ये लोग अपने सामानों को फुटपाथों में, आते जाते लोगों के द्वारा उपयोग किये गये रास्तों में अलग अलग किस्म के सामान बेचते हैं और अपने जीवन का गुजारा करते हैं।
समाज के इस वर्ग के लोगों के साथ चीन के कई शहरों में शहरी संचालन के लिए जिम्मेदार अधिकारी काफी दुर्व्यवहार कर रहे हैं।
शहरी संचालन के आड़ में इन लोगों को निशाना बनाया जाता है, जी हां वे हैं चीन के शहरों के छोटे दुकानदार जो खुले सड़कों में अपना सामान बेचते हैं।
कैंटन के रहने वाले उसे 'दौड़ते भूत' का नाम दिये हैं क्यों की अक्सर शहरी अधिकारीयों के आने के आवाज को सुनते ही वे पल भर में रास्तों से ओझल हो जाते हैं और इन अधिकारीयों के जाते ही तुरंत फीर से सड़कों में मंडराने लगते हैं।
लेकिन समाज के इस वर्ग को भागते चुहों के साथ तुलना करें तो और बेहतर होगा।कानूनी आधार पर देखा जाय तो वे कानून का उल्लंघन करते हैं और हमारे शहरों के सौंदर्यता को बिगाड़ते हैं पर हाल में एक ने उनकी इज्जत की हैं और यह सज्जन हैं चीनी केंद्रीय सरकार के निर्माण मंत्रालय के एक उच्चाधिकारी।
हाल ही में चीन के दक्षिणी शहर कुआंगचोउ में आयोजित एक विचारगोष्ठी में निर्माण मंत्रालय के उपमंत्री छीऊ पाओषिंग ने कहा की सड़क में सामान बेचने वालों के साथ अधिकारीयों को संयम दिखाना चाहिए और कम से कम सप्ताह अंत के दौरान और कुछ खास समयों के दौरान उन लोगों को अपना धंधा करने देना चाहिए।
इससे मुझे एक कविता याद आ गयी जो सड़क में सामान बेचने वाले ने 'प्रति लहर' नामक एक कविता को पोडकास्ट में सुनाया। इस कविता को सुनते ही मेरे आँखों में आँसू आ गए।
आइए सबसे पहले इस बात का मूल्यांकन करें की खुले सड़क में सामान बेचने वालों के वजह से हमें किनकिन मुशकिलों का सामना करना पड़ता है। सबसे पहले इनकी वजह से सड़कों में आते जाते लोगों को काफी असुविधा होती हैं।
दूसरी बात यह है की इन छोटे दुकान्दारों से आसपास के कानूनी तौर पर दुकानों में सामान बेचने वालों को काफी नुक्सान होता हैं क्योंकी सड़कों में बेचने वाले अपने सामानों को सस्ते में बेचते हैं।
तीसरी बात यह है की क्यों की ये लोग कानूनी तौर पर व्यापार और अपना धंधा नहीं चलाते हैं उनके व्यापार से सरकार को टैक्स के रुप में कोई भी किस्म की आमदनी नहीं होती हैं। और इस बात का खतरा रहता है की इनके द्वारा बेचे गये सामान खास करके खाने के सामान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं।
लेकिन तस्वीर का एक दूसरा रुख भी है जो हमें नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। समाज के इस वर्ग के लोग काफी गरीब होते हैं और अपने और अपने परिवार का पेट पालने के लिए उनके पास कमाई का कोई दूसरा जरिया भी नहीं है। वे किसी प्रकार की चोरी नहीं करते हैं और रोजी रोटी कमाते हैं और ऐसी चीजें बेचते हैं जो नियमित रुप से हम उपयोग करते हैं।
कई लोगों के लिए कानूनी तौर पर अपने व्यापार का पंजीकरण करना काफी मुशकिल ही नहीं असंभव होता है।
अगर उनके पास इतना पैसा होता की वे अपने व्यापार का पंजीकरण करें। अगर उनके पास इतना पैसा होता तो उनका समाज के सबसे पिछड़े वर्गों में गिन्ति नहीं होती। इसका मतलब ये नहीं है की सड़कों में सामान बेचने वालों पर कोई निगरानी न हो।
खाने पीने के सामान बेचने वालों पर काफी ध्यान देना चाहिए ताकि ऐसे जगहों से सामान खरीदेने वालों के स्वास्थ्य पर कोई भी खराब असर न पड़े।
जहां तक शहरों में बसने वालों का सवाल हैं अगर वे इन लोगों के जूतों में रह कर सोचेंगे और सहानुभूति दिखायेंगे तो तभी ही हमारा समाज एक संतुलित समाज की ओर बढ़ सकता है।
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