• हिन्दी सेवा• चाइना रेडियो इंटरनेशनल
China Radio International
चीन की खबरें
विश्व समाचार
  आर्थिक समाचार
  संस्कृति
  विज्ञान व तकनीक
  खेल
  समाज

कारोबार-व्यापार

खेल और खिलाडी

चीन की अल्पसंख्यक जाति

विज्ञान, शिक्षा व स्वास्थ्य

सांस्कृतिक जीवन
(GMT+08:00) 2006-10-30 15:11:53    
एशिया में कलात्मक आदान-प्रदान फला-फूला है

cri

 दोस्तो, 8वें एशियाई कला-उत्सव का कुछ समय पूर्व चीन की राजधानी पेइचिंग में पटाक्षेप हो गया। इस में एशियान के 10 सदस्य देशों,चीन,जापान और कोरिया-गणराज्य के कलाकारों ने अपने-अपने विशेष कार्यक्रम प्रस्तुत किए औऱ साथ ही संबंधित प्रदर्शनियों और ललित-कला संस्थाओं के महानिदेशकों के मंच का भी आयोजन किया गया। इस तरह इस कला-उत्सव की एशिया में कलात्मक आदान-प्रदान के अहम मंच के रूप में प्रशंसा की गई।

《एशियान वाह-वाह》नामक एक भव्य सांस्कृतिक समारोह के साथ 8वें एशियाई कला-उत्सव का उद्घाटन हुआ ।चीनी संगीत की किलकारियों वाली धुनों की ताल पर एशियान के 10 सदस्य देशों के कलाकार अपनी-अपनी राष्ट्रीय विशेषता वाले नृत्य करते हुए समारोह के हॉल में दाखिल हुए।

एशियाई कला-उत्सव चीन के प्रवर्तन में आयोजित होने वाला एक क्षेत्रीय कला-उत्सव है,जिस की शुरूआत सन् 1998 में हुई थी। इस उत्सव का लक्ष्य आपसी समझ बढाना,मैत्री को गहन करना, समान विकास करना और नयी उपलब्धियां प्राप्त करना है। एशिया के विभिन्न देशों की सरकारों ने इस उत्सव की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। उत्सव में करीब सभी एशियाई देशों की मूल्यवान परंपरागत संस्कृतियों और कलाओं को एक साथ बेजोड़ ढंग से प्रदर्शित किया जाता है। इसलिए एशियाई कलाकारों की नजर में यह उत्सव एशियाई कला का एक रंगबिरंगा उद्यान है।

अभी संपन्न हुए इस तरह के उत्सव का संयोजन चीनी संस्कृति मंत्रालय के अधीन चीनी वैदेशिक सांस्कृतिक ग्रुप-कंपनी ने किया। इस कंपनी के मैनेजर श्री चांग-य्वी मानते हैं कि बीते वर्षों में आयोजित हुए 7 एशियाई कला-उत्सवों के मुकाबले पैमाने या विषय की दृष्टि से इस उत्सव में नयापन आया है। उन्हों ने कहाः

"पुराने एशियाई कला-उत्सवों में मुख्यतः सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते थे। लेकिन अभी समाप्त हुए कला-उत्सव में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अलावा,डिजाइन-कला के प्रदर्शन और संस्कृति व कला से जुड़े सवालों पर मंच भी शामिल किए गए हैं। इस से चीन और अन्य एशियाई देशों खासकर एशियान के 10 सदस्य देशों के बीच सांस्कृतिक व कलात्मक सहयोग एक नयी मंजिल पर पहुंच गया है। "

श्री चांग-य्वी ने कहा कि एशिया के मुख्य देशों के कलाकारों ने उत्सव के दौरान श्रेष्ठ कार्यक्रम प्रस्तुत किए हैं। चाहे चीन के कलाकार हों या एशियान के 10 सदस्य देशों के कलाकार,सब के सब मानते हैं कि इस उत्सव ने अब तक के अपने सब से बड़े आकर्षण को दर्शकों के सामने पेश किया है।

सांस्कृतिक आदान-प्रदान और विभिन्न सभ्यताओं के बीच वार्तालाप से एशिया यहां तक कि विश्व में एक दूसरे की संस्कृति की समझ को बढाना भी एशियाई कला-उत्सव का एक उद्देश्य है। चालू वर्ष चीन और एशियान के बीच वार्ता-संबंध की स्थापना की 15वीं वर्षगांठ है। इसलिए एशियान का सांस्कृतिक सप्ताह इस कला-उत्सव का एक मुख्य आयोजन बन गया है।

मंच पर प्राचीन वास्तुशैली में निर्मित एक बड़ा जल-जहाज रखा हुआ दिखाई देता है,जिस पर बैठे कई कलाकार म्यामार के तरह-तरह के परंपरागत वाद्ययंत्रों से कर्ण-प्रिय संगीत बजा रहे हैं। यह संगीत सुनते हुए दर्शकों को रहस्यमय म्यामार में प्रविष्ट होने का एहसास होता है।

उत्सव के दौरान ब्रुनेई और लाओस आदि देशों के कलाकारों ने अपने-अपने विशेष परंपरागत वाद्ययंत्रों से विभिन्न शैलियों के लोक संगीत पेश किए। थाईलैंड और कंबोडिया के कलाकारों ने लोक नृत्य प्रस्तुत किए।कंबोडियाई कलाकार सुश्री छिम नालिने ने कहा कि उन्हें इस कला-उत्सव में भाग लेने पर बड़ी प्रसन्नता हुई है। उन का कहना हैः

"इस तरह के उत्सव का आयोजन बहुत अच्छा है। इस में चीन ने नेतृत्वकारी भूमिका निभाई है। इस आयोजन के माध्यम से एशिया के विभिन्न देशों के लोग एक दूसरे के करीब आ सकते हैं और एक दूसरे की खूबियां सीख सकते है। "

8वें एशियाई कला-उत्सव में आधुनिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति को विशेष स्थान दिया गया ,ताकि दर्शकों और कलाकारों को एशियाई देशों में कला के विकास की नयी दिशाएं जानने का मौका मिले। इंडोनेशिया और वियतनाम के सब से लोकप्रिय स्टार गायकों व गायिकाओं,सिगांपुर और मलेशिया की सर्वोच्च आधुनिक नृत्यमंडलियों तथा फिलिपीन्स की मशहूर बेले-नृत्य मंडली ने भी इस कला-उत्सव में भाग लिया। फिलिपीन्स के नृत्यकार श्री गेराल्डो फ्रानसिस्को ने कहाः

" हम बहुत खुश हैं कि हमें चीन में इतने दर्शकों के सामने कार्यक्रम प्रस्तुत करने का मौका मिला है। हम फिलिपीन्स की सरकार और जनता की ओर से यहां आए हैं। यहां एशिया के अनेक देशों के कलाकारों को इस मंच के माध्यम से आपस में आदान-प्रदान करने और एक दूसरे से मैत्री करने का महत्वपूर्ण अवसर मिला है।"

इस कला-उत्सव के दौरान प्रस्तुत सांस्कृतिक कार्यक्रमों की बड़ी तारीफ़ हुई, साथ ही एशियाई ललित-कला संस्थाओं के महानिदेशकों का प्रथम सम्मेलन भी बहुत ध्यानाकर्षक रहा। एशियान के 10 सदस्य देशों,चीन,जापान,कोरिया-गणराज्य,भारत,बांग्लादेश आदि 15 देशों

के राजकीय ललितकला संस्थाओं के महानिदेशकों और दक्षिण-पूर्वी ललितकला का अनुसंधान करने वाले चीनी विद्वानों ने इकठ्ठे होकर इन संस्थाओं के संग्रहण,प्रदर्शन और अनुसंधान जैसे क्षेत्रों में मौजूद समस्याओं पर विचार-विमर्श किया।चीनी ललितकला-भवन के महानिदेशक श्री फ़ान ती-आन ने कहा कि इस सम्मेलन का आयोजन एशियाई ललितकला जगत में सहयोग का एक प्रतीक है और एक सुअवसर भी।उन का कहना हैः

"एशिया के विभिन्न देशों में ललितकला के संसाधन काफी समृद्ध है।लेकिन अतीत में आदान-प्रदान के एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में ललितकला संस्थाओं की भूमिका के विकास को महत्व नहीं दिए जाने की वजह से इन संसाधनों के लाभ को विभिन्न एशियाई देशों की जनता तक नहीं पहुंचाया जा सका है। ललितकला जगत के इस सम्मेलन की व्यवस्था क्षेत्रीय,द्विपक्षीय और बहुपक्षीय आदान-प्रदान का रास्ता सुगम करेगी। एशिया में ललितकला के संसाधनों को जनता में बराबरी से बांटना हमारी अभिलाषा रहा है।"

इस कला-उत्सव के दौरान एशियान की कला-प्रदर्शनी भी लगाई गई है। प्रदर्शनी 10 कक्षों में विभाजित की गई। सभी 10 सदस्य देशों के पास अपना-अपना एक कक्ष था। प्रदर्शित वस्तुओं की संख्या 500 से ज्यादा थी,जिन में सोने-चांदी की चीजें,चीनी मिट्टी के बर्तन,रोगन वाली वस्तुएं,वेश-भूषाएं, कसीदा वाले कपड़े, काष्ठ मूर्तियां, मुखौटे और बुनाई वाली खिलौने आदि शामिल थे। इस वस्तुओं से एशियान के विभिन्न देशों की संस्कृतियों व कलाओं की विशिष्टता और विविधता जाहिर हुई है। साथ ही इन के सामने दर्शकों को विभिन्न एशियाई संस्कृतियों की समानता भी देखने को मिली है।

चीन और इस कला-उत्सव में प्रतिनिधि भेजने वाले देश यह भी समझ गए हैं कि संस्कृति और मानव-संसाधन का विकास करना इस समय सभी देशों का समान मुद्दा है। इसलिए मौजूदा संसाधनों का कारगर ढंग से इस्तेमाल किया जाना चाहिए और संसाधनों के दोहन,संरक्षण व विकास से जुड़े कार्यों में तालमेल बिठाया जाना चाहिए,ताकि संस्कृति आर्थिक विकास की नयी प्रेरक शक्ति बन सके और सांस्कृतिक अवशेषों के संरक्षण को और अधिक सकारात्मक व व्यावहारिक उपाय दिए जा सकें।