• हिन्दी सेवा• चाइना रेडियो इंटरनेशनल
China Radio International
चीन की खबरें
विश्व समाचार
  आर्थिक समाचार
  संस्कृति
  विज्ञान व तकनीक
  खेल
  समाज

कारोबार-व्यापार

खेल और खिलाडी

चीन की अल्पसंख्यक जाति

विज्ञान, शिक्षा व स्वास्थ्य

सांस्कृतिक जीवन
(GMT+08:00) 2006-11-06 19:16:54    
काओ छुन-शु और उन की फिल्म 《टोक्यो मुकद्दमा》

cri

दोस्तो,हाल ही में चीनी फिल्म निर्देशक श्री काओ छुन-शु द्वारा निर्मित ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित नयी फिल्म《टोक्यो मुकद्दमा》के देश भर में प्रदर्शन के दौरान व्यापक प्रशंसा मिली है।इस से श्री काओ छुन-शु ने राहत की सांस ली है। क्योंकि किसी गंभीर विषय पर फिल्म को दिलचस्प बनाना कोई आसान काम नहीं है।

फिल्म《टोक्यो मुकद्दमा》में सन् 1946 में 11 देशों से गठित सुदूर पूर्व की फौजी अदालत के उन दृश्यों को दिखाया गया है जिस में आक्रमणकारी युद्ध छेड़ने वाले 28 जापानी युद्ध अपराधियों पर मुकद्दमा चलाया गया था और चीनी न्यायाधीश मई रू-औ,न्यायाधिकारी श्यांग ज-चुन और नी जंग-औ ने कैसे महाशक्तियों का दबाव झेलते हुए भी तार्किक कोशिशों से आखिरकार उन युद्ध अपराधियों में से 7 को कैसे फांसी की संजा सुनाई। ऐतिहासिक वास्तविकता के आधार पर बनी इस फिल्म में एक साधारण जापानी परिवार को युद्धोपरांत दुख,घृणा और प्रतिशोध की भावना में जलते हुए भी दिखाया गया है। यह फिल्म 60 साल पहले की सुदूर पूर्वी अदालत में न्याय और अन्याय के बीच हुए संघर्ष को ताजा करके सजीव रूप से दर्शकों के सामने लाती है। बहुत से दर्शकों ने फिल्म देखने के बाद कहा कि यह आश्चर्यजनक रुप से हृदयस्पर्शी फिल्म है। खासकर न्यायाधिकारों,वकीलों और अपराधियों में जो मनोबल की जोर-आजमाई होती है, उस ने दर्शकों की दिलचस्पी और बढाई है। इस फिल्म के निर्देशक श्री काओ छुन-शु का मानना है कि 《टोक्यो मुकद्दमा》युद्ध और उस की जिम्मेदारी की आलोचना करने वाली फिल्म है, जिस का उद्देश्य संबंधित इतिहास की फिल्मी पुनरावृति से लोगों में युद्ध का विरोध करने और शांति के मूल्य को समझने के विचार को मजबूत करना है। इस फिल्म की शूटिंग की चर्चा करते हुए श्री काओ शु-छुन ने कहा कि शूटिंग-कार्य कोई डेढ़ साल तक चला और इस सिलसिले में उन्हें और उन के सहयोगियों को अनेक अकल्पनीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। सब से बडी मुश्किल सूदर पूर्व की अदालत और उस में चले संबद्ध मुकद्दमे के बारे में किसी भी परिपूर्ण दस्तावेज की अनुपलब्धता थी। उन का कहना हैः

"मुकद्दमा चलाने की वस्तुस्थिति के बारे में दस्तावेज चीन में बहुत कम मिलते हैं। हम ने चीनी राजकीय पुस्तकालय और विभिन्न प्रांतों के प्रमुख पुस्तकालयों में खोजने की कोशिशें कीं,पर खाली हाथ वापस लौटे। अंत में जो सीमित दस्तावेज मिले, वे देश के और जापान के कई विश्वविद्यालयों के पुस्तकालयों से इकठ्ठे किए गए थे। इन पुस्तकालयों के प्रभारियों के अनुसार ये तमाम दस्तावेज पहली बार इस्तेमाल हो रहे हैं । इसलिए कहा जा सकता है कि यह फिल्म दर्शकों को इतिहास के अनेक ऐसे दृश्य दिखाती है, जो दर्शकों ने पहले कभी नहीं देखे और सुने हैं।"

श्री काओ छुन-शु ने जोर देकर कहा कि उन्हों ने फिल्म《टोक्यो मुकद्दमा》की ऐतिहासिक सच्चाई को प्राथमिकता दी है और फिर फिल्म की सुन्दरता को महत्व दिया है।सच्चाई का पीछा करने के लिए फिल्म की पृष्ठभूमि में गहरा हरा रंग उभरता है, ताकि मुकद्दमे से उत्पन्न बोझिल वातावरण और अशांत सामाजिक भावना अभिव्यक्त की जा सके। फिल्म में मंचन-अभिनय के तरीके से पक्ष व विपक्ष के बीच जबरदस्त मुकाबले को चौंकाने वाले सजीव ढंग से दर्शाया गया है। फिल्म में 11 न्यायाधीश औऱ 20 युद्ध अपराधी अंग्रेजी,जापानी और चीनी बोलते हैं। फिल्म के संवाद 85 प्रतिशत अंग्रेजी, 10 प्रतिशत जापानी और 5 प्रतिशत चीनी में है। इसलिए इसे चीनियों द्वारा निर्मित एक विदेशी भाषी फिल्म की संज्ञा मिली है। फिल्म के अभिनेता और अभिनेत्रियां चीन की मुख्यभूमि, थाइवान व हांगकांग, अमरीका और जापान से आए हैं, जिन में मशहूर नाम कम नहीं हैं। इन लोगों को एकत्र करने का अनुभव बताते हुए श्री काओ छुन-शु ने कहाः

"अभिनेता अभिनेता ही है। मेरी नज़र में कोई सुपर स्टार नहीं है। बेशक मैं किसी भी अभिनेता के उच्च अभिनय-स्तर का सम्मान करता हूं। अभिनय करना हर अभिनेता का काम है। मैं उस के द्वारा निभाई गई पुरानी भूमिकाओं पर ध्यान नहीं देता हूं, उस का वर्तमान काम ही यहां मुख्य है।"

40 वर्षीय श्री काओ छुन-शु ने विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढाई पूरी करके स्नातक होने के बाद अनेक वर्षों तक संवाददाता का काम किया था। वह डोक्यूमंट्री फिल्मों में बड़ी रूचि लेते हैं। फिल्म《टोक्यो मुकद्दमा》बनाने से पहले ही उन्होंने देश में टीवी फिल्में बनाने वाले प्रमुख निर्देशकों की पंक्ति में महत्वपूर्ण स्थान हासिल कर लिया था। उन्हों ने अपनी पहली फिल्म《स्वर्ण-दाल》की सभी भूमिकाओं में गैर-पेशावर अभिनेताओं व अभिनेत्रियों का साहस से प्रयोग कर के चीनी फिल्मांकन में एक रिकार्ड भी बनाया । उन के द्वारा निर्मित टीवी धारावाहिक《13 हत्याकांड》बीते करीब 20 वर्षों में चीन में सर्वाधिक लोकप्रिय टीवी धारावाहिकों में से एक रहा है,जिस के दर्शकों की संख्या सर्वाधिक है,पर इस के निर्माण में लागत सब से कम आई है। इस के अलावा उन का अन्य एक टीवी धारावाहिक《जीत》चीन में पुलिस और अपराधियों के बीच संघर्ष का बखान करने वाला पहला टीवी धारावाहिक है,जो चीन में इसी विषय पर बनने वाली टीवी फिल्मों का आदर्श माना गया है।

श्री काओ छुन-शु की कृतियों की लोकप्रियता को देखते हुए बहुत से व्यापारी उन की नयी फिल्मों के निर्माण में निवेश की पहल करते हैं। इस से उन्हें फिल्म बनाने के दौरान किसी वित्तीय समस्या का सामना कभी नहीं करना पड़ा। लेकिन फिल्म《टोक्यो मुकद्दमा》का निर्माण इस का अपवाद है। यह फिल्म करीब 50 प्रतिशत तक बनने के बाद एक व्यापारी ने एक आकस्मिक घटना के कारण विवश होकर अपनी पहले लगाई गई भारी पूंजी को हटा लिया, जिस से श्री काओ छुन-शु को अचानक असहाय स्थिति का सामना करना पड़ा। मजबूरन उन्हें दूसरी फिल्म के निर्माण के लिए रखी गयी 50 लाख य्वान राशि का प्रयोग करना पड़ा। अब इस फिल्म की सफलता से उन्हें बड़ा ढ़ाढ़स बंधा है। उन के अनुसार इस फिल्म की कमाई दूसरी फिल्म बनाने के लिए ज़रुरी बजट तक पहुंच चुकी है।फिल्म बनाने और टीवी धारावाहिक बनाने के बीच क्या फर्क है? इस की चर्चा करते हुए उन्हों ने कहाः

"मेरे ख्याल में सब से बड़ा फर्क है कि टीवी धारावाहिक बनाना फिल्म बनाने से कहीं अधिक मुश्किल है। फिल्म अच्छी तरह बनाना किसी निर्देशक की सच्ची क्षमता नहीं है, टीवी धारावाहिक अच्छी तरह बनाना ही उस की सच्ची क्षमता है। टीवी धारावाहिक लम्बा होता है, जिस में शूटिंग के दौरान पूंजी की कमी अक्सर आती है, बल्कि शूटिंग की स्थितियां भी खराब होती है। एक फिल्म अधिक से अधिक टीवी धारावाहिक के 3 खंडों जितनी लम्बी हो सकती है, जबकि वर्तमान में एक टीवी धारावाहिक कम से कम 24 खंडों का होता है। फिल्म अल्पकाल में बन सकती है। इस से फिल्म बनाने में परेशानियों का सामना करने की अवधि भी कम होती है।"

श्री काओ छुन-शु जीवन से घनिष्ठ संबंध रखने वाली पटकथाओं और उन में जबरदस्त संघर्ष के सजीव वर्णन को बहुत पसन्द करते हैं। उन्हों ने कहा कि वह अव्यावसायिक तौर पर फिल्म बनाते हैं। उन का मुख्य काम जीवन का आनन्द उठाने के साथ उस के अनुभव अर्जित करना है। मुख्य काम के बाद भी वह जीवन के प्रति अपने तरह-तरह के अनुभवों को फिल्मों या टीवी धारावाहिकों के जरिए ही अभिव्यक्त करते हैं।