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(GMT+08:00) 2006-11-03 15:29:29    
विश्व फिल्म मंच की ओर बढ़ने वाला सिन्चांग फिल्म निर्देशक –शिरजाटी

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चीन के सिन्चांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश के खूबसूरत प्राकृतिक सौंदर्य , अद्भुत जातीय रीति रिवाज तथा रंगबिरंगी संस्कृति हमेशा फिल्म व टीवी धारावाहिक निर्माण दलों को आकृष्ट करते हैं । पूर्व व पश्चिम के सांस्कृतिक संगम वाली इस भूमि पर सिन्चांग के स्थानीय फिल्म निर्देशकों ने भी स्थानीय अल्पसंख्यक जातियों के जीवन व संस्कृति पर अच्छी अच्छी फिल्में बनायी हैं , जिस पर देश विदेश के दर्शकों की तीव्र प्रतिक्रियाएं हुईं । इन निर्देशकों में सिन्चांग के थ्येनशान फिल्म स्टुडियो के निर्देशक श्री शिरजाटी उल्लेखनीय है ।

इस साल के मई माह में सिन्चांग की फिल्म तुरूफान का प्रीति गीत चीनी राष्ट्रीय फिल्म टीवी प्रसारण ब्यूरो द्वारा फ्रांस के गाना फिल्मोत्सव में भाग लेने के लिए चुनी गई तीन चीनी भाषी फिल्मों में शामिल की गई। तुरूफान का प्रीति गीत नामक फिल्म में सिन्चांग के तुरूफान बेसिन में आबाद एक गांव के मुखिया के तीन बेटे बेटियों की प्रेम कथा बतायी गई है । इस फिल्म में पार्श्व गान के रूप में सिन्चांग के कई मशहूर प्रेम गीत शामिल हुए हैं , जिन में चीन में अत्याधिक लोकप्रिय वेवूर गीत तुम बुर्का उठाओ भी है । इन अल्पसंख्यक जातीय गीतों में गाढ़ी स्थानीय विशेषता व पहचान झलकी है। यह विश्वविख्यात अन्तरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव में भाग लेने के लिए चुनी गयी पहली सिन्चांग फिल्म है , जिस का निर्देशन श्री शिरजाटी ने किया।

श्री शिरजाटी फिल्म कालेज से स्नातक हुए थे , उन्हों ने तुरूफान का प्रीति गीत नामक फिल्म बना कर चीनी विदेशी दर्शकों को सिन्चांग की याद दिलायी , उन्हों ने कहा कि सिन्चांग की जातीय संस्कृति की तह तक पहुंचने वाली फिल्म ही विश्व की निगाह को खींच सकती है ।

सिन्चांग की अल्पसंख्यक जाति से जन्मे श्री शिरजाटी देखने में विद्वान की भांति सुशील दिखते हैं । उन के छोटा सा दफ्तर में पैसिल से खिंचे बहुत से रेखाचित्र रखे हुए है , वे रोज इस दफ्तर में सृजन का काम करते हैं , वे काम काज करने में हमेशा उन्मत रहते हैं । हमारे साथ बातचीत से पता चला है कि उन्हों ने अपने भावी काम पर साफ साफ योजना बनायी है । वे चाहते हैं कि वे हमेशा एक जवान भावना से फिल्म बनाने की कोशिश करते हैं और अच्छी अच्छी रचनाएं तैयार कर दर्शकों को पेश करेंगे ।

वर्ष 1963 में श्री शिरजाटी का ऊरूमुची के एक मजदूर परिवार में जन्म हुआ । पांच साल की उम्र में मां के साथ उन्हों ने चीनी फिल्म लाल लालटेंन की कहानी देखी , जिस में यह दर्शाया गया है कि 1930 के दशक में चीनी जनता ने किस तरह बहादुरी के साथ जापानी हमलारों के खिलाफ घोर संघर्ष किया , फिल्म के पात्रों की वीरता ने हमेशा शिरजाटी के मन पटल पर अमिट छाप छोड़ी । इस की चर्चा में उन्हों ने कहाः

मुझे बचपन में ही फिल्म देना पसंद था , खास कर लाल लालटेन की कहानी नामक फिल्म ज्यादा पसंद था , मैं ने इस फिल्म के विभिन्न पात्रों के चित्र भी खींचे और अपने सिर को मूंडा और मुंह पर नकली दाढी लगायी तथा मां से पूछा कि वह फिल्म के खलनायक जैसा लगता है या नहीं , जिस पर मां जी बड़ी खुशी में हंसते हंसते लोटपोट हो गयी । मौके का फायदा उठा कर मैं ने मां से मांगा कि कुछ पैसा दे दे , मैं दुबारा यह फिल्म देखना चाहता हूं ।

चित्रकला और फिल्म में गहरी जिज्ञासा रखने के कारण श्री शिरजाटी ने मिडिल स्कूल के बाद श्रेष्ठ अंक से पेइचिंग फिल्म कालेज में दाखिला पाया । वर्ष 1983 में उन के सहपाठी चांग ई मो अपनी निर्देशित दो फिल्मों से विश्व फिल्म क्षेत्र में एकाएक नामी हो गया । उन की इन दो फिल्मों से श्री शिरजाटी बहुत प्रभावित हो गये , उन्हों ने भी विश्व फिल्म क्षेत्र को अचंभे में डालने वाली फिल्म बनाने का संकल्प किया ।

पेइचिंग फिल्म कालेज से स्नातक होने के बाद श्री शिरजाटी सिन्चांग के थ्येन शान फिल्म स्टुडियो में ललित कला सहायक का पद संभाला । इस पर उन्हों ने कहाः

किताबी ज्ञान और अमली काम के बीच ज्यादा अन्तर होता है , अपने काम को बेहतर करने के लिए मैं ने नए सिरे से कोशिश करना शुरू किया । पहले दो सालों में मैं फिल्म स्टुडियो के ललित कला सहायक का काम करता रहा । वर्ष 1987 में थ्येनशान फिल्म स्टुडियो में चतुर मैमैटी की कहानी नामक फिल्म बनायी जा रही थी , लेकिन काम की शुरूआत में ही फिल्म के ललित कला डायरेक्टर ने कहा कि वे बीमार पड़े हैं और फिल्म का ललित कला काम मुझे पर सौंपा गया । मैं ने फिल्म निर्देशक के साथ फिल्म के लिए सीनों का सृजन करने का काम पूरा किया , तब तक भी मेरा गुरू जी यानी ललित कला डायरेक्टर नहीं लौटे , असल में उन्हों ने बीमार पड़ने का स्वांग किया था , उन का मकसद था कि मैं स्वतंत्र रूप से इस फिल्म का सभी ललित कला काम पूरा कर सकूं । मेरी कोशिश में फिल्म का ललित कला काम अच्छी तरह पूरा हो गया और यह फिल्म देश के सर्वोच्च फिल्म पुरस्कार यानी स्वर्ण मुर्गा पुरस्कार से सम्मानित की गयी ।

नब्बे वाले दशक के आरंभ में विदेशी फिल्मों की देश में लोकप्रियता जोर पकड़ने के कारण सिन्चांग की अल्पसंख्यक जातियों की स्थानीय फिल्मों की स्थिति बिगड़ने लगी । पहले थ्येन शान फिल्म स्टुडियो हर साल पांच छै फीचर फिल्म बनाती थी, लेकिन इस समय तक हर साल मात्र एक या दो बना लेती थी । फिल्म स्टुडियो के कुछ कर्मचारी भी सामाजिक स्थिति से प्रभावित हो कर फिल्म निर्माण व्यवसाय को छोड़ कर दूसरे व्यवसाय में जा लगे । लेकिन श्री शिरजाटी का विचार उन से अलग रहा । वे समझते है कि केवल सिन्चांग की अपनी स्थानीय फिल्म पर कायम रहने से ही अपना अच्छा केरियर बना सकते हैं । उन्हों ने अवकाश समय में सिन्चांग की अल्पसंख्यक जातियों की रीति रिवाज और सिन्चांग के प्राकृतिक सौंदर्य के बारे में टी वी विज्ञापन की फिल्में बनाना शुरू किया , ताकि आगे सिन्चांग की जातीय संस्कृति पर फिल्म बनाने के लिए अच्छा आधार बना सके । उन्हों ने कहाः

मैं ने इसलिए विज्ञापन की फिल्म बनाने का फैसला किया , क्योंकि इस से मैं फिल्म निर्देशक और कैमरामेन के काम पर अधिकार कर सकूंगा । मैं टी वी विज्ञापन को कला का रूप देना चाहता हूं । तीस चालीस सैकंड के विज्ञापन की फिल्म बनाने से फिल्म स्टुडियो को मुनाफा मिल सकता है , इस के साथ ही साथ मेरी कला सृजन की कार्यक्षमता भी उन्नत हो सकती है ।

श्री शिरजाटी की विज्ञापन फिल्मों में सिन्चांग की विशेष पहचान झलकती है , अनेक विज्ञापनों को पुरस्कार भी मिले । फलस्वरूप सिन्चांग के जातीय कारोबारों में वे सर्वमान्य हो गयी , बहुत से दूसरी जगहों के चीनी कारोबारों और कुछ विदेशी कारोबारों ने भी श्री शिरजाटी से विज्ञापन बनवाया । थ्येनशान फिल्म स्टुडियो के निदेशक श्री चांग यीकांग ने कहाः

श्री शिरजाटी द्वारा फिल्माया गया सिन्चांग के ईलीथ शराब का विज्ञापन बिलकुल एक नये दृष्टिकोण व कला की नई शैली से बनाया गया है , जिस ने सिन्चांग के टी वी विज्ञापन को एक नया रूप प्रदान किया । उन के अन्य सभी विज्ञापनों में भी सिन्चांग के मर्दाना पुरूषों , हृष्ठ पुष्ठ घोड़ों तथा अपार रेगिस्तान जैसे प्राकृतिक दृश्यों को प्राधानता दी गयी । उन के विज्ञापन के विषय और सीन दोनों सटीक चुने गए और फिल्म निर्माण की गुणवत्ता भी श्रेष्ठ है ।

बड़ी मात्रा में टीवी विज्ञापन बनाने से श्री शिरजाटी ने फिल्म बनाने का मजबूत आधार बनाया है । जब तुरूफान का प्रीति गीत नाम की फिल्म बनाने का काम शुरू हुआ , तो उन्हों ने सिन्चांग की अतीत की बहुत सी फिलमों के पुराने तर्ज को तोड़ दिया और एक पुरानी परम्परा से परे नए ढंग की सिन्चांग स्थानीय फिल्म का सृजन करने का संकल्प किया । थ्येन शान फिल्म स्टुडियो के निदेशक चांग यीकांग ने भी उन से कहा कि तुरूफान का प्रीति गीत फिल्म में सिन्चांग के स्थानीय संगीत और कला खजाने की प्रतिबिंब होनी चाहिए ।

वर्ष 2005 के अगस्त में तुरूफान बेसिन में तापमान 45 डिग्री तक जा पहुंचा । पौ फटने वाली वेली में डूबे तुरूफान गांव के शांत और संनाटा नजारा फिल्माने के लिए श्री शिरजाटी और उन के साथी आधी रात में ही गांव के बाहर बैठे सूर्योद्य का इंतजार करने लगे । तपती धूप के दोपहर को उन्हों ने अद्मय भावना और बड़े उत्साह का परिचय कर फिल्म के एक एक सीन बनाये ।

फिल्म दिखायी जाने के बाद बहुत से सिन्चांग अल्प संख्यक जातीय दर्शकों ने शिरजाटी के हाथों को थामते हुओ कहा कि आप हमें बहुत ही समझते हैं और आप की फिल्म में हमारे जेहन के भाव और हमारी सच्ची कहानी दिखायी गयी है । श्री शिरजाटी की नजर में संगीत , स्नेह और प्यार से भरी कहानी के जरिए लोगों का मनोभाव उजागर करना चीनी राष्ट्र का समान संपदा है । जातीय विशेषता वाली चीजें पूरे विश्व की हो सकती है ।