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(GMT+08:00) 2006-11-17 10:43:44    
इंद्रधनुष

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जमीन पर गिर चुकी पानी की बड़ी बड़ी बूंदों पर निगाह पड़ने पर ये छोटी बूंदें जैसे ईर्ष्या से भर उठीं ।

देखो , कमल के पत्तों पर पड़ी वह बूंद जैसे नीलम की तश्तरी में पारा लुढ़कता हो ।

वाह , कितना लावण्य है इस में ।

और उधर उस पेड़ के पत्तों पर पड़ी वह मोटी बूंद दमकती हुई कितना सुन्दर लगती है ।

पानी के बड़े कतरों का कितना काम आता है , उन से ही पहाड़ों पर हरियाली छाती है , नदी --तालों को बहाव मिलता है , वे ही पौधे उगाती है तथा फूल खिलते हैं ।

फिर हम छोटी बूंदों का कुछ भी काम नहीं बन सकता ।

हवा में तैरती छोटी बूंदों ने कुछ ऐसा ही सोचते हुए आह भरी ।

नाखुश क्यों हों . आकाश से एक सनेह भरी आवाज फटी ।

छोटी बूंदों ने सिर उठा कर देखा , तो पाया कि सूरज दादा मुस्कराते हुए उन्हें ही निराह रहे है ।

आओ , हम सब मिल कर आकाश को संवारे सजाएं , मंजूर है . सूरज दादा ने पूछा ।

हम , भला हम कैसे संवारे इतने बड़े आकास को , हम तो बहुत छोटी और हल्की हैं ।

हम से क्या काम आ सका . छोटी बूंदों ने शंका की नजर से सूरज की ओर देखा ।

खुद को दीन -हीन ना समझो , हर किसी की तरह तुम्हारा भी कोई काम है . पर तुम्हें मालूम होना चाहिए ।

सूरज दादा ने छोटी बूंदों को जोश दिलाया और फिर दिया काम शुरू करने का आदेश , शुरू करो , छोटी बूंदों , एक कतार में बंध जाने की कोशिश करो , जल्दी और चुस्ती -फुर्ती से ।

छोटी बूंदें देखते ही देखते एक पंक्ति में आ गईं ,सूरज का जमगमाता सफेद प्रकाश उन पर पड़ा , तो आकाश से कुछ लड़कियों की खिलखिलाहट सुनाई पड़ने लगी ।

छोटी बूंदों की बाछें खिल उठीं ।

और इसी बीच धरती से उन्हें उन जैसे छोटे छोटे बच्चों का हर्षोल्लास सुनाई दियाः देखो , दोनों इंद्रधनुष , आह कितना सुन्दर है, यह इंद्रधनुष ।