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(GMT+08:00) 2006-10-24 11:10:16    
कौन अफ्रीका में नया उपनिवेशवाद कर रहा है?

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इधर के कुछ समय में चीन द्वारा अफ्रीका में नया उपनिवेशवाद किए जाने के बयान अमरीका के न्यूयार्क टाइम्स और ब्रिटेन के फ़िनानशिल जैसे प्रमुख पश्चिमी समाचार-पत्रों में छपे हुए हैं।कुछ पश्चिमी देशों के सरकारी अधिकारी और सलाहकार भी चीन-अफ्रीका संबंधों की आचोलना से बाज नहीं आए हैं।पश्चिमी देशों ने क्यों चीन-अफ्रीका संबंधों को चढा-बढाकर चीन पर अफ्रीका में नया उपनिवेशवाद करने का आरोप लगाया है? चीनी सामाजिक विज्ञान अकादमी के अफ्रीका मामला अनुसंधान-कार्यालय की प्रधान सुश्री ह वन-फिन ने कहा कि कई पश्चिमी देशों ने इसलिए चीन पर आरोप लगाया है क्योंकि उन का मानना है कि चीन-अफ्रीका सहयोग से अफ्रीका में उन के पुराने अधिकारों व हितों को नुकसान पहुंचा है।सुश्री ह ने कहाः

"चीन और अफ्रीका के बीच आर्थिक व व्यापारिक संपर्क इधर के कुछ वर्षों में काफी तेजी से विकसित हुआ है।अतीत में पश्चिमी देशों की बड़ी तेल कंपनियों,उन की राजनीति, अर्थतंत्र और सैन्य शक्ति का अफ्रीका पर भारी प्रभाव पड़ता था।इसलिए आज जब उन्हों ने चीन की बड़ी स्पर्द्धा-शक्ति को देखा,तो उन्हें जरूर बेचैन लगा है और अपने पुराने हितों को खोने की आशंका है"

सुश्री ह वन-फिन ने कहा कि चीन द्वारा अफ्रीका में नया उपनिवेशवाद किए जाने का बयान सरासर बेबुनियाद है।इतिहास को देखें,तो चीन और अफ्रीका के बीच कभी उपनिवेशवादी संबंध नहीं है।चीन और अफ्रीका दोनों को उपनिवेशवादी आक्रमण की पीड़ा झेलने का समान अनुभव है।अफ्रीका में पश्चिमी देशों की हरकतों को देखें,तो यह स्पष्ट हो सकता है कि आखिरकार कौन उपनिवेशवाद कर रहा है।

सुश्री ह के अनुसार पश्चिमी देशों ने चीन द्वारा अफ्रीका में नया उपनिवेशवाद किए जाने का दावा इसलिए किया,क्योंकि वह वास्तव में चीन पर अफ्रीका में ऊर्जा छीनने का आरोप लगाना चाहते हैं।सर्वविदित है कि चीन के अफ्रीका जाने से पहले ही पश्चिमी देशों ने वहां के ऊर्जा का लूट-पाट के रूप में दोहन शुरु किया था।जब कि अब भी उन की बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों की वहां के ऊर्जा-क्षेत्र में भारी निवेश की गतिविधियां चल रही हैं।अफ्रीका से उन देशों तक तेल की आपूर्ति कभी बन्द हुई है।इस समय चीन द्वारा अफ्रीका से तेल का आयात अमरीका द्वारा वहां से किए जाने वाले तेल के आयात के एक तिहाई से भी कम है।गौरतलब है कि पश्चिमी देशों द्वारा अफ्रीका में तेल का दोहन लूट-खसोट के रूप में हो रहा है।फलस्वरूप वहां का पर्यावरण गंभीर रूप से दूषित हो गया है और स्थानीय लोगों व तेल-कंपनियों के बीच अंतरविरोध प्रचंड हो गए हैं।इधर चीन अफ्रीका में तेल का विकास करने के दौरान आपसी सहयोग की नीति अपना रहा है।सुश्री ह वन-फिन का कहना हैः

"अफ्रीकी देशों को तेज-शोधन की पूर्ण व्यवस्था कायम करने में मदद देने का चीन का लक्ष्य उन देशों को संसाधनों की वरीयता को अर्थतंत्र के अनवरत विकास में बदलने की उन की क्ष्मता बढाने में मदद देना है।इस के अलावा चीन स्थानीय जन-जीवन संबंधी परियोजनाओं को भी अहमियत देता है।अफ्रीका में चीन ने हालांकि कई तेल-क्षेत्रों के दोहन का अधिकार प्राप्त किया है,लेकिन साथ ही चीन ने वहां ढांचागत संस्थापनों के निर्माण में भी 4 अरब अमरीकी डालर की सहायता दी।चीन उभय जीत का पक्ष लेता है और खुद द्वारा लाभ प्राप्त करने के साथ साथ अफ्रीकी देशों को लाभ हासिल करवाने की कोशिश भी कर रहा है।"

चीन के सस्ते औद्योगिक उत्पादों के अफ्रीकी बाजार में धड़ल्ले से पलायन के बारे में पश्चिमी देशों के बयानों की चर्चा करते हुए सुश्री ह वन-फिन ने माना कि अफ्रीकी बाजार सचमुच चीनी उत्पादों से पटा हुआ है।मगर यह भूमंडलीकरण का एक अनिवार्य नतीजा है और उस का भी सकारात्मक पहलु है। सुश्री ह ने कहाः

"चीन के उच्च गुणवत्ता वाले सस्ते औद्योगिक उत्पादों ने अफ्रीकी जनता को हर तरह की सुविधाएं उपलब्ध कराई हैं और प्रत्य़क्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उन के जीवन-स्तर व खरीददारी की शक्ति उनन्त की है।चीन के साथ व्यापार में बड़ा इज़ाफा करने से अफ्रीकी देशों की आर्थिक वृद्धि-दर 6 फीसदी तक जा पहुंच पाई है।चीनी प्रधान मंत्री वन चा-पाओ ने अपनी पिछली अफ्रीका-यात्रा के समय अफ्रीका में चीनी टाक्सटाइल वस्तुओं के आयात पर नियंत्रण करने की घोषणा की।इस से जाहिर है कि चीन अफ्रीकी टाक्सटाइल वस्तुओं का ख्याल रखता है।"

पश्चिमी देशों के इस विचार कि चीन अफ्रीका की मदद करने के मौके का बेजाफायदा उठाकर वहां अपने विकास के फार्मूले का प्रचार-प्रसार कर रहा है, के बारे में सुश्री ह वन-फिन ने यह मत व्यक्त कियाः

"चीन की वैदेशिक नीति दूसरे देशों के अन्दरूनी मामलों में अहस्तक्षेप की है।चीन हमेशा से अफ्रीकी देशों द्वारा खुद अपने विकास का रास्ता चुनने का समादर करता रहा है और कभी अफ्रीकी देशों में अपने मूल्य-अवधारणा और विकास-फार्मूले का निर्यात करना नहीं चाहता।अफ्रीका में पश्चिमी देशों की हरकतें तो बेहद ध्यानाकर्षक हैं।शीत-युद्ध के बाद पश्चिमी देशों ने ही अफ्रीका में अपने बहुदलीय लोकतंत्र के फार्मूले का ढिंढोरा पीटने और सहायता को लोकतंत्र से जोड़ने की पुरजोर कोशिश की है।"