम सफेद घोड़ा यानी पाई मा पड़ा । हान राजवंश के बाद चीन में बौद्ध धर्म का खूब प्रचार-प्रसार होने लगा और स्वी व थांग राजवंशों तक इस धर्म का प्रचार-प्रसार अपने उत्थान पर रहा । चीन के विभिन्न क्षेत्रों में बहुत से बौद्ध मंदिर पाये जाते हैं , पर आज के इस कार्यक्रम में हम आप के साथ पश्चिम चीन में स्थित स छ्वान प्रांत के छंगतु शहर में निर्मित ता छी मंदिर का दौरा करने जा रहे हैं ।
ता छी मंदिर छंगतू शहर की पूर्वी हवा नामक सड़क पर स्थित है । यह महा मंदिर अनगिनत विश्वविख्यात भित्ति चित्रों की वजह से जाना जाता है । 17 हजार वर्ग मीटर क्षेत्रफल में फैला यह मंदिर छंगतू शहर के प्रथम बड़े मंदिर के नाम से भी नामी रहा है । आज का छंगतू संग्रहालय भी इसी स्थान पर है । इस महा मंदिर के आचार्य ता एन ने इस मंदिर के इतिहास का संक्षेप में परिचय देते हुए कहा कि छंगतू के ता छी मंदिर का निर्माण प्राचीन काल के वई चिन व उत्तर दक्षिण काल के दौरान पूरा किया गया था, उस का इतिहास आज से कोई एक हजार छः सौ साल पुराना है । थांग व सुंग राजवंश काल में उस का विकास बुलंदी पर था , पर मिंग राजवंश के अंतिम काल में एक युद्धाग्नि में वह बरबाद हो गया , छिंग राजवंश की शुरूआत में उस का जीर्णोंधार हुआ । सन 1966 में चीन में हुए देशव्यापी सांस्कृतिक आंदोलन के दौरान वह फिर एक बार नष्ट हुआ और फिर 2004 में उस का पुनर्निर्माण हुआ और वह सार्वजनिक रूप से दर्शकों के लिए खुला ।
सुना जाता है कि बहुत पहले छंगतू भीतरी समुद्र पर एक चलता-फिरता स्थल रहा था , स्थानीय लोगों ने इस क्षेत्र को स्थिर बनाने और पानी में धंसने और बाढ़ से बचाने के लिये छंगतू शहर पर बड़े आकार वाला महा ता छी मंदिर निर्मित किया , ताकि वह छंगतू शहर की सुरक्षा,समृद्धि व शांति बनाए रखा जा सके ।
महा ता छी मंदिर इतिहास में कई बार नष्ट हुआ पर फिर पुनर्निर्मित हुआ । आज इस मंदिर में जो जितने भी सुरक्षित भवन हैं , वे सब से सब ईस्वी 1643 से 1661 तक के छिंग राजवंश के राजा श्वन ची काल में पुनर्निर्मित हुए हैं । उन में स्वर्ग राजा भवन , अमिताभ भवन , महा वीर भवन , सूत्र पढ़ाई भवन , सूत्र सुरक्षित भवन और ह्वेनसान के यात्रा विवरण प्रदर्शनी कक्ष सब से प्रमुख हैं। प्राचीन छायादार पेडों से घिरे ये भवन बेहद आलीशान हैं
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