कुछ समय पूर्व चीन की राजधानी पेइचिंग में स्थित चीनी ललितकला भवन में एशियाई ललितकला संस्थाओं के महानिदेशकों का सम्मेलन आयोजित हुआ। यह एशिया में इस तरह का प्रथम सम्मेलन था,जिस में 15 एशियाई देशों की करीब 50 ललितकला संस्थाओं के महानिदेशक और प्रतिनिधियों ने अपनी इन संस्थाओं की वर्तमान स्थिति व भावी विकास पर विचारों का आदान-प्रदान किया।
चीनी ललितकला भवन में इस सम्मेलन में चीन के अलावा जापान,कोरिया-गणराज्य,
एशियान के 10 सदस्य देशों और भारत व बांग्लादेश आदि 15 देशों की ललितकला संस्थाओं के महानिदेशकों ने भाग लिया।हांगकांग,मकाओ और थाइवान के ललितकला के अनेक मशहूर शोर्धकर्ता भी इस में उपस्थित हुए। चीनी संस्कृति मंत्री श्री सुन चा-जंग ने उद्घाटन-समारोह में कहा कि एशिया के विभिन्न देशों की संस्कृति रंगबिरंगी औऱ समृद्ध है। वैश्विकरण के चलते इन देशों में और एशिया व विश्व के अन्य क्षेत्रों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान बढ रहा है। ऐसे में विभिन्न संस्कृतियों ने एक दूसरे की खूबियों को ग्रहण किया है। परिणामस्वरूप विश्व में एशियाई संस्कृति व कला की अपनी पहचान बहुत बढ गई है। उन्हों ने कहाः
"नए युग में कदम रखने के बाद संस्कृति देशों के बीच संबंधों में अधिकाधिक भूमिका अदा करती रही है। सांस्कृतिक आदान-प्रदान सरकारों के बीच मैत्रीपूर्ण सहयोग के लिए एक प्रेरक शक्ति के रूप में देखा गया है। किसी भी देश की राजकीय ललितकला संस्था उस की सांस्कृतिक छवि का एक प्रतीक है। इसलिए उसे भी नयी परिस्थिति में अपने अस्तित्व और विकास पर विचार करना चाहिए। उम्मीद है कि इस सम्मेलन में वांछित उपलब्धियां हासिल होंगी और यह सम्मेलन एशियाई ललितकला संस्थाओं के महानिदेशकों और विशेषज्ञों के लिए आदान-प्रदान व सहयोग का एक नया मंच भी बनेगा ।"
एशियाई ललितकला संस्थाओं के महानिदेशकों का सम्मेलन उस के साथ एक ही समय में उद्घाटित 8वें पेइचिंग एशियाई कला उत्सव के आयोजनों में से एक था,जिस का प्रवर्तन 2005 में चीनी संस्कृति मंत्री श्री सुन चा-जंग ने एशियान,जापान और कोरिया-गणराज्य के संस्कृति मंत्रियों के सम्मेलन में किया था। एशियाई ललितकला संस्थाओं के महानिदेशकों के सम्मेलन का उद्देश्य एशिया के विभिन्न देशों की ललितकला संस्थाओं के संग्रहण,प्रदर्शन और अनुसंधान जैसे क्षेत्रों में मौजूद सवालों पर विचार-विमर्श करना है,ताकि ललितकला की ये संस्थाएं एशियाई ललितकला के विकास का मुख्य मंच बन सकें।
सम्मेलन में उपस्थित महानिदेशकों और प्रतिनिधियों ने संबंधित विषयों पर गहन रूप से राय-मशविरा किया। इंडोनेशिया की राजकीय ललितकला संस्था के महानिदेशक सुक्माना ने अपनी संस्था के समक्ष खड़ी समस्याओं से अवगत कराते हुए कहा कि उन का देश बहुत से टापुओं से बना है। इन टापुओं में से अनेक टापूओं पर बसने वाले लोग ललितकला संस्था की भूमिका से परिचित नहीं हैं। इसलिए देश की इस ललितकला संस्था को विभिन्न टापुओं पर जाकर संबंधित प्रचार-प्रसार करने की ज़रूरत है।श्री सुक्माना के इस बयान से ललितकला संस्थाएं किस तरह विभिन्न क्षेत्रों के विभिन्न तबकों के जन समुदाय पर प्रभाव डाल सकती हैं,यह सम्मेलन में एक विषय बना।
वियतनाम की राजकीय ललितकला संस्था के महानिदेशक श्री ट्रोंग ख्वोक बिंह ने संवाददाताओं से कहा कि उन्हों ने सम्मेलन में उष्णकटिबंधीय मौसम में प्राचीन कलात्मक वस्तुओं के संरक्षण और मरम्मत में प्राप्त अनुभव बताए और सम्मेलन में उपस्थित प्रतिनिधियों के साथ ललितकला वस्तुओं की प्रदर्शनियों के संयुक्त आयोजन पर भी विचार-विनिमय किया।
श्री ट्रोंग ख्वोक बिंह ने बल देकर कहा कि इस सम्मेलन ने एशिया के विभिन्न देशों के ललितकला जगत को सहयोग का एक अच्छा मौका दिया है।उन का कहना हैः
"सम्मेलन में हम ने एशिया के प्रमुख देशों में बारी-बारी से ललितकला कृतियों की प्रदर्शनियों के आयोजन और एशियान,जापान व कोरिया-गणराज्य की कृषि-सभ्यता के दक्षिण पूर्वी एशिया की कला पर पड़े प्रभाव के अनुसंधान आदि क्षेत्रों में सहयोग की कुछ मांगें पेश की हैं। कहा जा सकता है कि चीन और भारत दो प्राचीन सभ्यता वाले देशों ने एशिया के बाकी सभी देशों की कला पर भारी प्रभाव डाला है। वैश्विकरण के मौजूदा दौर में हमें सोचना चाहिए कि किस तरह देशों का आधुनिकीकरण करने के साथ-साथ परंपरागत संस्कृति व कला को भी अच्छी तरह सुरक्षित किया जा सके,ताकि आधुनिकीकरण सांस्कृतिक विशेषताओं की कीमत पर न हो।"
म्यांमार,कंबोडिया और इंडोनेशिया की राजकीय ललितकला संस्थाओं के महानिदेशकों ने भी समान विचार व्यक्त किए कि एशिया की विभिन्न ललितकला संस्थाओं को आगे भी अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक वातावरण में अपनी नयी और अलग पहचान बनाए रखने के तरीके ढूंढने की कोशिशें करनी चाहिए।
चीनी ललितकला भवन के महानिदेशक श्री फ़ान ती-आन ने कहा कि एशियाई देशों की ललितकला में परंपरागत,आधुनिक,राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विशेषताओं का संगम है।एशियाई ललितकला जगत कैसे आपस में आदान-प्रदान के जरिए अंतर्राष्ट्रीय ललितकला जगत में अपनी श्रेष्ठता दिखाए,यह सभी एशियाई देशों की ललितकला संस्थाओं के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक विकल्प है। लेकिन लम्बे अरसे से एशियाई देशों की ललितकला संस्थाओं में आदान-प्रदान व सहयोग का रास्ता सरल नहीं रहा है।चीनी ललितकला भवन की मिसाल लें,हालांकि इस भवन ने यूरोपीय व अमरीकी देशों,जापान और कोरिया-गणराज्य के ललितकला जगतों के साथ सयुंक्त रूप से अनेक ध्यानाकर्षक प्रदर्शनियां आयोजित की हैं, लेकिन एशियान के 10 सदस्य देशों के साथ ऐसा बहुत कम किया है।श्री फान ती-आन के अनुसार इस सम्मेलन ने बेशक इस कमी को दूर करने का संदेश दिया है। उन्हों ने कहाः
"एशियाई देशों में ललितकला संबंधी संसाधनों का भंडार उपलब्ध है। मगर ललितकला संस्थाओं में सीमित आदान-प्रदान के कारण इन संसाधनों के हित व्यापक एशियाई जनता में बराबर ढंग से बंट नहीं सके हैं। इस सम्मेलन ने ललितकला क्षेत्र में द्विपक्षीय व बहुपक्षीय आदान-प्रदान के लिए रास्ता चौड़ा कर दिया है। एशिया में विभिन्न तबकों के लोगों को ललितकला के संसाधनों का समान रूप से आनन्द पहुंचाना हमारी अभिलाषा है। "
इस सम्मेलन के महासचिव श्री छन ल्वी-शंग के अनुसार वर्तमान समय में चीन में ललितकला जगत और अकादमिक जगत दक्षिण पूर्वी एशिया की ललितकला का पर्याप्त अनुसंधान नहीं कर रहे हैं। एशिया में सिंगापुर को छोड़ बाकी प्रमुख देश मुख्य तौर पर अपनी कलात्मक वस्तुओं के ही संग्रहण पर ध्यान देते हैं। सिंगापुर की राजकीय ललित संस्था ने पिछले दशक में दक्षिण पूर्वी एशिया की ललितकला कृतियों के संग्रहण को खासा महत्व दिया है। इसलिए इस सम्मेलन में सिंगापुर ललितकला संस्था द्वारा संग्रहित दक्षिण पूर्वी ललितकला कृतियों की प्रदर्शनी लगाई गई। इस संस्था के महानिदेशक श्री क्वोक कियेन-छो ने हमारे संवाददाता से इंटरव्यू में कहा कि उन की संस्था के संग्रहण-कार्य को दक्षिण पूर्वी एशिया की विभिन्न ललितकला संस्थाओं का समर्थन प्राप्त हुआ है। वह एशिया के अन्य क्षेत्रों की ललितकला संस्थाओं के साथ भी सहयोग करने की प्रतीक्षा में हैं। उन्हों ने कहाः
"हम चाहते हैं कि एक एशियाई सहयोग मंच कायम किया जाए,ताकि समय रहते सूचनाओं का कारगर ढंग से आदान-प्रदान हो सके,सक्रिय रूप से संबंधित प्रदर्शनियां चलाई जा सकें,अनुसंधान-कार्य किया जा सके और एशियाई ललितकला संस्थाओं को और बड़ी भूमिका अदा करने का मौका दिया जा सके। हम एशियाई ललितकला के विकास में एशिया के विभिन्न देशों की ललितकला संस्थाओं की भूमिका को भारी महत्व देते हैं और अन्य संबद्ध क्षेत्रीय व अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के साथ सहयोग की भी कोशिश करते हैं। केवल ऐसा करने से ही ललितकला और ललितकला संस्थाएं मानवता पर आधारित वैश्विक वातावरण में अपनी अहम भूमिका निभा सकती हैं।"
एशियाई ललितकला जगत का यह शिखर-सम्मेलन 3 दिनों तक चला। इस में एशियान और चीन,जापान व कोरिया-गणराज्य के सम्मेलन का प्रस्ताव पारित किया गया और दूसरे शिखर-सम्मेलन का मेजबान देश निश्चित किया गया। सम्मेलन में यह फैसला भी लिया गया है कि इस साल की सितम्बर से एशियाई ललितकला प्रदर्शनियां हर दूसरे वर्ष क्रमशः सिंगापुर,चीन और कोरिया-गणराज्य आदि देशों में आयोजित की जाएंगी।
|