आज की इस डाक-सभा में खरियार रोड उड़ीसा के हेम सागर नायक, रामपुरफुल पंजाब के बलवीर सिंह और रोहतास बिहार के एम एच निर्दोष के पत्र शामिल हैं।
खरियार उड़ीसा के हेम सागर नायक और रामपुरफुल पंजाब के बलबीर सिंह चीन में होने वाली मुख्य फसलों के साथ-साथ चीन की कृषि व्यवस्था के बारे में भी जानकारी पाने के इच्छुक हैं। रोहतास बिहार के एम एच निर्दोष भी इसी संदर्भ में कुछ जानना चाहते हैं।
चीन में खेतीबारी बहुत पहले शुरू हो गई थी। धान,गन्ना,सोर्गम,बाजरा,सोयाबीन,सरसों,चाय और रेशम से जुड़ी शहतूत आदि की फसल सर्वप्रथम चीन में ही बोई गईं थीं,पुरातत्व खुदाई में आज से कोई चार हजार साल पूर्व के धान के दाने तक प्राप्त हुए हैं और दुनिया की लगभग 90 फसलों में से 50 से अधिक चीन में पाई जाती हैं।
जलवायु और मिट्टी के अन्तर के कारण चीन के विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न खेती व्यवस्थाएं हैं। पूर्वोत्तर औऱ पश्चिमोत्तर चीन में एक फसल की व्यवस्था है तो उत्तरी चीन में दो सालों में तीन फसलों की.जबकि दक्षिणी चीन एक साल में तीन फसलें काटता है।
पूर्वोत्तर और पश्चिमोत्तर में मुख्यत: मकई,सोर्गम,बाजरा,गेहूं,आलू,सोयाबीन और तिलहन की खेती होती है.उत्तर की मुख्य फसलें गेहूं,धान,कपास,तंबाकू,सन,मूंगफली,तिल व मकई हैं,जबकि दक्षिण धान,गेहूं,कपास,सरसों,तंबाकू,चाय,गन्ना,सन,मकई औऱ तिलहन के लिए प्रसिद्ध है। यों सछ्वान बेसिन,यांगत्जी नदी का मध्य व निचला भाग,पर्ल नदी का डेल्टा तथा पूर्वोत्तर चीन का मैदान एवं उत्तरी चीन का मैदान चीन के प्रमुख अनाज उत्पादक क्षेत्र हैं।
संक्षेप में कहें तो चीन में गेहूं की पैदावार सब से अधिक होती है। उस के बाद धान औऱ फिर तिलहन।
पिछले अनेक वर्षों में चीन के खाद्यान की कुल पैदावार में लगातार बढोतरी हुई है,तो भी कृषि के आधुनिकीकरण में किसी विकसित देश की बराबरी के लिए चीन को अभी काफी लम्बा रास्ता तय करना है।
रामपुरफुल पंजाब के बलबीर सिंह ने यह भी पूछा है कि चीन में किस तरह की शिक्षा व्यवस्था लागू है ? यूनिवर्सिटियों में परीक्षा लेने का कैसा ढंग हैं और क्या चीन में भी नकल का रूझान है ?
चीन में नौ सालों की अनिवार्य शिक्षा व्यवस्था लागू है। इस व्यवस्था के तहत बच्चों का 6 साल की प्राथमिक शिक्षा और तीन साल की माध्यमिक शिक्षा लेना आवश्यक माना जाता है। प्राइमरी स्कूल में प्रवेश पाने के लिए बच्चों की आयु-सीमा 6 साल है और फिलहाल 99 प्रतिशत स्कूली उम्र वाले बच्चों को प्राइमरी स्कूल में पढ़ने का मौका मिल रहा है।
प्राइमरी स्कूल में चीनी भाषा और साहित्य,अंकगणित,अंग्रेजी,गायन,चित्रकारी,व्यायाम और नैतिक आचरण संबंधी ज्ञान आदि के पाठ्यक्रम शामिल हैं।
चीन सरकार 9 सालों की अनिवार्य शिक्षा व्यवस्था पर अमल के भगीरथ प्रयास कर रही है,तिस पर भी शिक्षा पर खर्च कम महसूस किया जाता रहा है। यह स्थिति गरीब क्षेत्रों में तो और भी गंभीर है। प्राप्त आंकड़ों के अनुसार देश के लगभग 3 करोड़ बच्चों को प्राइमरी स्कूलों में पढ़ने का मौका नहीं मिल पाता या यह मौका होने के बावजूद बीच में ही पढाई छोड़नी पड़ती है। ऐसे करीब 82 प्रतिशत बच्चे गांवों में है। इसे ध्यान में रखते हुए चीन सरकार ने 1989 में बाल विकास कोष स्थापित किया,जो गरीब क्षेत्रों में शिक्षा से वंचित बच्चों को सहायता देता है। इस के साथ ही "आशा परियोजना "भी आरंभ की गयी,जिस का उद्देश्य समाज के विभिन्न तबकों से चन्दा एकत्र कर गरीब बच्चों की मदद करना और गरीब क्षेत्रों में प्राथमिक शिक्षा का विकास करना है। लोगों ने आशा परियोजना का भरपूर समर्थन किया है। कई वर्षों के बाद इस परियोजना के लिए 161 करोड़ 10 लाख चीनी य्वान का चन्दा एकत्र किया गया। इस चन्दे से बीस लाख 19 हजार बच्चे अपनी पढाई जारी रखने के लिए सहायता हासिल कर पाए और कुल 7111 नए प्राइमरी स्कूल बनाए गए। इस वक्त देश की 90 प्रतिशत से भी अधिक जन-संख्या के बीच नौ सालों की अनिवार्य शिक्षा व्यवस्था लागू करने के प्रयास जारी हैं।
चीनी विश्विद्यालयों में दाखिला-परीक्षाएं हर साल एक बार करायी जाती हैं। देश भर के हाई-स्कूलों की पढाई पूरी करने वाले छात्र-छात्राएं प्रति साल 8 और 9 जून को इस तरह की तीव्र स्पर्द्धा वाली राष्ट्रीय परीक्षा में भाग लेते हैं। अच्छे अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थी देश के प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों में दाखिला ले सकते हैं,जब कि अपेक्षाकृत कम अंक प्राप्त विद्यार्थियों को देश के साधारण उच्चशिक्षालयों में प्रवेश दिया जाता है। जब कि निर्धारित अंक-सीमा से बाहर के विद्यार्थियों को विश्विद्यालयों में प्रवेश करने के लिए फिर से अगले साल 8 और 9 जून को नयी राष्ट्रीय परीक्षा में हिस्सा लेना पड़ता है।
चीनी विश्वविद्यालयों में नकल की स्थिति मौजूद है। आम तौर पर इस की ज्यादा परवाह नहीं की जाती। लेकिन अगर किसी परीक्षा में यह स्थिति उत्पन्न हुई,तो इसे किसी भी तरह नहीं सहा जाएगा। भारत की तरह चीन के किसी भी स्कूल की परीक्षा में नकल करने पर सख्त पाबंदी है। चीन के विश्वविद्यालयों में यह नियम है कि प्रमुख परीक्षाओं में नकल करने वाले विद्यार्थियों के खिलाफ़ पढाई छोड़ने के लिए मजबूर करने जैसी दंडात्मक कारर्वाई की जाती है।

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