आज की डाक-सभा में सीमापुरी दिल्ली के अनिल सिंह, कोआथ बिहार के सुनील केशरी,
सीताराम केशरी,किशोर कुमार केशरी,प्रियंका केशरी,बविता केशरी,डीडी साहिबा और संजय केशरी, हिसार हरियाणा के रामचन्द्र गहलौत और रामपुरफुल पंजाब के बलवीर सिंह,
बिलासपुर छत्तीसगढ के चुन्नी लाल कैवर्त और बांदा उत्तर-प्रदेश के संतोष कुमार सोनी के पत्र शामिल हैं।
सीमापुरी दिल्ली के अनिल सिंह पूछते हैं कि क्या चीन में भी शोध-कार्य में दोहराव की बात है ? क्या यह बात सही है?
मित्रो,चीन में अनुसंधान-कार्य में दोहराव की बात जरूर है,पर यह सरल दोहराव की बात नहीं है,बल्कि इस में नयापन होने की जरूरत है। आप जरूर जानते हैं कि दुनिया में बहुत से विशेषज्ञों औऱ विद्वानों ने अपने अध्य़ापकों की अनुसंधान-उपलब्धियों के आधार पर अपने शोध-कार्य में कामयाबियां हासिल कीं। इस दोहराव में शोधकर्ताओं की अपनी विशेषताएं होनी चाहिए।
अनुसंधान आविष्कार नहीं है। लेकिन इस का उद्देश्य है,ज्ञान में वृद्धि करना। कैसे वृद्धि हो इस के लिए जरूरी नहीं है कि किसी विषय पर हो चुके शोध को फिर से नहीं किया जा सकता है। निश्चत तौर पर इस से भी नयी चीजें नए रूप में सामने आएंगी। इसलिए दोहराव को लेकर गलत या सही बात की बात करने का कोई औचित्य नहीं है। एक चीनी विशेषज्ञ का मानना है कि शोध में आम तौर पर तीन बातों का ध्यान रखना पड़ता है। पहला यह कि किस जर्नल में प्रकाशित हो रहा है, दूसरा उस का प्रभाव कितना है और तीसरा उस की व्यावहारिक उपयोगिता कितनी है ? इस तरह इन बातों पर ध्यान देकर शोध में सुधार और प्रगति लाई जा सकती है। यह उम्मीद रखना कि कुछ ऐसा शोध हो जिस से हम स्टार बन जाएं,चर्चा में आ जाएं या उथल-पुथल मच जाए,इतना आसान नहीं होता।
कोआथ बिहार के सुनिल केशरी,सीताराम केशरी,किशोर कुमार केशरी,प्रियंका केशरी,
बविता केशरी,डीडी साहिबा और संजय केशरी का सवाल है कि चीन के किस क्षेत्र में सब से अधिक जड़ी-बूटी का उत्पादन होता है ?
दक्षिण पश्चिमी चीन के क्वेचो प्रांत में वन्य जीवों व पेड़-पौधों की भरमार है। वन्य जीवों की किस्में 3800 से अधिक हैं और वनस्पत्तियों की किस्में 3700 से ऊपर हैं,जिन का अधिकांश हिस्सा जड़ी-बूटियों के काम आता है। कहा जा सकता है कि चीन में जडी-बूटियों का 80 प्रतिशत क्वेचो प्रांत से आता है। चीन में जड़ी-बूटियों की पैदावार वाले 4 प्रमुख क्षेत्रों मे यह प्रांत पहले पायदान पर है। उस में पायी जाने वाली जड़ी-बूटियों में से कोई 70 किस्में विश्व में दुर्लभ और बेशकीमत मानी जाती हैं।
हिसार हरियाणा के रामचन्द्र गहलौत जानना चाहते हैं कि चीन सरकार ने वन्य जीवों की रक्षा के लिए कौन-कौन से कानून बनाए हैं ?
चीन सरकार ने पिछली शताब्दी के 80 वाले दशक के अंत में ही वन्य जीवों की रक्षा के लिए विशेष कानून बनाया था। मार्च 2000 में राष्ट्रीय वानिकी मंत्रालय ने गहन अध्ययन के आधार पर इस कानून में सुधार किया है। इस से वह तेजी से हो रहे आर्थिक विकास और संबंधित अंतरराष्ट्रीय कानूनों से अधिक मेल खाने लगा है। सूत्रों के अनुसार चीनी संसद यानी चीनी राष्ट्रीय जन प्रतिनिधि सभा की स्थाई समिति में चीन लोक गणराज्य के वन्य जीवों के संरक्षण-कानून में नए संशोधन की रूपरेखा पर विचार-विमर्श हो रहा है।
चीन वन्य जीवों की रक्षा में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को महत्व देता रहा है। वर्ष 1980 में ही चीन लुप्तप्राय वन्य जीवों व वनस्पत्तियों से जुड़ी अंतरराष्ट्रीय व्यापार संधि का सदस्य बन गया था। इस संधि का मुख्य विषय देशों के बीच वन्य जीवों व वनस्पत्तियों तथा उन के उत्पादों का आयात-निर्यात है। संधि की तीन पूरक सूचियां हैं। पहली में उन वन्य जीवों व वनस्पत्तियों के नाम हैं,जिन के व्यापार पर पाबंदी है। दूसरी उन वन्य जीवों व वनस्पत्तियों की नामसूची है,जिन के सीमित व्यापार की छूट है और तीसरी उन वन्य जीवों व वनस्पत्तियों की नामसूची है,जिन की रक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग की जरूरत है।
चीन ने सन् 1992 में अंतरराष्ट्रीय जैविक विविधता संधि पर हस्ताक्षर किए। यह संधि जैविक विविधता और जैविक आनुवंशिक संसाधनों की रक्षा करती है। इस के अलावा चीन ने कछार की रक्षा और व्हेल मछली के शिकार पर पाबंदी संबंधी अंतरराष्ट्रीय संधियों में भी भाग लिया। उल्लेखनीय है कि चीन ने जापान और आस्ट्रेलिया के साथ प्रवासी पक्षियों के संरक्षण के लिए भी समझौते संपन्न किए हैं।
रामपुरफुल पंजाब के बलवीर सिंह पूछते हैं कि कि क्या चीन में धर्म को राजनीति से अलग रखा जाता हैं?
चीन में धर्म हमेशा से राजनीति से अलग रहा है। इस समय चीन कम्युनिस्ट पार्टी की अगुवाई में एक बहुदलीय व्यवस्था वाला देश है। इस मे नागरिकों को धार्मिक विश्वास की पूरी स्वतंत्रता है,लेकिन धार्मिक जगत के लोग आम तौर पर देश की राजनीतिक गतिविधियों में भाग नहीं लेते हैं।

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