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(GMT+08:00) 2006-10-26 16:37:27    
एक भारतीय परिवार का चीन के प्रति प्यार

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चीन और भारत विश्व के चार प्राचीन सभ्यता वाले देशों में से एक हैं । दोनों देशों की संस्कृति का इतिहास बहुत पुराना है । हज़ारों वर्षों में एशिया के इन दो प्राचीन देशों के बीच आवाजाही बरकरार रही है। भारत में कुछ ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्हें चीनी भाषा आती है, जो चीन का अनुसंधान करते हैं, चीन की जानकारी से भारतीयों को परिचित कराते हैं और चीन-भारत के सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए चुपचाप से योगदान में लगे हुए हैं । श्री मानिक और उन की पत्नि भी एक ऐसे ही दंपति हैं। आज के इस कार्यक्रम में मैं आप को परिचय दूंगी इस दंपति के चीन के प्रति गहरे प्यार का।

भारत की राजधानी नयी दिल्ली स्थित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय एक सुन्दर स्थल है । कैंपस में हर जगह हरे-भरे पेड़ और रंगबिरंगे खिले हुए फूल देखे जा सकते हैं । सुन्दर मोर कैंपस में आराम से घूमते हैं और गिलहरियां इधर-उधर दौड़ती रहती हैं, लोगों के आने-जाने से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता । आकाश मं चीड़ियां स्वतंत्र रूप से उड़ती हैं और कू-कू ची-ची की आवाज़ से वातावरण गूंजता रहता है……नेहरू विश्वविद्यालय एक सुन्दर पार्क की तरह लोगों को लुभाता है, श्री मानिक का परिवार यहीं रहता है ।

श्री मानिक नेहरू विश्वविद्यालय के चीनी भाषा विभाग के प्रोफेसर हैं। उन की पत्नि सुश्री मंजुशा आकाशवाणी के चीनी भाषा-विभाग की निदेशक हैं । गत शताब्दी के सत्तर वाले दशक में पति-पत्नि ने चीनी भाषा सीखना और चीनियों के साथ संपर्क करना शुरू किया, इस के बाद चीन में पढ़ने गए और यात्रा की । तब से लेकर अब तक लगभग 30 वर्ष बीत चुके हैं। प्रोफेसर मानिक ने कहा कि वे चीनी भाषा सीखने के बाद अपनी पत्नि से परिचित हुए, और चीनी भाषा ही उन के प्रेम का माध्यम है । उन्होंने कहा," हम नेहरू विश्वविद्यालय में एक ही कक्षा में चीनी भाषा सीखते थे। बीस से ज्यादा वर्षों से हम चीनी भाषा के लिए काम कर रहे हैं ।"

सुश्री मंजुशा ने खुशी के साथ हमें बताया कि उन का एक बहुत सुन्दर चीनी नाम है, वह है मङ छ्यो शा, यह नाम एक प्राचीन चीनी कविता से लिया गया है, चीनी भाषा सीखने के बाद उन्हें चीनी संस्कृति पसंद आने लगी और इस तरह वे इस नाम को बहुत पसंद करती हैं ।

श्री मानिक के घर में प्रवेश करके हमें एकदम चीनी वातावरण महसूस हुआ । बैठक की एक दीवार पर प्राचीन चीनी शिक्षक कंफ्यूशियस का चित्र लगा हुआ है और दूसरी दीवार पर एक प्राचीनी चीनी व्यक्ति का चित्र है। उन की किताबों की अलमारी में चीनी भाषा की पुस्तकें भरी हुई हैं और कई सुन्दर चीनी कलात्मक वस्तुएं भी वहां रखी हुई हैं। उन की बैठक में प्रवेश करके हमें लगता है कि मानो हम एक प्राचीन चीनी घर में आ गए हों , लेकिन टी.वी. के सामने एक डी.वी.वी. मशीन आधुनिक वातावरण का एहसास कराती है ।

श्री मानिक ने कहा कि परिवार के सभी सदस्यों को चीन बहुत पसंद है । भारतीय विद्यार्थियों को चीनी भाषा सिखाना, ज्यादा से ज्यादा भारतीयों को चीन की जानकारी देना उन का कर्तव्य है । उन्होंने कहा,"वर्तमान में चीनी संस्कृति के बारे में भारतीय युवाओं को कम जानकारी है । चीनी भाषा सीखने के बाद वे धीरे-धीरे चीनी सांस्कृतिक परम्परा को समझ सकते हैं ।"

श्री मानिक चीनी संस्कृति को भारतीय विद्यार्थियों को परिचित कराते हैं, जबकि उन की पत्नि सुश्री मंजुशा आकाशवाणी के चीनी भाषा-विभाग में काम करती हैं, वे चीनी भाषा का प्रयोग कर चीनी लोगों को भारतीय संस्कृति का परिचित देती हैं । सुश्री मंजुशा ने कहा कि भारतीय संस्कृति और चीनी संस्कृति दोनों महान हैं । रेडियो के जरिए वे रहस्यमय भारत को चीनी श्रोताओं तक पहुंचाती हैं, जिस से ज्यादा से ज्यादा चीनी लोग भारत की जानकारी ले सकें । अपने काम के प्रति सुश्रा मंजुशा ने संतोष व्यक्त किया और कहा,"हमें चीनी श्रोताओं के बहुत ज्यादा पत्र प्राप्त होते हैं । आम तौर पर चीनी श्रोता हिन्दी गीत पसंद करते हैं और भारतीय संगीत भी । अनेक चीनी श्रोता भारत के गांवों की जानकारी लेना चाहते हैं और अनेक भारत के विकास की जानकारी । मुझे लगता है कि मैं यहां से हर दिन चीनी लोगों से बातचीत करती हूं और यह बहुत खुशी की बात है ।"

श्री मानिक और उन की पत्नि कभी-कभार चीन की यात्रा भी करते हैं, उन्हें चीनी खाना पसंद है । चीन में कई बार जाने से उन्होंने चीनी दोस्तों से चीनी खाना पकाना सीखा है और चीनी खाना पकाने का अभ्यास करते हैं । सुश्री मंजुशा ने मुझे रसोई घर में अपने मुल्यवान साधन दिखाए, उन्होंने कहा कि उन के रसोई घर में चीनी खाना पकाने का अनेक साज-सामान है, जिसे भारत में कहीं नहीं खरीदा जा सकता । उन्होंने कहा कि चीन की हर यात्रा के दौरान पति और पत्नि रसोई घर के लिए कुछ न कुछ सामान खरीद कर ले आते हैं , भारत वापस लौटने के बाद वे कभी-कभी चीनी खाना पकाते हैं और खुद खाते हैं । हर हफ्ते घर में दो या तीन बार चीनी खाना पकाया जाता है । उन की बात सुनकर मेरे दिमाग में एकदम ऐसा चित्र सामने आया: एक भारतीय दंपति रसोई घर में चीनी खाना पकाते हैं, वे कभी-कभार चीनी भाषा का प्रयोग कर बातचीत करते हैं , कभी-कभार हिन्दी का प्रयोग, उन के पास खड़ा होता है उन का प्यारा बेटा, जो चीनी पकवान खाने की जिज्ञासा में है ।

श्री मानिक का बेटा महेश दिल्ली विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग का विद्यार्थी है। उस ने हमें बताया कि घर में माता-पिता कभी-कभी चीनी भाषा में बातचीत करते हैं । वे खुद चीनी भाषा नहीं जानने के कारण आम तौर पर माता-पिता की बात को समझ नहीं पाता है। लेकिन अपने माता-पिता के काम को लेकर महेश को गर्व है । उसने कहा ,"वे बहुत मेहनत से काम करते हैं और उन्होंने अपना सारा जीवन चीनी भाषा के कार्य में लगाया है। उन के प्रभाव से मैं भी चीनी संस्कृति को जान पाया हूं और इसे पसंद करता हूं। मेरी आशा है कि एक दिन चीन की यात्रा करूंगा । चीनी भाषा बहुत कठिन है, लेकिन में इसे सीखने की कोशिश करूंगा।"

श्री मानिक और उन की पत्नि की आशा है कि उन का बेटा भी चीनी भाषा सीखेगा । उन्होंने हमें बताया कि चीनी भाषा न सीखने के बावजूद अपने माता-पिता के प्रभाव से चीन के प्रति बेटे में गहरी भावना पैदा हुई है। सुश्री मंजुशा ने कहा ,"मेरे बेटे की आशा है कि भविष्य में वह चीनी भाषा सीखेगा । क्योंकि घर में माता-पिता चीनी भाषा का प्रयोग कर बातचीत करते हैं, इस का उस पर किसी न किसी रुप में प्रभाव पड़ा है । अगर चीन के बारे में उसे कहीं अंग्रेजी सामग्री दिखाई पड़ती है, तो वह हमें ज़रूर बताता है । "

श्री मानिक ने बताया कि नेहरू विश्वविद्यालय में चीनी भाषा सीखने के साथ-साथ वे चीनी संस्कृति के अनुसंधान में भी लगे हुए हैं । उन का विचार है कि चीन और भारत की पुरानी सांस्कृतिक परम्पराए हैं , दोनों पक्षों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान में नयी जीवनी शक्ति का संचार किया जाना चाहिए । इस तरह दोनों देश परम्परागत आधार पर और ऊंची मंजिल पर पहुंच सकते हैं । उन का कहना है ,"20 से ज्यादा सालों से मैं चीनी संस्कृति का अध्ययन कर रहा हूँ। मैं ने बहुत कुछ सीखा है। मेरा विचार है कि सांस्कृतिक परम्परा कभी-कभार सामाजिक प्रगति में बाधा भी बनती है । हमें सांस्कृतिक परम्परागत आधार को मज़बूत करने के साथ-साथ इस में नए विषयों को शामिल करते रहना चाहिए । चीन और भारत का तीन हज़ार वर्षो का पुराना इतिहास व संस्कृति है, जो बहुत विविधतापूर्ण है । मुझे लगता है कि संस्कृति के सकारात्मक पक्ष को हमें स्वीकार करना चाहिए, जबकि नकारात्मक भाग को छोड़ दिया जाना चाहिए । अपनी परम्परागत संस्कृति का प्रयोग कर आधुनिक समाज का सुधार करना सब से महत्वपूर्ण है ।"

श्री मानिक ने कहा कि चीन उन का और उन की पत्नि का दूसरा जन्मस्थान है । इस लिए घर में वे चीन से संबंधित खबरों पर ध्यान देते हैं । चीनी भाषा सीखने और चीन से संबंधित अनुसंधान करने के कारण उन के परिवार का चीन के साथ घनिष्ठ संबंध है । उन के दिल में चीन के प्रति प्यार है , इस लिए पति-पत्नि चीन और भारत की मैत्री को आगे बढ़ाने के लिए अपना योगदान करने को तैयार हैं। चीनी भाषा विभाग के अध्यापक के रूप में वे ज्यादा से ज्यादा भारतीय युवाओं को पढ़ाना चाहते हैं, उन की आशा है कि उन की कोशिशों के जरिए ज्यादा से ज्यादा भारतीय युवा चीन की जानकारी प्राप्त करेंगे, ताकि चीन और भारत दोनों प्राचीन सभ्यता वाले देशों के युवाओं के बीच दूरी को कम किया जा सके । उन्होंने कहा कि वे अपना सारा जीवन इस के लिए काम करने को तैयार हैं ।