पीला साफा सेना द्वारा किए गए विद्रोह के तूफान में पूर्वी हान राजवंश का अस्तित्व केवल नाम के लिए रह गया।
इस विद्रोह का दमन करने के दौरान स्थानीय अफसरों और शक्तिशाली जमींदारों ने सिपाहियों को भरती कर अपनी खुद की फौजें भी खड़ी कर लीं अथवा उनका विस्तार कर लिया, और वे खुद अपने-अपने इलाके के अधिपति बन बैठे, जिन पर केन्द्रीय सरकार का कोई नियंत्रण नहीं रह गया।
धीरे धीरे उनके बीच एक-दूसरे के इलाके को हड़पने के लिए लड़ाइयां शुरू हो गईं।
अन्त में छाओ छाओ(155-220) ने ह्वाङहो नदीघाटी, ल्यू पेइ(161-223) ने सछ्वान प्रान्त और सुन छ्वेन(182-252) ने मध्य व निचली छाङच्याङ नदीघाटी पर नियंत्रण कर लिया और क्रमशः वेइ राज्य (220-265, राजधानी ल्वोयाङ), शू राज्य (221-263, राजधानी छङतू) तथा ऊ राज्य(229-280, राजधानी नानचिङ) की स्थापना की।
ये तीनों ही राज्य तिपाई की तीन पायों की तरह 280 ई. तक साथ-साथ कायम रहे, जबकि पश्चिमी चिन राजवंश द्वारा देश का पुनः एकीकरण किया गया।
पूर्वी हान राजवंश के अन्तिम काल में और समूचे तीन-राज्य काल के दौरान लगातार लड़ाइयां चलते रहने के कारण इन सभी राज्यों के शासकों के सामने अपनी सेनाओं के लिए खाद्य-सप्लाई जुटाने की महत्वपूर्ण समस्या पैदा हो गई।
अतः छाओ छाओ ने ह्वाङहो नदी के समीपवर्ती इलाकों में सैन्य कृषिक्षेत्र कायम किए और सिंचाई परियोजनाओं का निर्माण करवाया।
परिणामस्वरूप, उत्तरी चीन का खाद्यान्न-उत्पादन तेजी से बहाल हुआ और बढ़ने लगा।
शू राज्य के शासक ने भी अपने राजनीतिज्ञ व युद्धनीतिज्ञ चूके ल्याङ (181- 234) के सुझाव पर कृषि-उत्पादन में वृद्धि की ओर अत्यधिक ध्यान दिया।
उसने तूच्याङ बांध को केन्द्र बनाकर सिंचाई-नहरों का जाल निर्मित करवाया और दक्षिणी सछ्वान प्रान्त तथा युननान व क्वेइचओ प्रान्तों के उन इलाकों के आर्थिक विकास के लिए, जहां अल्पसंख्यक जातियां आबाद थीं, बहुत काम करवाया।
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