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(GMT+08:00) 2006-11-10 14:45:20    
सुप्रसिद्ध सर्जन डाक्टर श्री थ्येन ह्वीचुंग

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आज के चीनी अल्पसंख्यक जाति कार्यक्रम के अन्तर्गत सिन्चांग के ऊरूमुची शहर के च्यानग्वांग अस्पताल के सर्जन डाक्टर श्री थ्येन ह्वीचुंग की कहानी प्रस्तुत है ।

सिन्चांग के ऊरूमुची शहर का च्यानग्वांग अस्पताल रीढ़ व हड्डी के रोगों के इलाज के लिए अत्यन्त मशहूर है । अस्पताल के सर्जन डाक्टर श्री थ्येन ह्वीचुंग ने रीढ़ आपरेशन के 20 से ज्यादा नए उपचार तरीकों का विकास किया और रीढ़ की हड्डी के आपरेशन में उपयोगी नश्तर का आविष्कार किया है , उन के प्रयोग में कठिन से कठिन आपरेशन को सफल बनाया जा सकता है , इसलिए इस प्रकार के नश्तर को थ्येन शी नश्तर का नाम दिया गया ।

इस साल ,80 वर्षीय डाक्टर थ्येन ह्वीचुंग को हड्डी व रीढ़ सर्जरी विभाग में काम करते हुए 50 साल हो गए है । पिछले 50 सालों में उन्हों ने चिकित्सा क्षेत्र में असाधारण योगदान किया और उन्हों ने जिस थ्येनशी नश्तर का आविष्कार किया है , उस ने विश्व में रीढ़ की विकृत हड्डियों को चीड़फाड़ कर दुरूस्त करने की तकनीक में नया कीर्तिमान कायम किया है । वे चीन की प्रथम विकृत रीढ़ आपरेशन पुस्तक के प्रधान संवादक भी हैं और उन्हों ने क्रमशः 60 से ज्यादा अकादमिक निबंध लिखे हैं , जो देश विदेश की विभिन्न मेडिकल पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं ।

श्री थ्येन ह्वीचुंग का जन्म एक चीनी परम्परागत पद्धति के चिकित्सक खानदान में हुआ , उन के दादा और पिता दोनों मशहूर चिकित्सक थे । इस पर उन्हों ने कहाः युवावस्था में मैं घर में चीनी परम्परागत चिकित्सा पद्धति सीखता था , घर में बेशुमार मेडिकल किताबें थीं , पिता दादा से प्रभावित हो कर बचपन में ही मुझे मेडिकल पुस्तक पढ़ने और दवा औषधि जानने में रूचि रही थी । मैं ने चिकित्सा शास्त्र पढ़ने का निश्चय किया और विश्वविद्यालय में दाखिला भी मिला ।

वर्ष 1950 में श्री थ्येन ह्वी चुंग मेडिकल विश्वविद्यालय से स्नातक हुए । उस जमाने में सिन्चांग में बड़ी संख्या में तकनीशियनों की आवश्यकता थी , उन्हों ने भी सिन्चांग की विभिन्न जातियों के लोगों की सेवा करने का फैसला किया और वे अपनी मां और छोटी बहन को लेकर सिन्चांग आए ।

शुरू शुरू में श्री थ्येन ह्वीचुंग आम सर्जरी का काम करते थे , बाद में विशेष रूप से हड्डी रोगों की उपचार तकनीक में अनुसंधान आरंभ किया । चिकित्सा काम के दौरान उन्हों ने पाया कि बहुत से रोगी रीढ़ की बीमारी से पीड़ित हो कर बहुत दुखी दिखते हैं , तो इस पर उन्हें बड़ा सदमा पहुंचाः

ये रोगी अधिकांश भवन निर्माण मजूदर थे , दिन रात कड़ी मेहनत करने और मकान पर से गिरने के कारण रीढ़ की हड्डी टूटी और अपाहिज भी हो गए ।

श्री थ्येन ह्वीचुंग ने रीढ़ की विकृत हड्डी के उपचार की कारगर तकनीक का आविष्कार करने की ठान ली । उस जमाने में रीढ़ की उन्नतोदर विकृत हड्डी का रोग एक असाध्य रोग माना जाता था । चीन में इस किस्म के रोग में अनुसंधान प्रारंभिक दौर में था । श्री थ्येन ह्वीचुंग ने विदेशी पत्रिकाओं का लगन से अध्ययन किया और नए आविष्कार करने की कोशिश की । वर्ष 1961 में उन्हों ने अपने विकसित नए तरीके से रीढ़ की उन्नतोदार हड्डी के आपरेशन में सफलता पायी , इस तरह वे चीनी रीढ़ सर्जरी विज्ञान के प्रवर्तकों में से एक बन गये ।

हड्डी के चीड़फाड़ के लिए विशेष किस्म के नश्तर की आवश्यकता है । लेकिन उस समय आपरेशन में उपयोग के लिए नश्तर सभी मोटे थे , इसलिए श्री थ्येन ह्वीचुंग ने नए उपयोगी नश्तर का विकास करने का निश्चय किया । उन्हों ने हड्डियों की संरचनाओं के गहन अध्ययन के आधार पर वर्ष 1979 में बीस नए ढंग के नश्तरों की एक सेट का विकास किया , वह विद्युत आरे से भी सुविधापूर्ण और सुरक्षित सिद्ध हुई है , इसलिए इस नश्तर सेट को थ्येन शी नश्तर का नाम दिया गया ।

वर्ष 1979 में चीन के शानसी प्रांत के ताथुंग शहर में आयोजित राष्ट्रीय हड्डी रोग चिकित्सा सम्मेलन में थ्येनशी नश्तरों की बड़ी सराहना की गयी और आगे अन्य कुछ विशेषज्ञों के सहयोग में थ्येनशी नश्तरों में सुधार ला कर और कारगर बनाया गया । अब तक इस की छठी पीढ़ी के उत्पादों का विकास किया गया है और अमरीका व यूरोप में भी निर्यात किया जाता है ।

थ्येनशी नश्तर के आविष्कार से सिन्चांग की विभिन्न अल्पसंख्यक जातियों के रोगियों को बड़ा लाभ मिला , इलाज के लिए बड़ी संख्या में रोगी दूर नजदीक से आए । 70 वर्षीय श्ये छुन के कमर में रीढ़ की हड्डी विकृत हुई , अनेक बड़े बड़े अस्पतालों में भी इस का सफल उपचार नहीं हो पाया । श्री थ्येन ह्वीचुंग का नाम सुन कर वे सिन्चांग के च्यानग्वांग अस्पताल आए और यहां उन्हें वर्षों की असह्य दुख से छुडकारा दिलाया गया। उन्हों ने कहाः

अस्पताल आने से पहले मुझे बताया गया था कि श्री थ्येन ह्वीचुंग की रीढ़ सर्जरी तकनीक बहुत अच्छी है । पहले मुझे पलंग पर लेटना पड़ता था । यहां आपरेशन किया गया और दूसरे दिन ही शरीर में पीड़ा और दुख मिट गयी । आपरेशन का परिणाम बहुत अच्छा निकला ।

श्री थ्येन ह्वीचुंग और उन के थ्येनशी नश्तर का नाम उत्तरोत्तर फैलने लगा । वर्ष 1990 में जापान से दो मेडिकल विशेषज्ञ आए , थ्येनशी नश्तर से आपरेशन किये जाने की प्रक्रिया देखकर दोनों ने बहुत प्रभावित होकर कहा कि आप के अस्पताल की चिकित्सा सुविधा और चिकित्सा साजोसामान जापान के टोकियो विश्वविद्यालय से उन्नत नहीं है , लेकिन आप के यहां श्री थ्येन ह्वीचुंग जैसे श्रेष्ठ डाक्टर हैं । इस के बाद दोनों पक्षों में दोस्ती व सहयोग का संबंध कायम हुआ । श्री थ्येन ह्वीचुंग ने कहाः

जापानी दोस्तों को थ्येनशी नश्तरों में गहरी दिलचस्पी आयी , उन के सहयोग में तीसरी पीढ़ी के थ्येनशी नश्तरों का जापान में उत्पादन किया गया , जो सभी जंग रहित इस्पात से बनाये गए हैं ।

जापानी विशेषज्ञों के निमंत्रण पर श्री थ्येन ह्वीचुंग ने जापान के टोकियो , ओसाका और क्योटो आदि में अनेक बार मेडिकल रिपोर्ट व लेक्चर दिए ,जिस का जोशीला स्वागत किया गया । इस के बाद श्री थ्येन ह्वीचुंग हर साल जापान जा कर लेक्चर देते रहे , शोध छात्रों का प्रशिक्षण करते रहे और वे टोकियो विश्वविद्यालय के शोध विशेषज्ञ भी नियुक्त हुए ।

श्री थ्येन ह्वीचुंग के प्रयासों से चौथी चीनी जापानी रीढ़ सर्जरी अनुसंधान संगोष्ठी 18 अगस्त 2006 को सिन्चांग के च्यानग्वांग अस्पताल में हुई , जिस में दोनों देशों के विशेषज्ञों ने रीढ़ व हड्डी रोग के नयी आपरेशन तकनीकों पर आदान प्रदान किया और दोनों देशों के सहयोग को आगे बढ़ाया । च्यानग्वांग अस्पताल के डायरेक्टर श्री योफङ ने कहाः

इस संगोष्ठी के आयोजन के लिए प्रोफेसर थ्येन ह्वीचुंग ने जापान के विशेषज्ञों और चीन के सुप्रसिद्ध विशेषज्ञों व चीनी इंजीनियरिंग अकादमी के अकादमिशनों को आमंत्रित किया और हमारे अस्पताल में रीढ़ सर्जरी विज्ञान पर अनुभवों का आदान प्रदान किया गया । प्रोफेसर थ्येन ने सिन्चांग व देश के रीढ़ सर्जरी विज्ञान के विकास के लिए योगदान किया है ।

बड़ी आयु होने पर भी श्री थ्येन ह्वीचुंग विश्राम का जीवन बिताना नहीं चाहते , वे रोज समय पर अस्पताल आते है और रोगियों का इलाज करते हैं और अन्य डाक्टरों के साथ परामर्श करते हैं । विकृत रीढ़ से पीड़ित रोगियों को दुख से छुटकारा दिलाने के लिए वे जिन्दगी भर कोशिश करने के कटिबद्ध है । इस पर उन्हों ने कहाः

मैं रोगियों की सेवा करना चाहता हूं , अब तक मैं ने असंख्य रोगियों का इलाज किया है और अपने शेष जीवन में मैं और ज्यादा रोगियों को बचाना चाहता हूं ।

च्यानग्वांग अस्पताल के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 1979 में थ्येन शी नश्तर सेट का आविष्कार किये जाने के बाद अब तक इस किस्म के नश्तरों से यहां 70 हजार रीढ़ रोगियों का सफल इलाज किया गया है । अब जो नई पीढ़ी के नश्तर विकसित किए गए है , वे पिछली सदी में विकसित हुए नश्तरों से भी ज्यादा उपयोगी और समुन्नत है । इस के अलावा श्री थ्येन ह्वी चुंग ने बड़ी संख्या में रीढ़ सर्जरी के चिकित्सकों को प्रशिक्षित किए है , जो अब अस्पताल की प्रमुख शक्ति के रूप में काम कर रहे हैं ।