अमरीकी प्रसिद्ध पत्रकार ऐडगर स्नो ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक चीन में लाल सितारा में चीन के शान्पेई की लाल भूमि येन एन की चर्चा की है। येन एन पीले पठार पर एक अज्ञात छोटा सा नगर है। चूंकि यह लाल सेना के लम्बे अभियान में अंतिम महत्वपूर्ण विजय स्थल है, इसलिए, येन एन विश्वविख्यात बन गया है । तो लाल सेना के लम्बे अभियान ने येन एन इस नगर में क्या छाप छोड़ी है। आज के येन एन की स्थिति कैसी है।
82 वर्षीय श्वू चिन शेन येन एन के एक वृद्ध नागरिक हैं। सफेद बालों वाले वृद्ध को बच्चों से प्रेम है। श्री श्वू अक्सर बच्चों को लाल सेना के लम्बे अभियान की कहानी सुनाते हैं। बच्चों को मालूम है कि दादा श्वू एक छोटे थैले में अक्सर घास के जूते और कुछ सूखी घास रखते हैं। दादा श्वू ने कहा कि उस समय लाल सेना के सिपाही इसी तरह के घास के जूते पहनते थे और घास से खुद काग़ज़ बनाते थे।
श्री श्वू की याद में लाल सेना ने उन पर गहरी छाप छोड़ी है। हालांकि वर्ष 1936 में लाल सेना के येन एन में विजय पाते समय वे केवल 10 की उम्र के एक लड़के थे, फिर भी लाल सेना के कुछ सैनिकों के उस के घर में एक रात रहने के कारण वे इस घटना और सेना को कभी नहीं भूल सके।
दादा श्वू को याद है कि उस दिन यहां आने वाले सैनिकों की वेशभूषा इतनी अच्छी नहीं थी, उन लोगों ने अटपटे, कुछ लम्बे, कुछ छोटे ,कुछ काले कुछ सफेद आदि भिन्न-भिन्न रंग के कपड़े पहने हुए थे। लेकिन, सभी के सिरों पर पीले रंग के टोप थे। टोप के सामने केंद्र में एक चमकीला सितारा था। दादा श्वू के अनुसार,मेरे पिता जी ने लाल सेना के सैनिकों से कहा कि मैं आप लोगों के स्वागत में आप लोगों को एक बकरी देता हूं, तो लाल सेना के सैनिकों ने कहा कि नहीं, हमें आप को पैसे देने हैं। घर से जाते समय उन्होंने हमारे आंगन को अच्छी तरह साफ़ किया।
अपने पिता जी से दादा श्वू को मालूम हुआ कि यह सेना लाल सेना थी और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी लाल सेना का नेतृत्व कर रही थी। बाद में लाल सेना के सैनिकों को अक्सर श्वू चिन शैन ने देखा। उन्होंने स्थानीय निवासियों के लिए स्कूल की स्थापना की, जिस से श्वू चिन शेन और उन के साथी आखिरकार स्कूल जा सके। दादा श्वू के अनुसार,पहले जब मैं ने देखा कि गांव के धनी आदमियों के बच्चे स्कूल में पढ़ सकते हैं, और खुद गरीबी के कारण वह स्कूल में नहीं जा सका तो बहुत दुखी हुआ। लेकिन, लाल सेना के आने के बाद, हमारे यहां स्कूल खोला गया और मैं भी स्कूल में पढ़ सका। मेरे मन में खुशी का ठिकाना नहीं था।
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व वाली सेना न केवल येन एन के निवासियों पर बोझ नहीं डालती थी, बल्कि उन्होंने येन एन में बड़े पैमाने वाला कृषि उत्पादन का आंदोलन भी किया, जिस से येन एन के अर्थतंत्र में अपेक्षाकृत बड़ा विकास आया। दादा श्वू के जीवन में भी सुधार आया।
दादा श्वू ने कहा,उस समय चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता माओ जडं तुंग ने बड़े पैमाने वाला उत्पादन का आंदोलन किया। चाहे आम किसान हो, या संस्थाएं हों या स्कूलों के कर्मचारी सभी लोग उत्पादन में जी जान से जुटे। लोगों के जीवन में भारी परिवर्तन आया । मेरे घर में उस समय एक वर्ष में लगभग एक हजार किलोग्राम अनाज का उत्पादन किया जाता था।
लाल सेना के आने से पहले, येन एन केवल एक छोटा नगर था, लाल सेना के आने के बाद यहां की आबादी 3000 से बढ़कर लाखों तक पहुंची। वर्ष 1937 में जापानी आक्रमण होने के बाद युद्ध छिड़ा । जापानी आक्रमण का दृढ प्रतिरोध करने के लिए चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के आह्वान में चीन के विभिन्न स्थलों के देशभक्त युवक अलग-अलग तौर पर येन एन आये, जिस से लाल सेना में सैनिकों की संख्या में भारी वृद्धि आयी। येन एन देशभक्त युवकों के एकत्र होने का प्रमुख स्थल बन गया।
उसी वक्त, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने येन एन में जापानी आक्रमण विरोधी सैन्य व राजनीति विश्विद्यालय , शैन पेई अकादमी आदि 30 से ज्यादा स्कूल खोले और अनेक सुयोग्य व्यक्तियों का प्रशिक्षण भी किया। इस के अलावा, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने येन एन में लोकतंत्र रुपांतरण और सामाजिक रुपांतरण आंदोलन भी किया और किसानों को खुद ही गांव के गर्वनर का चुनाव करना सिखाया। दादा श्वू ने कहा,उस वक्त अधिकांश किसान स्कूलों में नहीं पढ़ते थे, इसलिए, गांव के गर्वनर का चुनाव करते समय हम ने हर एक उम्मीदवार को एक बोतल दी। किसान उम्मीदवार की बोतलों में दाल रख कर उस का चुनाव करते थे। जिस व्यक्ति की बोतल में दाल ज्यादा होगी, तो वह गांव का गर्वनर बनेंगा।
श्वू चिन शैन ने बाद में यह बताया कि लम्बे अभियान के बाद प्राप्त विजय के बाद के 10 से ज्यादा वर्षों में येन एन तत्कालीन चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के केंद्रीय आयोग का निवास स्थल बना। येन एन तत्कालीन चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के केंद्रीय आयोग के नेतृत्व वाली सेना और नागरिकों के जापानी आक्रमण विरोधी युद्ध का अड्डा और मुक्ति युद्ध के कमांडर केंद्र एवं रणनीतिक मुख्यालय बना ।
वर्ष 1949 में नये चीन की स्थापना के बाद, श्वू चिन शैन ने अपने साथियों के साथ पुराने नगर में सड़कों व मकानों का पुनः निर्माण किया। येन एन के उद्योग का भी विकास हुआ। येन एन में तेल कारखाना, ऊनी कारखाना और कोयला खान आदि की स्थापना की गई। पिछली शताब्दी के 70 के दशक के अंत में येन एन में शैन शी प्रांत की राजधानी शी एन को जोड़ने वाला रेल मार्ग का निर्माण भी किया गया। विभिन्न प्रांतों के बीच भी पठार की भौगोलिक बाधा को दूर किया गया और अनेक सड़कों का निर्माण भी किया गया।चीन में रुपांतरण व खुलेपन की नीति लागू होने के बाद येन एन में विकास की गति और तेज़ हो गयी है। पारिस्थितिकी पर्यावरण की रक्षा करने के लिए उन्होंने अनेक फलों के पेड़ उगाये। इधर के वर्षों में येन एन के तेल उद्योग का विकास भी हुआ है और वित्तीय आय में भी भारी वृद्धि आयी है।
श्वू चिन शैन बाद में काऊंटी के अध्यक्ष और येन एन क्षेत्र के विशेषज्ञ बने । पिछली शताब्दी के 90 के दशक में वे रिटायर हुए। श्री श्वू के पांच बच्चों का स्थिर रोजगार और स्वतंत्र मकान है। हाल ही में दादा श्वू की छोटी बहन श्वू श्याओ ली ने भी नया मकान खरीदा है। अब उन के मकान की मरम्मत की जा रही है। सुश्री श्वू के अनुसार,हाल ही में मैंने एक 100 से ज्यादा वर्ग मीटर वाला मकान खरीदा है और यह मकान सजाने की तैयारी में है।
आजकल दादा श्वू के कहने के कारण लोग मिट्टी से बने मकानों की बजाए ईंटों से बने मकानों में रहते हैं। उन के मकानों में रंगीन टी वी, सोफा, विद्युत यंत्र और आधुनिक फर्नीचर मौजूद है।
आज येन एन में जीवन बहुत सुविधापूर्ण है। यहां विभिन्न रेस्तरां और मशहूर वेशभूषा की दुकानें उपलब्ध हैं। टैक्सी बहुत सस्ती है, लोग कुछ चीनी य्वान में ही नगर के केंद्र से उपनगर तक पहुंच सकते हैं। एक्सप्रेस वे सीधी शी एन पहुंचती है, इतना ही नहीं, येन एन से पेइचिंग तक पहुंचने वाली रेल गाड़ियां भी भी चलने लगीं हैं।
बीस वर्षों के विकास के बाद, अब येन एन एक दो लाख से ज्यादा आबादी वाला नगर बन गया है। पहले के गरीब नगर की अब औसत आमदनी शैन शी प्रांत के प्रथम स्थान पर पहुंची है।
दादा श्वू के पोते-पोती अब येन एन से बाहर निकले हैं, वे या तो शी एन में काम करते हैं, या स्कूल में पढ़ते हैं। दादा श्वू के एक पोते का नाम श्वू जडं है। चीनी शब्द जडं का मतलब लम्बा अभियान है। अब वे शी एन की एक विधान सस्था में काम करते हैं। श्री श्वू जडं ने कहा कि हालांकि वे येन एन से रवाना हुए हैं, फिर भी यह लाल भूमि उस के दिल में हमेशा बसी हुई है। उस के लिए येन एन एक मानसिक प्रतिबिंब भी है। उस के अनुसार, हम लोग जो येन एन से बाहर आते हैं, लम्बे अभियान के प्रति हमारे पास ज्यादा जानकारियां हैं। हम ने पता लगाया कि सुखमय जीवन आसानी से नहीं आ सकता है, इसलिए, हमें आज के जीवन के मूल्य को समझना चाहिए।
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